डबल इंजन की सरकार में गुहार पर गुहार, फिर भी इनकार ...बड़ा सवाल- आगे क्या होगा?
बिहार में डबल इंजन की सरकार है, लेकिन राज्य सरकार के कई आग्रह की केंद्र ने अनसुनी की है। विशेष राज्य का दर्जा इनमें सबसे बड़ा मुद्दा है। सवाल यह है कि ऐसे में आगे क्या होगा?
पटना [जेएनएन ]। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्पष्ट कर चुके हैं कि वे विशेष राज्य के मुद्दे पर झुकने वाले नहीं। दूसरी ओर भाजपा नेता इसपर समय-समय पर नकारात्मक बयान देते रहे हैं। दरअसल, यह अकेला मामला नहीं, जिसपर राज्य व केंद्र सरकारों में पेंच फंसा हुआ है। एेसे और भी मुद्दे हैं, जिनपर केंद्र बिहार की की अनसुनी करती रही है। बीते साल बाढ़ राहत पैकेज तथा पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं।
पटना विश्वविद्यालय को नहीं मिला केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में आए थे। समारोह के मंच से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया था कि पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दें। इसपर जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने पटना विश्वविद्यालय को रेस में आकर कंपीट करने का सुझाव दे दिया था।
मांग से कम मिली बाढ़ राहत राशि
बीते साल बाढ़ के दौरान राज्य सरकार ने केंद्र से 7600 करोड़ की सहायता मांगी। राज्य सरकार ने बिहार में आई भयंकर बाढ़ का हवाला देकर केंद्र सरकार से राहत की मांग की। लेकिन, केंद्र से केवल 1200 करोड़ रुपये मिले।
सबसे बड़ा मुद्दा बना विशेष राज्य का दर्जा
लेकिन, सबसे बड़ा मुद्दा बिहार को विशेष राज्य के दर्जा का है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुरानी बात फिर दुहराई है कि विशेष राज्य के दर्जे के लिए उनकर संघर्ष जारी रहेगा और वे इसे लेकर रहेंगे। उन्होंने कहा कि बिहार हर मायने में बिहार पिछड़ा है, प्रति व्यक्ति आय के मामले में भी बिहार निचले पाएदान पर है। नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा की मांग सभी दलों व पूरे राज्य की है। बिहार विधानमंडल में सर्वसम्मति से इसका प्रस्ताव पारित है, जिसपर भाजपा की भी सहमति है। 15 वें वित्त आयोग में इसकी चर्चा होगी।
विशेष दर्जा पर भाजपा का रूख
राज्य व केंद्र दोनों जगह राजग की 'डबल इंजन' की सरकार है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी के इस कोर इश्यू पर केंद्र सरकार को सीमत करने में सफल नहीं हो सके हैं।
केंंद्रीय मंत्री इंद्रजीत सिंह ने 11 अप्रैल 2017 को लोकसभा में कहा था कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का कोई प्रस्ताव ही नहीं है। हाल की बात करें तो केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता रामकृपाल यादव ने बीते 31 मई को कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता, आर्थिक सहायता दी जाएगी। भाजपा नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. सीपी ठाकुर ने बीते 17 जून को कहा कि बिहार को विशेष राज्य के दर्जा की जरूरत नहीं है।
बिहार में नीतीश कुमार के सहयोगी व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी कहते रहे हैं कि बिहार को विशेष दर्जे की नहीं, विशेष पैकेज की जरूरत है।
बड़ा सवाल: क्या होगा आगे?
सवाल यह है कि अगर विशेष राज्य का दर्जा जदयू का कोर इश्यू है और भाजपा इसपर अपना स्टैंड नहीं बदलती तो आगे क्या होगा? ऐसे में आश्चर्य नहीं कि बिहार की अन्य बड़ी मांगों की अनसुनी की पृष्ठभूमि में विशेष राज्य का मुद्दा बड़े सियासी उलटफेर का कारण बन जाए। इसे लेकर 19 सितंबर 2012 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अधिकार रैली में की गई उस घोषणा का उल्लेख भी जरूरी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो विशेष राज्य का दर्जा दिलाने में मदद करेगा, वे उसी की सरकार बनाने में मदद करेंगे।