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Interview: बिहार विधानसभा के स्‍पीकर हैं विजय चौधरी, लौटे हैं विदेश से... खुलकर बातें की, जानें...

विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी चार दशकों से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं। बैंक अधिकारी की नौकरी छोड़ पहली बार कांग्रेस के टिकट पर 1982 में विधायक बने। जागरण से की खास बातचीत।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Tue, 08 Oct 2019 10:57 AM (IST)Updated: Wed, 09 Oct 2019 11:06 PM (IST)
Interview: बिहार विधानसभा के स्‍पीकर हैं विजय चौधरी, लौटे हैं विदेश से... खुलकर बातें की, जानें...
Interview: बिहार विधानसभा के स्‍पीकर हैं विजय चौधरी, लौटे हैं विदेश से... खुलकर बातें की, जानें...

पटना [अरविंद शर्मा]। विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी चार दशकों से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं। बैंक अधिकारी की नौकरी छोड़कर पहली बार कांग्रेस के टिकट पर 1982 में विधायक बने। बिहार प्रदेश कांग्रेस के महासचिव भी रहे। 2005 में नीतीश कुमार के साथ आए। 2009 में प्रदेश जदयू की कमान संभाली। उनके नेतृत्व में ही जदयू ने 2010 के विधानसभा चुनाव में शानदार वापसी की। होड़ और जोड़-तोड़ की राजनीति से हमेशा दूर रहने वाले चौधरी राज्य सरकार के कई महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री रह चुके हैं। दलगत राजनीति में रहते हुए वह शुचिता और प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते रहे। अब स्पीकर हैं तो निष्पक्षता की पहचान भी जुड़ गई है। उनसे लंबी बातचीत के प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश -

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सवाल: बिहार जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से गुजर रहा है। आप युगांडा में आयोजित इसी विषय पर वैश्विक कार्यशाला में भाग लेकर लौटे हैं। विधायिका को इससे निपटने के लिए क्या करना चाहिए? मैं बिहार के संदर्भ में जानना चाहता हूं। 

- देखिए, जलवायु परिवर्तन ज्वलंत मुद्दा है। यह भारत ही नहीं पूरी दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या के रूप में खड़ा है। कंपाला में सीपीए सम्मेलन के दौरान कई विषयों के साथ जलवायु परिवर्तन-उपलब्धियां-चुनौतियां एवं विधायिका की भूमिका विषय पर राष्ट्रमंडल के सदस्य देशोंं के प्रतिनिधियों ने खुलकर अपनी भावनाओं का इजहार किया। हमलोगों ने भी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत में किए जा रहे कार्यों का उल्लेख किया। सबकी आमराय थी कि प्राकृतिक संसाधनों के बेतरतीब इस्तेमाल एवं उनके संरक्षण-संवद्र्धन के प्रति लापरवाही से समस्या गंभीर बनती जा रही है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं जल संचयन के कारगर तरीके के नहीं होने से भी समस्या जटिल होते जा रही है।  अच्छी बात है कि बिहार की विधायिका पहले से सतर्क है। इसी साल 13 जुलाई को ऐतिहासिक पहल की गई है। मुख्यमंत्री एवं मंत्रियों समेत दोनों सदनों के सदस्यों ने अधिकारियों के साथ मिलकर पूरा दिन मंथन किया। इस दौरान सैकड़ों सुझाव आए, जिनकी समीक्षा के बाद सरकार ने जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम की शुरुआत की। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में विधायिका की सक्रियता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है। 

सवाल: सीपीए सम्मेलन में आपने बिहार के बारे में दुनिया को क्या बताया? 

- सबको पता है कि सीमित संसाधनों के बावजूद बिहार पिछले करीब दो दशकों से तेजी से तरक्की कर रहा है। सीपीए सम्मेलन में बिहार एवं देश के अन्य राज्यों के साथ विदेशी प्रतिनिधि भी आए थे। हमने उन्हें बताया कि पूरा देश अभी महात्मा गांधी की 15वीं जयंती मना रहा है। किंतु गांधीवादी विचारों एवं नीतियों को लागू करने में बिहार सबसे आगे है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण नशाबंदी कानून को लागू करना है। गांधी कहते थे कि विकास की नीतियों के केंद्र में मनुष्य होना चाहिए। शराब पीने के बाद आदमी जानवर से भी बदतर हो जाता है। बिहार ने पांच हजार करोड़ के राजस्व नुकसान की चिंता किए बगैर समाज हित में शराबबंदी कानून बनाया और उसे लागू भी किया। इसके अलावा पंचायती राज एवं सरकारी संस्थाओं में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया जा रहा है। नल-जल योजना के तहत शहर से गांव तक प्रत्येक घर में पाइप से पेयजल की आपूर्ति एवं निर्बाध बिजली सब ऐसे मानक हैं, जिसमें बिहार न सिर्फ अग्र्रणी है, बल्कि कई दूसरे प्रदेश भी इसका अनुकरण कर रहे हैं। 

सवाल: विदेशों में बसे बिहारियों ने भी आपसे मुलाकात की। आपने उन्हें आमंत्रित भी किया है। क्या है उनके दिल में? बिहार के बारे में कैसी तस्वीर है? 

- बिहार के बारे में सिर्फ प्रवासी बिहारी ही क्यों? दूसरे भारतीयों को भी अहसास है कि बहुत कुछ बदल गया है। मैं जहां भी गया, वहां उस देश में रहने वाले बिहारी मूल एवं भारतीयों से अवश्य मिला। सबने बिहार के परिवर्तन को सराहा। कई ऐसे लोग भी मिले, जिन्होंने हाल के वर्षों में अपने गांव की यात्रा की थी। उन्होंने अपना अनुभव बताया कि 15-20 साल पहले उन्हें अपने गांव में कैसा महसूस होता था और अब कैसा होता है। सड़क से लेकर बिजली एवं कानून-व्यवस्था का जिक्र करते हुए उन्होंने वर्तमान बिहार की तस्वीर साफ कर दी। 

सवाल: 26 अक्टूबर से राज्य सरकार जल-जीवन-हरियाली अभियान चलाने जा रही है। इसमें विधायिका कैसे सहायक हो सकती है? 

- विधायिका की भूमिका तो इसकी बुनियाद में ही है। दोनों सदनों के सदस्यों ने विधानमंडल के सेंट्रल हॉल में दिनभर के विमर्श के बाद सहमति बनाई थी। उसके बाद ही सरकार ने अंतिम रूप दिया है। इसके तहत वर्षा जल एवं ऊर्जा संरक्षण के अलावा कई ऐसे काम किए जाने हैं, जिसमें आम लोगों की भागीदारी जरूरी है। विधायकों का जुड़ाव आम लोगों से सीधा होता है। जलस्रोतों का पुनर्भरण, पौधारोपण एवं हरित ऊर्जा के लिए आमलोगों को प्रेरित-प्रोत्साहित करने में विधायिका की बड़ी भूमिका होगी। ग्र्रामीण क्षेत्रों में तो और भी जरूरी है। विधायक सक्रिय होंगे तो लोग आकर्षित होकर अभियान से जुड़ेंगे। अगली पीढिय़ों को प्रेरणा भी मिलेगी। 

सवाल: विधानसभा की नियुक्तियों में किस तरह की निष्पक्षता बरती जा रही है। कई अभ्यर्थियों का कहना है कि इंटरव्यू लेने वाले पक्षपात कर रहे हैं। 

- पूरी निष्पक्षता एवं अभूतपूर्व पारदर्शिता है। आवेदन से लेकर साक्षात्कार तक सबकी सूचना ऑनलाइन दी जा रही है। अभी तक लगभग आधे से अधिक नियुक्ति पत्र दिए भी जा चुके हैं। गड़बड़ी का एक भी मामला नहीं आया है। नियुक्ति से वंचित रह जाने वाले अभ्यर्थियों के मन की पीड़ा स्वाभाविक है। उनके प्रति मेरी सद्भावना है। मेहनत करें और आगे बढ़ें। 

सवाल : चतुर्थ श्रेणी के महज 36 पदों के लिए साढ़े पांच लाख आवेदन आए हैं। इंटरव्यू के आधार पर नियुक्ति होनी है। कई अभ्यर्थी उच्च शिक्षित हैं। आखिर साढ़े पांच लाख में 36 का चयन कितना निर्दोष और निष्पक्ष हो सकता है। 

- आवेदन चाहे जितने लाख आए। अभ्यर्थियों के लिए चयन का पैमाना एक है। आकलन का तरीका भी समान है। वही पैमाना सभी अभ्यर्थियों पर लागू है। यह सही है कि बड़ी संख्या में आवेदन आए हैं। किंतु चयन का कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता है। इसलिए पारदर्शिता के साथ स्थापित पैमाने से ही अभ्यर्थियों का चयन किया जा रहा है। 

सवाल: आपके कार्यकाल के चार साल पूरे होने जा रहे हैं। इस दौरान आपने कैसा महसूस किया। क्या दिक्कत हुई-क्या सहूलियत? 

- अभी तक के अपने कार्यकाल से संतुष्ट हूं। पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहता हूं कि मुझे किसी भी विधायी कार्य अथवा दायित्व के निष्पादन में किसी भी दल अथवा सरकार की तरफ से कभी किसी तरह का दबाव नहीं दिया गया। मैंने जब-जो उचित पाया, उसमें सरकार के साथ विपक्ष का भी सहयोग मिला। विधानसभा से मेरा रिश्ता 37 वर्षों से है। अध्यक्ष बनने से पहले सदस्य के रूप में कार्यवाही से लेकर विधानसभा सचिवालय तक में अपने अनुभव हैं। अध्यक्ष के रूप में दायित्व निभाने में सरकार के विपक्षी दलों का भी सहयोग मिलता आ रहा है। यदि ऐसा नहीं होता तो इतने परिवर्तन नहीं हो सकते थे। सबकी राय से मैंने कई संशोधन भी किए। विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली में जरूरी संशोधन किया। विधानसभा सचिवालय में नियुक्तियों के लिए नई नियमावली बनाई। पहली बार पदाधिकारी वर्ग की नियुक्ति बिहार लोकसेवा आयोग के जरिए हो रही है। सहायक एवं कनीय लिपिक वर्ग की नियुक्तियों में भी पूरी पारदर्शिता बरती गई है। 


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