बिहार से लेकर झारखंड तक में आतंक का पर्याय रहे बिंदू सिंह की मौत, बेउर के जेलर की करा दी थी हत्या
कुख्यात बिंदू सिंह की शनिवार को मौत हो गई। बिंदू पर हत्या रंगदारी और अपहरण के करीब पांच दर्जन से अधिक अपराधिक मामले दर्ज थे। 35 मामलों की सुनवाई पटना जहानाबाद गया समेत झारखंड के कई जिलों की कोर्ट में चल रही थी।
जागरण संवाददाता, पटना : बेउर जेल में सजायाफ्ता कुख्यात बिंदू सिंह की पटना मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल (पीएमसीएच) में शनिवार शाम छह बजे मौत हो गई। वह लंबे समय से कैंसर से ग्रसित था। शुक्रवार को तबीयत बिगड़ने पर जेल प्रशासन ने उसे पीएमसीएच में भर्ती कराया था। उसके विरुद्ध हत्या, अपहरण, रंगदारी जैसे तीन दर्जन से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। 1987 में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। तब से वह जेल में ही कैद था। उसका बेटा रोशन दो बार रंगदारी के मामले में जेल जा चुका है। वह हाल में जमानत पर छूटा है। इधर, बिंदू सिंह की मौत की सूचना मिलने के बाद पीएमसीएच से 150-200 की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। पुलिस ने शव को कब्जे में ले लिया है। रविवार को पोस्टमार्टम के बाद शव स्वजनों को सौंपा जाएगा। सुरक्षा के लिहाज से पीएमसीएच में अतिरिक्त बल की तैनाती की गई है।
नदौल का रहने वाला था बिंदू सिंह
बिंदू सिंह मूलरूप से जहानाबाद के दौलतपुर गांव का रहने वाला है। हालांकि, उसका परिवार कंकड़बाग की पीसी कालोनी में रहता है। 1980-90 के दशक में बिंदू सिंह बिहार और झारखंड में आतंक का पर्याय बन चुका था। उस समय दोनों ही राज्य एक था। 1987 में गिरफ्तारी के बाद भी उसके नाम पर कोचिंग संस्थानों, चिकित्सकों व बड़े प्रतिष्ठानों से रंगदारी वसूली जाती थी। रकम नहीं देने पर लोगों की हत्या कर दी जाती थी। उसे जहानाबाद, भागलपुर, बोकारो, रांची, पलामू, जमशेदपुर, दिल्ली और मसौढ़ी के जेलों में भी रखा गया था। वर्ष 2000 से 2005 के बीच उसके चार गुर्गे मारे गए थे, जिसके बाद बिंदू सिंह की ताकत कम होती चली गई। वह सोना पहनने और गांजा पीने का शौकीन था।
फौज की नौकरी छोड़ लड़ा था चुनाव
बताया जाता है कि बिंदू सिंह फौज की नौकरी में था। उसके छोटे भाई की हत्या कर दी गई थी। इलाके में वर्चस्व कायम करने के लिए उसने फौज की नौकरी छोड़ दी और अपराध की दुनिया में कदम रख दिया। उसने गया जिले के बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से किस्मत आजमाई थी, लेकिन चुनाव हार गया। जब हार्डिंग रोड में निजी बस स्टैंड था, तब उसके ही एजेंट वाहन मालिकों से रकम वसूलते थे। इसको लेकर स्टैंड पर कई बार फायरिंग हुई थी। जेल में कैद रहने के दौरान कई आपराधिक मामलों में उसकी संलिप्तता उजागर होने पर 12 वर्षों से जेल प्रशासन ने उसे गोलघर में बंद रखा था।
2005 में करा दी थी बेउर जेल के जेलर की हत्या
वर्ष 2004 में दिवाली की रात रंगदारी नहीं देने पर बिंदू सिंह के गुर्गों ने राजेंद्र नगर में रहने वाले डाक्टर एनके अग्रवाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस मामले में तत्कालीन टाउन डीएसपी राकेश कुमार दुबे ने बिंदू सिंह के गुर्गे नवलेश दुबे व एक अन्य को राजेंद्र नगर टेलीफोन एक्सचेंज के पास मार गिराया था। हथियार रखने के आरोप में उसकी बेटी को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। पुलिस की सिफारिश पर बेउर जेल प्रशासन ने बिंदू सिंह पर निगरानी बढ़ा दी थी। तब 2005 में उसने बेउर जेल के तत्कालीन जेलर की नाला रोड स्थित घर के बाहर हत्या करवा दी। उसे कंकड़बाग के एक कोचिंग संचालक व चर्चित शिक्षक बीके लाल की भी रंगदारी नहीं देने पर हत्या कराई थी। इस कांड के बाद तत्कालीन डीएसपी शशिभूषण शर्मा ने भी उसके दो गुर्गों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था।