Rajendra Prasad Birth Anniversary: राजेंद्र बाबू को बंगले से नहीं रहा था मोह, कुटिया में ली थी अंतिम सांस
तीन दिसंबर 1884 को सिवान में जन्मे देश में प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की कर्मभूमि पटना रही। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उन्होंने अपना बंगला छोड़कर राजधानी स्थित बिहार विद्यापीठ में बने खपरैल के मकान में जिदंगी गुजारी।
प्रभात रंजन, पटना। अपने माता-पिता के पांच संतानों में सबसे छोटे राजेंद्र प्रसाद मेधावी छात्र रहे। तीन दिसंबर 1884 को सिवान जिले के जीरादेई ग्राम में जन्मे प्रसाद की कहानी औरों से काफी अलग रही। देश के पहले राष्ट्रपति की कर्मभूमि पटना ही रही। राष्ट्रपति बनने से पूर्व और बाद में उन्होंने अपना लंबा समय बिहार विद्यापीठ में व्यतीत किया। राष्ट्रपति पद से हटने के बाद बंगला छोड़ बिहार विद्यापीठ में बने खपरैल के मकान में अपनी जिदंगी की आखिरी सांस 28 फरवरी 1963 को ली। अतीत के इतिहास को समेटे आज भी राजेंद्र बाबू की कुटिया ऐतिहासिक धरोहरों के रूप में से एक है।
राष्ट्रपति के कार्यकाल खत्म होने के बाद लौटकर आए थे विद्यापीठ
बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष विजय प्रकाश ने बताया कि राजेंद्र बाबू का सदाकत आश्रम से गहरा संबंध रहा। राजधानी में विद्यापीठ की स्थापना महात्मा गांधी ने छह फरवरी 1921 में की थी। इस मौके पर महात्मा गांधी, मोहम्मद अली के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी थे। डॉ. प्रसाद को कॉलेज का प्राचार्य बनाया गया था। विद्यापीठ से राजेंद्र प्रसाद का जब तक जुड़ाव रहा, बुलंदियों को छूता रहा। बिहार विद्यापीठ की मंत्री और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पोती तारा सिन्हा की मानें तो बाबा का बिहार विद्यापीठ से गहरा लगाव रहा है। वे 1921 से 1946 तक बिहार विद्यापीठ परिसर में एक खपरैल मकान में रहकर जीवन व्यतीत करते रहे। उसके बाद अंतरिम सरकार में बतौर खाद्य व कृषि मंत्री बनकर वे दिल्ली चले गए। उसके बाद बिहार विद्यापीठ की स्थिति थोड़ी गड़बड़ होने लगी। विद्यापीठ अध्यक्ष विजय प्रकाश ने बताया कि राष्ट्रपति पद से हटने के बाद राजेंद्र प्रसाद का जुड़ाव बिहार विद्यापीठ के प्रति रहा। वे दिल्ली से 14 मई 1962 को बिहार विद्यापीठ आ गए। 28 फरवरी 1963 को दुनिया से विदा हो गए।
स्मृतियों को जीवित रखने के लिए म्यूजियम का होगा निर्माण
बिहार विद्यापीठ के अध्यक्ष ने बताया कि राजेंद्र बाबू को दुनिया छोड़ने के बाद उनके धरोहरों को विद्यापीठ जिंदा रखा है। उन्होंने जिस कमरे में जीवन गुजारने के साथ अंतिम सांस ली उसको म्यूजियम के रूप में विकसित किया गया है। आने वाले दिनों में सवा तीन करोड़ रुपये से भव्य म्यूजियम का निर्माण होगा। यहां उनके जीवन से जुड़े धरोहर को संरक्षित किया जाएगा। अगले वर्ष तक विद्यापीठ परिसर में भव्य म्यूजियम बनकर तैयार हो जाएगा।