अब जहरीला धुआं नहीं उगलेंगी चिमनियां, आया जिगजैग ईंट-भट्टों का दिन
पटना में अब चिमनियों से धुआं उड़ते नहीं दिखाई देगा। यहां ईंट-भट्टे जिगजैग तकनीक से चलेंगे।
श्रवण कुमार, पटना। हर कोई अपडेट हो रहा है तो शहर क्यों नहीं। प्रदूषण को कम करने के लिए प्रशासन बेहतर उपाय अपनाने जा रहा है। ईंट-भट्टे की नई तकनीक जिगजैग से पटना शहर के आस-पास जहरीली धुआं उगलती चिमनियों के दिन लदने वाले हैं। यही एक वजह नहीं है कि सरकार ने इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए मजबूत कदम उठाए हैं।
वायु प्रदूषण में कमी के साथ-साथ भट्टों में ईंधन की कम खपत, ईंट की गुणवत्ता और उद्यमी को आर्थिक फायदा वो वजहें हैं, जिसके लिए स्वच्छतर तकनीक को सितम्बर माह से अनिवार्य किया जा रहा है। ईंट भट्टे की पारंपरिक तकनीक फिक्स चिमनी बुल्स ट्रेन्ज 31 अगस्त के बाद सिर्फ चित्रों में सिमट कर रह जाएगी। स्वच्छतर तकनीक में जिगजैग सर्वाधिक फायदे का सौदा साबित हो रहा है।
31 अगस्त तक का अल्टीमेटम
बिहार में इस वक्त करीब 6500 भट्टे स्थापित हैं। 2016 में ही बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने पटना शहर के आस-पास के भट्टों को स्वच्छतर तकनीक अपनाने का निर्देश दिया था। तब अगस्त 2016 तक का समय दिया गया था। लगभग एक चौथाई भट्टों ने तकनीक अपनाई। उनके अनुभव बेहतर रहे हैं। अब 31 अगस्त 2019 तक का अल्टीमेटम देते हुए नई तकनीक को अनिवार्य किया जा रहा है।
क्या है जिगजैग तकनीक
यों तो भट्टों के लिए कई स्वच्छतर तकनीक है। वर्टिकल साफ्ट , टनल क्लीन और जिगजैग प्रमुख हैं। हर दृष्टिकोण से फायदेमंद होने के कारण बिहार में जिगजैग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस भट्टे में ईंधन की खपत 20 से 25 प्रतिशत कम होती है। इस भट्टे में 80 प्रतिशत से अधिक ईंटें क्लास वन की होती है। इसमें कार्बन डाई आक्साइड और पीएम उत्सर्जन काफी कम होता है। प्रतिदिन इस भट्टे से तीस से पैंतीस हजार ईंट तैयार हो सकता है।
प्रदूषण की बड़ी समस्या
वन एवं पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव त्रिपुरारी शरण ने कहा कि पूरानी चिमनी वाले भट्टों से प्रदूषण की बड़ी समस्या सामने आ रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरण की चिंता करते हुए पुराने भट्टों पर पाबंदी के लिए 31 अगस्त की तिथि निर्धारित किया है। इसके बाद पुराने भट्टे नहीं चलेंगे।