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70 की उम्र में भी कम नहीं उत्‍साह, नई पौध को ज्ञान से सींच रहे पटना के रिटायर्ड भगर्भशास्‍त्री प्रोफेसर रोहतगी

प्रो. अशोक कुमार रोहतगी पटना विश्‍वविद्यालय के रिटायर्ड शिक्षक हैं। 70 की उम्र में भी वे खुद को रिटायर्ड नहीं मानते। उनमें पढ़ाने का जज्‍बा बरकरार है।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 08:55 AM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 12:43 AM (IST)
70 की उम्र में भी कम नहीं उत्‍साह, नई पौध को ज्ञान से सींच रहे पटना के रिटायर्ड भगर्भशास्‍त्री प्रोफेसर रोहतगी
70 की उम्र में भी कम नहीं उत्‍साह, नई पौध को ज्ञान से सींच रहे पटना के रिटायर्ड भगर्भशास्‍त्री प्रोफेसर रोहतगी

पटना, जेएनएन। Swatantrata Ke Sarathi: पटना विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्र विभाग से सेवानिवृत्त हुए प्रो. अशोक कुमार रोहतगी जैसे शिक्षक आजकल कम ही मिलते हैं। करीब 10 वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुए, पर अब भी बिना कोई शुल्क लिए अपने विभाग के छात्रों को पढ़ाने जाते हैं। वे 10 किलोमीटर की दूरी तय कर समय से नियमित रूप से जियोलॉजी विभाग पहुंचते हैं। आज भी खुद को रिटायर्ड नहीं मानते। कहते हैं, 'अभी पूरी तरह से फिट हूं।' उम्र 70 वर्ष है, पर पढऩे और पढ़ाने के प्रति उनका उत्साह आज भी उतना ही है, जितना पहले था।

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70 की उम्र में भी करते शिक्षा दान

प्रो. रोहतगी पटना विश्वविद्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर पटना सिटी के लल्लू बाबू का कूचा मोहल्ले में रहते हैं। वे अपनी एक भी क्लास कभी नहीं छोड़ते हैं। रिटायर्ड होने के बाद से वे विश्वविद्यालय को अपनी सेवा दे रहे हैं।

कई छात्र फोन से करते हैं संपर्क

प्रो. रोहतगी कहते हैं, 'कई छात्र फोन पर ही उनसे विषय से जुड़े सवालों के हल पूछ लेते हैं। किसी भी समय फोन आए हम मना नहीं करते हैं। मैने अपने विषय से संबंधित पेपर जैसे पृथ्वी विज्ञान, आपदा प्रबंधन, दूर संवाद जैसे विषयों को मैने अलग अलग विभागों में जाकर भी पढ़ाया है।'

जब-तक जिंदा हैं, पढ़ाते रहेंगे

प्रोफेसर के अनुसार जब तक जीवित हैं, पढ़ने और पढ़ाने का काम चलता रहेगा। विश्वविद्यालय जाना बंद नहीं करेंगे। हमेशा नये विषयों से जुड़ी धार्मिक, सांस्कृतिक किताबें पढ़ते हैं। अपने विषय में भी जो नये-नये आविष्कार होते रहते हैं, उसे पढ़ते हैं।

विश्वद्यालयों में कम हो छुट्टी

प्रो. रोहतगी कहते हैं कि विश्वद्यालयों में छुट्टियां कम होनी चाहिए। तब जाकर कोर्स समय पर पूरा होगा। शिक्षकों को अध्ययन जारी रखना चाहिए, क्योंकि हर विषय में नये-नये बदलाव होते हैं। यूनिवर्सिटी को रिसर्च वर्क और सब्जेक्ट स्पेशलाइजेशन बढ़ाना चाहिए। तभी हम विदेश की यूनिवर्सिटी से बराबरी कर पाएंगे। इसमें विशेषकर बिहार की यूनिवर्सिटी बहुत पीछे हैं।

तब नियमित वर्ग लेते थे शिक्षक

वे कहते हैं कि 1960-70 के उनके समय में शिक्षक नियमित वर्ग लेने आते थे। तेजी से बदले समय में स्मार्ट शिक्षा ने जगह ले ली है। यह अच्छी बात है, लेकिन आज भी कई जगह पावर प्वाइंट से पढ़ाई नहीं होती है। सिलेबस पूरा करने के लिए नियमित वर्ग होना जरूरी है।


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