Technical Education In BIhar: पलायन के साथ छात्र हर साल बिहार से बाहर ले जा रहे 500 करोड़ रुपये
बिहार में आगे बढऩे की चाहत है लेकिन रास्ते नहीं मिलते। प्रदेश के युवाओं मे पढऩे की चाहत है लेकिन पढऩे का माहौल नहीं मिलता। उच्च शिक्षा में बेहतर अवसरों की कमी के कारण बड़ी संख्या में प्रदेश के छात्र पलायन को मजबूर होते हैं।
जयशंकर बिहारी, पटना। बिहार की प्रतिभा का उच्च शिक्षा, प्रतियोगी व प्रवेश परीक्षाओं में सफलता के लिए पलायन का दर दिन-ब-दिन घटने की बजाय बढ़ता ही चला रहा है। कोटा, दिल्ली के साथ-साथ अब हैदराबाद भी बिहारी छात्र पहुंच रहे हैं। बिहारी प्रतिभा के पलायन पर अध्ययन करने वाले आइआटी मुंबई के पूर्ववर्ती छात्र मनीष शंकर का कहना है कि हर साल कितने छात्र राज्य से विभिन्न स्तर की शिक्षा के लिए पलायन करते हैं, इसका कोई आधिकारिक सरकारी शोध या सर्वे नहीं हुआ है। स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा विभिन्न मकसद से कराए गए सर्वे के अनुसार जेईई और नीट की तैयारी के लिए हर साल 60 से 80 हजार बच्चे राज्य, अपना शहर और घर-परिवार छोड़कर कोटा, दिल्ली, हैदराबाद जैसे शहरों में पलायन करते हैं। इन शहरों में रहने व खाने पर प्रति छात्र औसतन 15 हजार रुपये प्रत्येक माह खर्च करते हैं। जबकि फीस के तौर पर इतनी ही राशि उन्हेंं कोचिंग संस्थानों को देनी होती है।
जेईई की तैयारी करने वालों की पहली पसंद कोटा
जेईई की तैयारी करने वालों की पहली पसंद कोटा है। यहां लगभग 40 हजार बिहारी छात्र रहते हैं। इनमें से हर साल 3000 से 3500 के बीच जेईई मेन और 200 से 250 छात्र जेईई एडवांस में क्वालीफाई करते हैं। यह संख्या बिहार में रहकर जेईई क्वालीफाई करने वालों छात्रों की संख्या लगभग चौथाई है। मेडिकल की तैयारी के लिए बिहार के छात्रों की पहली पसंद दिल्ली है। यहां स्कूल से 12वीं करने पर उन्हेंं मेडिकल कॉलेजों में स्टेट कोटा की 85 फीसद सीटों पर दावेदारी का अवसर मिल जाता है। मेडिकल की तैयारी के लिए हर साल 30 से 40 हजार बच्चे पलायन करते हैं। यह जेईई के छात्रों की तुलना में थोड़ा ज्यादा खर्च करते हैं।
पीयू के कुलपति नहीं मानते संसाधनों की कमी
एनआइटी पटना के पूर्व सीनियर फैकल्टी व पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश कुमार चौधरी का कहना है कि पलायन का मुख्य वजह पटना या राज्य में संसाधनों की कमी नहीं है। अभिभावक पहले की तुलना में बच्चों पर काफी कम समय देते हैं। फटाफट रिजल्ट और सुनी-सुनाई बातों के आधार पर बच्चों को कोटा भेजकर अपनी जिम्मेवारी पूरी समझ लेते हैं। राज्य के बच्चों में सेल्फ स्टडी का स्तर दिन व दिन घटता जा रहा है। इसका रिजल्ट पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ रहा है। राज्य में कमियां भी हैं, जिन्हेंं जल्द दूर कर लेने पर दूसरे राज्य के बच्चे बिहार में पढ़ाई के लिए आने लगेंगे।
सिविल सेवा के लिए दिल्ली पहली पसंद
सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए दिल्ली का मुखर्जी नगर पहली पसंद है। प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ मुखर्जी नगर व आसपास के मोहल्लों में बिहार के 25 से 30 हजार बच्चे रहते हैं। इस साल संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में 75 से अधिक छात्रों को सफलता मिली है। इनमें अधिसंख्य दिल्ली में रहकर तैयारी करने वाले छात्र ही शामिल हैं। छात्रों की बहुलता के कारण रूम रेंट काफी महंगा होता है। 15 से 20 हजार रुपये छात्रों को सामान्य तरीके से रहने में खर्च होता है। सिविल सेवा परीक्षा के विशेषज्ञ प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में सिविल सेवा में राज्य का रिजल्ट सुधरा है। लेकिन, इसमें पटना में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या कम है। जबकि पूर्व में सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए पटना का अशोक राजपथ मुखर्जी नगर से कतई कम महत्व नहीं रखता था। पटना विवि से एक-एक साल में 50 से 60 बच्चे सिविल सेवा के लिए चयनित होते थे। पलायन रोकने और रिजल्ट को पहले की तरह बेहतर करने के लिए विश्वविद्यालय के सिलेबस में काफी बदलाव और शिक्षकों की कमी दूर करने की जरूरत है।
इंजीनियरिंग की आधी सीटें खाली, पलायन को मजबूर
राज्य में 38 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। इनमें नौ हजार से अधिक सीटें हैं। पिछले साल कई राउंड की काउंसिलिंग के बाद भी आधी सीटों के लिए छात्र नहीं मिले थे। जबकि दूसरे राज्यों के सरकारी और निजी कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों की संख्या 70 से 80 हजार है। दक्षिण भारत के अधिसंख्य इंजीनियरिंग कॉलेजों में बिहार के छात्र बहुतायत हैं। इन संस्थानों में पढ़ाई के लिए छात्रों को औसतन 20 हजार रुपये मासिक करना होता है। एनआइटी के पूर्व फैकल्टी प्रो. एनपी राय का कहना है कि राज्य के तकनीकी संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई और प्लेसमेंट नहीं होने के कारण बच्चों पलायन हो रहा है। शिक्षकों की भारी कमी है। लगभग 70 फीसद सीटें खाली हैं। यही हाल मेडिकल कॉलेजों का है। राज्य में सिर्फ 1200 सीटें सरकारी और 350 सीटें निजी मेडिकल कॉलेज में है। जबकि नीट हर साल 40 से 50 हजार बच्चे क्वालीफाई करते हैं। दूसरे राज्यों के निजी मेडिकल कॉलेज में हर साल राज्य के 2500 से तीन हजार बच्चे नामांकन लेते हैं। इनमें सालाना फीस आठ से 12 लाख रुपये होता है। जबकि हॉस्टल व मेस चार्ज डेढ़ से दो लाख रुपये प्रतिवर्ष देना होता है।
नीट 2019 : रजिस्ट्रेशन परीक्षा में शामिल क्वालीफाई फीसद
83391 76536 44092 57.61
नीट 2020 95150 83038 46377 55.79
जेईई मेन 2019 परीक्षा में शामिल क्वालीफाई फीसद
82748 16
जेईई मेन 2020 129100 15