बालिका गृह यौन हिंसा: अपनी नाकामी छिपाने को छोटों का शिकार कर रहे बड़े अफसर
मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन हिंसा कांड में समाज कल्याण विभाग की लापरवाही उजागर हो चुकी है। लेकिन, अभी तक छोटे अधिकारियों पर ही कार्रवाई की गई है। जानिए मामला।
पटना [दीनानाथ साहनी]। मुजफ्फरपुर बालिका आश्रय गृह कांड के मुख्य आरोपित ब्रजेश ठाकुर की स्वयंसेवी संस्था (एनजीओ) 'सेवा संकल्प' पर समाज कल्याण विभाग और स्वास्थ्य विभाग के बड़े अफसरों ने खूब धन लुटाया। अब सरकार से लेकर जांच में जुटे सीबीआइ के अधिकारी यह जानकर दंग हैं कि ब्रजेश की संस्थाओं पर धन लुटाने वाले अफसरों के पास कुल वित्तीय मद का ब्योरा क्यों नहीं उपलब्ध है? संचिकाएं कहां हैं? सिस्टम कठघरे में है और अपनी नाकामी छिपाने के लिए बड़े अफसर अब 'छोटों' का शिकार कर रहे हैं।
मगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि सबकी जवाबदेही तय होगी। दोषी बख्शे नहीं जाएंगे और उन्हें बचाने वाले भी नहीं बचेंगे। इससे जिम्मेवार अफसरों में हड़कंप है।
15 मार्च को टिस की रिपोर्ट आई पर सोए रहे अफसर
बिहार के बाजिका गृहों में अनियमितताएं उजागी करती टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआइएसएस) की रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग के अफसरों के पास 15 मार्च को ही आ गई थी। सवाल यह है कि तब इसके आधार पर बच्चियों के साथ अमानवीय सलूक करने वाले दरिंदों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इसपर समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद का कहना है कि रिपोर्ट 15 मार्च को नहीं, बल्कि औपचारिक रूप से विभाग के पास 27 मई को आई थी। हालांकि, सूत्र बताते हैं कि रिपोर्ट में इसे सौंपने की तारीख़ 15 मार्च ही है।
इतना ही नहीं, इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर 31 मई को एफआइआर दर्ज की गई, लेकिन उसी दिन मुख्य आरोपित ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ 'सेवा संकल्प' को एक नया टेंडर दिया गया। इसपर प्रधान सचिव सफाई देते हैं कि ब्रजेश ठाकुर को पर एफआइआर दर्ज होने जैसे ही जानकारी मिली, टेंडर रद कर दिया गया। सीबीआइ की जांच टीम ने रिपोर्ट सौंपे जाने की तारीख के विरोधाभास पर अफसरों से सवाल किया है।
छोटे अफसरों के निलंबन पर उठ रहे सवाल
वर्ष 2013 से ही समाज कल्याण विभाग द्वारा बालिका गृह चलाने के नाम पर ब्रजेश की संस्था को सालाना 40 से 45 लाख रुपये दिया गया। एक अन्य निलंबित पदाधिकारी ने गोपनीयतर के आग्रह के साथ कहा कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। ब्रजेश के पास बालिका गृह का टेंडर पिछले पांच सालों से था और उसके घर का चयन मुजफ्फरपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी धर्मेन्द्र कुमार सिंह ने किया था। विभाग के अफसरों से लेकर राज्य महिला आयोग की टीम और जज भी बालिका गृह का निरीक्षण करने जाते थे। फिर भी वे लोग बालिका गृह की हकीकत सामने क्यों नहीं लाये, यह बउ़ा सवाल है।
बहरहाल, बड़ी मछलियों को छोउ़ छोअे पर केवल निजंबन की कार्रवाई सवालों के घेरे में है। हालांकि, समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद कहते हैं कि प्रशासनिक नाकामी की जांच अभी खत्म नहीं हुई है। अभी यह शुरूआती कार्रवाई है। आगे भी कार्रवाई होगी। प्रशासनिक स्तर पर जो लापरवाही हुई है उसकी जवाबदेही तय की जाएगी।