भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं तारकिशोर, लालू के वोट बैंक में लगा चुके सेंध
लालू के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने के साथ ही तारकिशोर प्रसाद पूरे प्रदेश में वैश्य मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में बनाए-बचाए रखने में मददगार हो सकते हैं। बिहार में इस समुदाय की आबादी 22 फीसद है जो किसी भी वोट बैंक पर भारी है।
रमण शुक्ला। बिहार में भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं वैश्य समाज से आने वाले तारकिशोर प्रसाद को उपमुख्यमंत्री बनाने के कई मायने हैं। पार्टी के प्रति समर्पण के लिए पुरस्कार तो है ही, भाजपा के लिए सबसे अहम सीमांचल में अपनी जड़ें मजबूत करने की कोशिश भी है। बिहार विधानसभा के तीन चरणों में हुए चुनाव के नतीजे बताते हैं कि राजग को सत्ता सीमांचल ने ही दिलाई है।
सामाजिक समीकरण के हिसाब से इस इलाके में पिछले तीन दशकों से लालू प्रसाद की राजनीति फलती-फूलती रही है, लेकिन इस तिलिस्म को भाजपा-जदयू की संयुक्त रणनीति ने अबकी तोड़ दिया। पहले और दूसरे चरण में महागठबंधन से काफी पीछे हो चुके राजग को तीसरे चरण की 78 सीटों में 33 सीटें ज्यादा मिलीं। जाहिर है, कटिहार से पिछले चार बार से लगातार जीतते आ रहे तारकिशोर प्रसाद भारतीय जनता पार्टी को नए सिरे से आगे बढ़ा सकते हैं।
बिहार भाजपा के बड़े नेता सुशील मोदी के विकल्प के तौर पर उभारे गए तारकिशोर व्यवहार कुशल तो हैं ही, आरएसएस से भी उनके गहरे संबंध हैं। राजनीति में आने के पहले वह बाल स्वयंसेवक रह चुके हैं। सीमांचल में प्रखर हिंदूवादी नेता की उनकी पहचान है। उन्हें पहली बार उभार धर्मातरण और लव जिहाद जैसे प्रमुख सामाजिक जागरूकता मुहिम से मिली। पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के बेहद करीबी माने जाने वाले तारकिशोर को पार्टी में संगठनात्मक पाठ पढ़ाने में प्रदेश सह संगठन महामंत्री शिवनारायण महतो की बड़ी भूमिका रही है। शिवनारायण भी कटिहार जिले से आते हैं। संघ पृष्ठभूमि वाले परिवार में पले-बढ़े तारकिशोर ने चार दशक के सियासी सफर के बाद यह मुकाम पाया है।
कटिहार सदर विधानसभा क्षेत्र से लगातार चौथी जीत दर्ज करने का तारकिशोर प्रसाद को यह बड़ा इनाम मिला है। इसी के साथ उनके सियासी कद में भी बड़ा उछाल आया है। तारकिशोर प्रसाद ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जिला प्रमुख से अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी। बिहार भारतीय जनता युवा मोर्चा में विभिन्न पदों पर भी वह रहे। संगठन में प्रदेश कार्य समिति सदस्य भी रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से गुजरते हुए उनकी भाजपा में नगर उपाध्यक्ष, महामंत्री और जिला अध्यक्ष के रूप में इंट्री हुई। भाजपा उद्योग वाणिज्य मंच के प्रदेश अध्यक्ष समेत पार्टी में 2009 तक कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इसके अलावा, चैंबर ऑफ कॉमर्स और रेडक्रॉस जैसे कई सामाजिक और जनसेवा से संबंधित संगठनों में भी वह अहम दायित्व का निर्वहन कर चुके हैं।
संगठन विस्तार में जुटी भाजपा ने उनकी प्रतिभा को परखते हुए जिला संगठन में उन्होंने ओहदेदार बनाया था। यही नहीं, पार्टी ने वर्ष 2005 में जिला महामंत्री रहते हुए उन्हें कटिहार सदर विधानसभा सीट से टिकट दिया था। वे कसौटी पर खरे उतरे और कटिहार सीट जीत कर भाजपा की झोली में डाल दी। पिछली विधानसभा में वह सत्तारूढ़ दल भाजपा के सचेतक रहे और कई बार विधानसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन के संचालन का उत्तरदायित्व भी निभा चुके हैं।
बंगाल चुनाव में बड़ी भूमिका : सीमांचल में आने वाले कटिहार की सीमा बंगाल से सटी हुई है। तारकिशोर प्रसाद की बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी बड़ी भूमिका देख रही है। बांग्ला भाषा पर तारकिशोर की अच्छी पकड़ है। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के अनुसार प्रसाद के लिए संगठन व सरकार की कसौटी पर खरा उतरना और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का विकल्प बनना तारकिशोर के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। वैश्य में कलवार समाज से आने वाले तारकिशोर और बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल भी कलवार हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सत्ता और संगठन के साथ संतुलन बनाना उपमुख्यमंत्री के लिए आसान रहेगा।
भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक : वैश्य समाज को बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर में भाजपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। तारकिशोर वैश्य समाज से आते हैं और सुशील कुमार मोदी के करीबी नेताओं में गिने जाते हैं। ऐसे में सुशील कुमार मोदी को हटाए जाने के बाद भाजपा का कैडर वोटर कहीं छिटक न जाए, इस बात को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने तारकिशोर प्रसाद को उपमुख्यमंत्री के तौर पर आगे लाने की रणनीति अपनाई है। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार 24 विधायक वैश्य समुदाय से जीते हैं, जिनमें सबसे ज्यादा 15 विधायक भाजपा के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं। भाजपा ने 16 वैश्य प्रत्याशियों को टिकट दिया था, जिसमें से 15 ने जीत दर्ज की है। मुजफ्फरपुर जिले में केवल कुढ़नी ऐसी विधानसभा सीट है, जहां राजग के वैश्य प्रत्याशी की हार हुई है।
नीतीश के वोट बैंक को लक्ष्य कर रणनीति : तिरहुत, मिथिलांचल, कोसी और सीमांचल में जीती गई सीटों ने ही राजग को सिंहासन तक पहुंचाया है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं सियासी तौर पर आखिरी पारी घोषित कर चुके हैं। ऐसे में भाजपा की रणनीति उनके अति पिछड़ा और महिला वोट वैंक को अपने साथ लाने की है। इसीलिए भाजपा ने विधानमंडल का नेता वैश्य समुदाय से चुना है, तो उपनेता अति पिछड़ा समाज से आने वाली रेणु देवी को बनाया है।