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पटना में धुएं से भरा छल्ला हवा में घोल रहा जहर, जानें आपको कैसे पहुंचा सकता है ये नुकसान

पटना में शहर के आसपास खेतों में गेहूं की हार्वेस्टर से कटाई के बाद बचे डंठल को किसानों द्वारा जलाया जा रहा है। जिससे पूरे शहर की हवा जहरीली होती जा रही है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 10 May 2019 02:11 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2019 02:11 PM (IST)
पटना में धुएं से भरा छल्ला हवा में घोल रहा जहर, जानें आपको कैसे पहुंचा सकता है ये नुकसान
पटना में धुएं से भरा छल्ला हवा में घोल रहा जहर, जानें आपको कैसे पहुंचा सकता है ये नुकसान
श्रवण कुमार, पटना। हे अन्नदाता! आप तो खेतों में खुशहाली उपजाते हो। फिर ये जानलेवा चलन क्यों? आपका ये चलन जान ले लेगा। पटना में शहर के आसपास खेतों में गेहूं की हार्वेस्टर से कटाई के बाद बचे डंठल को किसानों द्वारा जलाया जा रहा है। खेतों की लपट का असर शहर तक होने लगा है। अगर ऐसा ही रहा तो पंजाब, हरियाण, दिल्ली जैसे महानगरों की तरह ही पटनाइटस को भी घुटना होगा।


पराली ने फैलादी दहशत
दिल्ली जैसे शहरों के आसपास के गांवों में किसानों द्वारा पराली जलाने के बाद उठते धुएं से जिस तरह हवा जहरीली हुई, वह जानलेवा साबित होने लगी। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित कई शहरों में पराली जलाने पर रोक का आदेश जारी करना पड़ा। कई प्रदेशों में तो अदालतों को भी पराली जलाने पर रोक के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा।

शहर तक पड़ रहा असर
पटना के आसपास जलाई जा रही पराली का धुआं भी शहर तक पहुंचने लगा है। हालांकि अधिकारी यह स्वीकार नहीं कर रहे हैं पर पड़ताल में यह सच्चाई सामने आई है। फतुहा प्रखंड के नथुपुर की ऐसी ही तस्वीर सामने आई है। खेत में किसान पराली जला रहे हैं। आसपास के कई खेतों में हर दिन ऐसे दृश्य देखने को मिल जा रहे हैं। दूसरी तरफ पटना में पिछले एक पखवारे में कई बार धुएं भरे छल्ले देखे गए हैं। जाड़े के दिनों के कोहरे और बरसात के बादल की तरह धुएं के छल्ले भीषण गर्मी में भी शहर पर मंडरा रहे हैं। पटना ऐसे भी प्रदूषित शहरों की सूची में शीर्ष पर है। शहर के ऊपर मंडराते धुएं के ये छल्ले कहीं जानलेवा न बन जाएं।




पराली को जलाएं नहीं, बनाएं कमाई का साधन
खेतों में पराली जलाने की आग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और दिल्ली होते हुए पटना तक भी पहुंच गई है। स्थिति चिंताजनक हो गई है। प्रशासनिक बेफिक्री का आलम यह है कि कहीं कोई रोक टोक नहीं है। इसे रोकने के लिए किसानों को खुद ही पहल करनी होगी।

दूसरे उपाय होंगे फायदेमंद
यह भी समझना होगा कि पराली खेतों में जलाने के बदले अगर दूसरे उपाय किए जाएं तो यह फायदेमंद साबित होगा। विशेषज्ञ बताते हैं कि एक टन पराली में साढ़े पांच किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलो फास्फोरस, 1.30 किलो सल्फर और 25 किलो पोटैशियम होता है। इससे गैस संयंत्र भी बन सकता है। पराली से खाद भी बनाया जा सकता है। अगर पराली को जलाने के बदले उपयोग किया जाए तो किसानों को फायदे मिल सकते हैं।

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