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पेशा नहीं प्रकृति से बने शिक्षक से सुधरेगी शिक्षा

शिक्षा में सुधार प्रकृति से बने शिक्षक ज्यादा सहूलियत से कर सकते हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Mar 2018 07:58 PM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 07:58 PM (IST)
पेशा नहीं प्रकृति से बने शिक्षक से सुधरेगी शिक्षा
पेशा नहीं प्रकृति से बने शिक्षक से सुधरेगी शिक्षा

पटना । शिक्षा में सुधार प्रकृति से बने शिक्षक ज्यादा सहूलियत से कर सकते हैं। इसके लिए प्रबंधन के पास अभी कोई नीति नहीं है। उक्त बातें बुधवार को बीएन कॉलेज सभागार में 'वर्तमान शिक्षा व्यवस्था : चुनौतियां एवं समाधान' विषय पर आयोजित संगोष्ठी में पूर्व डीजीपी एवं सुपर-30 के संस्थापक अभयानंद ने कहीं। उन्होंने कहा कि सुपर-30 में प्राप्त अनुभव के आधार पर सत्य प्रतीत होता है कि पेशे से शिक्षक बनकर हम शिक्षा का भला नहीं कर सकते, हमें प्रकृति से शिक्षक बनना होगा। शिक्षा में प्रयोग से प्राप्त निष्कर्ष से ही शिक्षा की संस्कृति में परिवर्तन संभव है। यदि उच्च शिक्षा प्राप्त बच्चे भी बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं तो इस पर विचार अनिवार्य प्रतीत होता है।

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मुख्य वक्ता और शिक्षाविद् अतुल जी कोठारी ने कहा कि देश को बदलना है तो शिक्षा में बदलाव जरूरी है। शिक्षा की समस्याओं को गिनाकर हम अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते हैं। हमें समाधान पर भी विचार करना होगा। औपचारिक से ज्यादा अनौपचारिक शिक्षा हमारी शिक्षा व्यवस्था के लिए जरूरी है। शिक्षा में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके बगैर हम पढ़- लिखकर भी भ्रष्ट और चरित्रहीन ही बन रहे हैं। कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता एवं पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह ने कहा कि शिक्षा की चुनौतियों में रोजगार का संकट एक महत्वपूर्ण कारक है। इसके लिए हमें मौलिक रास्ते खोजने होंगे। जापान से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. राजकिशोर प्रसाद ने कहा कि शिक्षा में बदलाव तभी संभव है जब हम शिक्षा में मूल्य की बातों का समावेश करें। इसका आयोजन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा किया गया।

मौके पर दिल्ली विश्वविद्यालय के राजेश्वर पराशर, संयोजक कुंदन कुमार शर्मा, शीतल कुमारी, संघ के उत्तर-पूर्व क्षेत्र के कार्यवाह डॉ. मोहन सिंह, एबीवीपी के संगठन मंत्री निखिल रंजन, पूर्व विधान पार्षद विवेक ठाकुर, रामाशकर सिन्हा, प्रेम नाथ पाडेय, अजय यादव, प्रो. समीर कुमार शर्मा, प्रो. मुरारी शरण मागलिक आदि मौजूद थे।


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