बिहार में सियासी जंग की दूसरी पारी शुरू, नजरें लोकसभा व विधानसभा चुनावों पर
बिहार में उपचुनाव व राज्यसभा चुनाव के बाद सियासत का नया रंग दिख रहा है। आगे लोकसभा व विधानसभा चुनावों को देखते हुए सियासी जंग की दूसरी पारी शुरू हो सकती है।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार उपचुनाव के नतीजे के बाद राज्य में सामाजिक समीकरण और सियासी जोड़तोड़ पर फोकस बढ़ा दिया गया है। दोनों गठबंधनों में बेताबी है। अगले कुछ दिनों में सियासी जंग का दूसरा दौर शुरू हो सकता है, क्योंकि दोनों तरफ से दूसरे दलों के विधायकों एवं नेताओं के संपर्क में होने का दावा किया जा रहा है। अब सबों की नजरें आगामी चुनावाें पर हैं।
राजद की नजर कुशवाहा पर
राजद की नजर रालोसपा प्रमुख एवं केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों पर है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी की टोली के पाला बदलने के बाद राजग भी राजद-कांग्रेस के कुछ वैसे विधायकों की बेकरारी का अध्ययन कर रहा है, जो अपने गृह क्षेत्र के सामाजिक फार्मूले के हिसाब से सियासी अनुलोम-विलोम में जुटे हैं।
दल-दिल व पाला बदल का खेल जारी
बिहार में दल-दिल और पाला बदलने का ताजा खेल उपचुनाव एवं राज्यसभा चुनाव के पहले शुरू हुआ। शुरुआत जदयू विधायक सरफराज आलम से हुई, जो विधानसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर राजद के टिकट पर अररिया लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में कूद गए। कुछ ही दिन बाद 'हम' प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी पाला बदल लिया।
मांझी अभी पूरी तरह राजग को छोड़कर राजद प्रमुख लालू प्रसाद के हुए भी नहीं थे कि कांग्रेस में भी महाभारत शुरू हो गया। विधान परिषद के चार सदस्यों के साथ अशोक चौधरी ने भी अपने पिता महावीर चौधरी की परंपरागत पार्टी को बाय कर दिया। कांग्रेस को छोड़कर उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया।
सरफराज, जीतनराम मांझी और अशोक चौधरी ने तो बीच रास्ते में ही अपना दल और दिल बदल लिए, किंतु दोनों गठबंधनों में अभी दर्जनों ऐसे नेता हैं, जिन्हें मंजिल के पहले सहारे की तलाश है। किसी विधायक को सांसद बनना है तो किसी को अपना प्रोफाइल बदलना है।
नजरें लोकसभा व विधानसभा चुनावों पर
ऐसे में लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट होते ही इधर-उधर के दरवाजे पर नेताओं की दस्तक शुरू हो सकती है। नजरें अगले विधानसभा चुनाव पर भी हैं। सियासी-सामाजिक समीकरणों और जरूरतों के हिसाब से कई नेताओं का पाला बदलना तय माना जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने तो खुलकर सबको महागठबंधन के साथ आने का ऑफर भी दे रखा है। रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशïवाहा के शिक्षा बचाओ धरने में राजद के बड़े नेताओं ने शिरकत करके पार्टी के इरादे स्पष्ट भी कर दिए हैं।
नजरें चुनावों पर हैं, इसके लिए पाटियों में रणनीति भी बनाई जा रही है। हालांकि, सभी जीत के दावें भी कर रहे हैं। भाजपा की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीत का दावा करते हैं। कांग्रेस राहुल गांधी तो जदयू मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एकजुट है। राजद लालू-तेजस्वी में आस्था व्यक्त करता रहा है।
अभी तक मैच ड्रॉ
तोडफ़ोड़ की राजनीति हो या चुनाव की। अभी तक दोनों गठबंधनों में बराबरी का मैच रहा है। भाजपा-जदयू एवं राजद-कांग्रेस के लिए उपचुनाव के नतीजे ड्रॉ मैच साबित हुआ। सभी दलों ने अपने खाते की सीटों पर कब्जा बरकरार रखा। राज्यसभा चुनाव में भी रिक्त सीटों के बराबर नामांकन पत्र भरे जाने के कारण आरपार के हालात नहीं बन सके। इससे सभी प्रमुख दलों ने अपने हिस्से की सीटें आसानी से निकाल लीं।
इसी तरह तोडफ़ोड़ में भी दोनों का पलड़ा अभी तक बराबर दिख रहा है। एक ने जीतनराम मांझी को तोड़ा तो दूसरे ने अशोक चौधरी को। संकेत साफ है कि आगे का मैच दिलचस्प होने वाला है।