मोक्ष प्राप्ति का साधन है श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण
जागरण संवाददाता, पटना : कथा वाचक बाहर या इधर-उधर हो सकता, झूठ बोल सकता है लेकिन जब
जागरण संवाददाता, पटना : कथा वाचक बाहर या इधर-उधर हो सकता, झूठ बोल सकता है लेकिन जब वो व्यास पीठ पर होता है तो सत्य बोलता है। जो बातें श्रीमद्भागवत कथा में लिखी हैं वही बातें श्रद्धालुओं के बीच प्रस्तुत करता है। ये बातें आचार्य देवकीनंदन ठाकुर ने सोमवार को गर्दनीबाग स्टेडियम में श्रीमद्भागवत कथा के दौरान कहीं। मौका था विश्व शांति सेवा समिति की ओर से आयोजित श्रीमद्भागवत कथा की प्रस्तुति का।
कथा को जीवन में उतारें भक्त : कथा पंडाल में महाराज से एक श्रोता ने सवाल किया कि आजकल कथाएं बहुत ज्यादा हो रही हैं फिर भी लोग कथा सुनकर क्यों नहीं सुधरते? जवाब देते हुए ठाकुर ने कहा कि कथा वाचक का कोई दोष नहीं होता, दोष होता है सुनने वालों का। अगर सुनने वाले शांत-चित्त होकर कथा का रसपान करें तो ऐसी समस्या नहीं होगी। लोग कथा में आते जरूर हैं लेकिन अपने जीवन में कथा को उतार लें तो फिर ऐसी समस्या नहंी होगी। पहले जो भी श्रोता आता था वह कथा को सुनता था और उसका अपने जीवन में पालन करता था लेकिन आजकल के श्रोता कथा को सुनने का लाभ तो लेते हैं लेकिन उसे अपने जीवन में धारण नहीं करते हैं। जो भी व्यास पीठ से बोल दिया जाता था उसे श्रोता भगवान का वाक्य समझकर पालन करते थे। भागवत सुनने का फल तो अवश्य मिलना ही है लेकिन भागवत से भौतिक वस्तुएं ना मागकर स्वयं भगवान को माग लिया जाए तो आपका जीवन सफल हो जाएगा।
सात दिनों की होती है भागवत कथा : देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि राजा परीक्षित को सातवें दिन सांप डंस लेता है जिस कारण श्रीमद् भागवत कथा सात दिन की होती है। वैसे भगवान की लीलाओं का गुणगान जन्म-जन्मांतर भी करते रहे तो भी पूरी ना हो। उन्होंने कहा कि कथा को व्यक्ति तीन प्रकार से सुनता है। पहला व्यक्ति कथा को ध्यान से सुनता है और फिर उस पर चिंतन करता है और फिर अपने जीवन में उसका पालन करता है। दूसरा कथा को ध्यान से सुनकर हृदय में रखकर और समय आने पर जीवन में उसका पालन करता है। तीसरा, एक कान से सुनता है और फिर दूसरे कान से निकाल देता है।
दो प्रकार से होता है प्रेम : प्रेम की परिभाषा व्यक्त करते हुए स्वामी ने कहा कि प्रेम दो तरह से होता है। एक दर्शन से और दूसरा श्रवण से। भगवान की कथा सुनकर ही रुक्मिणी को भगवान से प्रेम हुआ। देवकीनंदन ने कहा कि भगवान को हृदय से समझ सकते हैं बुद्धि से नहीं। भगवान को प्राप्त करने के लिए अपने मन से काम, क्रोध, लोभ, मोह और माया से मुक्त होना पड़ता है। जिनका मन गंगा की तरह पवित्र होता है उन्हें ही भगवान के दर्शन प्राप्त होते हैं।
मोक्ष के लिए तीन ऋण से मुक्त होना जरूरी : देवकीनंदन ने कहा कि मनुष्य को अपने मोक्ष के लिए तीन ऋणों से मुक्त होना पड़ता है। पहला ऋण दैविक, दूसरा पितृ ऋण और तीसरा ऋषियों का। जबतक इन तीनों ऋणों से इंसान मुक्त नहीं होता तब तक मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। तीनों ऋणों से मुक्ति के लिए भागवत कथा का श्रवण एक मात्र साधन है।