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शक के निगाहों से होकर गुजरती है बुजुर्ग महिला और मुसलमान दर्जी की दोस्ती

पटना फिल्मोत्सव के दूसरे दिन कालिदास रंगालय में तीन फिल्मों की प्रस्तुति सभागार में की गई

By JagranEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 02:22 AM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 02:22 AM (IST)
शक के निगाहों से होकर गुजरती है बुजुर्ग महिला और मुसलमान दर्जी की दोस्ती
शक के निगाहों से होकर गुजरती है बुजुर्ग महिला और मुसलमान दर्जी की दोस्ती

पटना। पटना फिल्मोत्सव के दूसरे दिन कालिदास रंगालय में तीन फिल्मों की प्रस्तुति सभागार में की गई। दूसरे दिन निहारिका पोपली निर्देशित हिदी फिल्म 'रसन-पिया' बलाका घोष के निर्देशन में हिदी फिल्म 'शम्भारिका खरोलिका एवं किसलय के निर्देशन में बनी फिल्म 'ऐसे ही' की प्रस्तुति सभागार में हुई।

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फिल्म रसनपिया में दिखी ग्वालियर संगीत घराने की कहानी -

फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की पहली फिल्म की प्रस्तुति ग्वालियर संगीत घराने की अटूट परंपरा को दिखाया गया। घराने के अब्दुल राशिद खान पांच सौ साल पुराने ग्वालियर संगीत घराने की अटूट परंपरा के जीवित कड़ी थे। वो 107 साल की उम्र में भी संगीत की रचना करने, संगीत शिक्षा के लिए यात्राएं करने और संगीत प्रस्तुति देने वाले वरिष्ठ संगीतकार थे। 19 अगस्त 1908 को रायबरेली, उत्तर प्रदेश में जन्मे अब्दुल राशिद खान का निधन कोलकाता में हुआ। अनेक बंदिशों की रचना करने वाले उस्ताद अब्दुल राशिद खान ने सैकड़ों शिष्यों को संगीत का ज्ञान दिया। अमीर खुसरो, सूरदास, कबीर और मिर्जा गालिब आदि की रचनाओं को उस्ताद के संगीत और आवाज में सुनना अद्भुत अहसास था। फिल्म में महान शास्त्रीय संगीतकार के बचपन की स्मृतियों के अलावा ख्याल गायिकी परंपरा से लेकर हिदुस्तानी संगीत और लोक संगीत की विविध परंपराओं को जानने का अवसर दर्शकों को मिला।

आधुनिक सिनेमा के तत्वों की मौजूदगी की शिनाख्त करती खरोलिका -परिसर में दूसरी फिल्म बलाका घोष निर्देशित 'शम्भालिका खरोलिका' दिखाई गई। जिसमें आधुनिक सिनेमा की जड़ों को भारत में मौजूद गतिशील चित्रों, फ्रेम, चित्रों के माध्यम से कहानी कहे जाने की कोशिशें, पेपर स्ट्रीप्स, पट्टचित्रों आदि की परंपरा को दिखाई गई। फिल्म बताती है कि दक्षिण भारत के राजा भुवनायकमल्ला सोमेश्वरा ने 11वीं सदी में लिखा था कि गतिशील छवियों की कला भविष्य में मनोरंजन की प्रमुख कला बनेगी। गतिशील चित्रों और छवियों के जरिए कहानी कहने की परंपरा को दिखाई गई।

फिल्म में दिखा जीवन का स्याह-सच -

फिल्म उत्सव के दूसरे दिन की तीसरी फिल्म युवा फिल्म निर्देशक किसलय द्वारा बनाई गई 'ऐसा ही' की प्रस्तुति सभागार में की गई। फिल्म में बुढ़ापे की कहानी को दिखाया गया। विधवा को जीवन के सूत्र देने वाले परिवार के सदस्यों के रवैये सभी को आश्चर्यचकित करती है। शहरी मध्य वर्ग की नीचता जिसे सहानुभूति का नाम दिया जाता है। मिसेज शर्मा जो बुजुर्ग है उनका मुसलमान दर्जी से कढ़ाई सीखना और उससे दोस्ती करना शक की निगाहों से देखा जाता है। उस दौर में भी मिसेज शर्मा को अपना बचाव करना पड़ता है और अपने कमाई की सफाई भी अपने परिवार और पूरी दुनिया के समाने देना पड़ता है। फिल्म के दौरान हिदी के कथाकार स्वयं प्रकाश को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। जिनका निधन शनिवार को सुबह में हुआ। सभा के दौरान जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव सुधीर सुमन ने कथाकार के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। वही फिल्मोत्सव के दौरान कालिदास रंगालय परिसर में बुक स्टॉल भी लगाया गया है। जहां पर सिने प्रेमी अपने पसंद की रचनाओं की खरीदारी की।

फिल्मोत्सव में आज

नई पीढ़ी के लिए 'दी अननोन सिटी -माय ओन सिटी फ्लडेड' की प्रस्तुति दोपहर दो बजे से। वही निर्देशक सई परांजपे द्वारा निर्देशित फिल्म 'सिकंदर' की प्रस्तुति। प्रभास चंद्र निर्देशित फिल्म 'मेरा राम खो गया है' की प्रस्तुति एवं निर्देशक से बातचीत। वार्ड नम्बर छह पर आधारित नया सत्य नाटक के साथ फिल्मोत्सव का समापन।


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