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शांति से बोलो, किसने कहा युद्ध की बेला चली गई

बिहार ¨हदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर काव्य-गोष्ठी। ---

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 06:50 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 06:50 PM (IST)
शांति से बोलो, किसने कहा युद्ध की बेला चली गई
शांति से बोलो, किसने कहा युद्ध की बेला चली गई

- बिहार ¨हदी साहित्य सम्मेलन में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर काव्य-गोष्ठी

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ढील करो धनुष की डोरी, तरकश का कस खोलो, किसने कहा युद्ध की बेला चली गई शांति से बोलो, तड़प रहा आंखों के आगे भूखा ¨हदुस्तान समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध जो तटस्थ है समय लिखेगा उनके भी अपराध। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की लिखी चंद पंक्तियां सभागार में गूंज रही थीं। ये नजारा रविवार को बिहार ¨हदी साहित्य सम्मेलन सभागार में देखने को मिला। मौका था ¨हदी साहित्य सम्मेलन की ओर से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर काव्य गोष्ठी के आयोजन का।

कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा कि परिस्थितियां आज भी हैं। जब दिनकर ने 'समर शेष' है नामक बहुचर्चित और लोकप्रिय कविता लिखी थी। भारत का पीड़ित और भोजा समुदाय आज भी आश्वासनों और आशाओं पर जीवित है। स्वतंत्रता के 70 सालों में समाज बदल गया, भारतीय समाज में घृणा फैल गई, भ्रष्टाचार और चरित्र-हीनता को बढ़ावा मिला। धन की भूख पैदा की गई पर वंचित और भोले लोगों के लिए आज भी पूर्ण स्वराज स्वप्न बना हुआ है। ऐसे में दिनकर आज और भी प्रासंगिक लगते हैं।

अपने समय के सूर्य थे दिनकर

दिनकर ओज के किंतु मानवतावादी राष्ट्र कवि थे। वे सही अर्थो में अपने समय के सूर्य थे। वे नेहरू के अत्यंत निकट थे। वे तीन कार्य कालों तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे और उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था। दिनकर की जयंती समारोह पर पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि दिनकर की रचनाओं में कविता की शक्ति ही नहीं ज्ञान और विज्ञान में मिलता है। दिनकर अपनी रचनाओं में दिव्य प्रकाश लेकर आते रहे। जयंती के पर दिनकर के पौत्र अरविंद कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद, डॉ. मधु वर्मा, डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह, बच्चा ठाकुर तथा डॉ. विनय विष्णुपुरी ने अपने विचार व्यक्त किए।

कविताओं से गुलजार हुआ परिसर

जयंती के मौके पर शहर के साहित्यकारों और कवियों ने अपनी रचनाओं को पेश कर दिनकर को याद किया। वरिष्ठ कवि शायर घनश्याम ने 'ये बात सही है कि सताए हुए हैं हम, अपना वजूद फिर बचाए हुए हैं हम, को पेश कर तालियां बटोरीं। डॉ. शंकर प्रसाद ने 'लंबे सफर में गम भी बहुत थे मेरे सनम, तनहाइयों की धूप थी मैं दर-ब-दर ही था' व्यंग्य कवि ओम प्रकाश पांडेय व कवयित्री आराधना प्रसाद ने 'तुम्हारी याद के जुगनूं अजीब है हमारी पलकों पे आकर टहलते हैं' को पेश कर जयंती को यादगार बना दिया। डॉ. पुष्पा जमुआर, कवि डॉ. मेहता नगेंद्र, कालिंदी त्रिवेदी, डॉ. सीमा यादव, अमियनाथ चटर्जी, कुमार स्मृति, पूनम सिन्हा श्रेयसी, सागरिका राय, उदय शंकर शर्मा आदि ने अपनी रचनाओं को पढ़ा। मौके पर डॉ. अशोक प्रियदर्शी, प्रो. सुशील झा, डॉ. जर्नादन पाटिल, संजीव कर्ण, ओम प्रकाश वर्मा, देवेंद्र लाल आदि मौजूद थे। मंच का संचालन योगेंद्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. नागेश्वर प्रसाद यादव ने किया।


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