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फिल्म महोत्सव के दूसरे दिन वुमानिया में दिखी महिलाओं की संघर्ष-गाथा

पटना फिल्मोत्सव के दूसरे दिन युवाओं और सिनेमा विद्यार्थियों की पांच लघु फिल्मों की प्रस्तुति

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 10:34 PM (IST)Updated: Mon, 10 Dec 2018 10:34 PM (IST)
फिल्म महोत्सव के दूसरे दिन वुमानिया में दिखी महिलाओं की संघर्ष-गाथा
फिल्म महोत्सव के दूसरे दिन वुमानिया में दिखी महिलाओं की संघर्ष-गाथा

पटना फिल्मोत्सव के दूसरे दिन युवाओं और सिनेमा विद्यार्थियों की पांच लघु फिल्मों की प्रस्तुति कालिदास रंगालय के सभागार में हुई। सभागार में वुमानिया, गुब्बारे, छुट्टी, बी - 22 और लुकिंग थु्र फेंस का प्रदर्शन हुआ। फिल्म 'वुमानिया' बिहार के एक महादलित टोले में बनाए गए 'सरगम' बैंड से जुड़ी महिलाओं की सफलता की गाथा है। फिल्म आलोचक संतोष सहर ने कहा कि यह फिल्म बिहार में महिला सशक्तिकरण के नाम पर अब तक घटित हो चुकी कई-कई भयावह व त्रासद कथाओं के बीच से जीवित रह गई चंद कथाओं में से एक है। जल, जंगल, जमीन हड़पे जाने की त्रासदी और उसके विरोध का जज्बा -

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फिल्म महोत्सव के दौरान महिला बैंड पर केंद्रित फिल्म 'वुमानिया' महादलित महिलाओं की संर्घष गाथा को बयां कर रही थी। वही फिल्म 'अगर वो देश बनाती' में छत्तीसगढ़ में भूमि कानूनों का सहारा लेकर अपने हक की लड़ाई वाली महिलाओं के जज्बे पर आधारित है। दर्शकों को ये दोनों फिल्में पसंद आई। फिल्म में महिलाएं और पुरुष अपने हक की लड़ाई लड़ते नजर आते हैं।

कोयला खदान, थर्मल पावर और विभिन्न किस्म के खदानों और परियोजनाओं के लिए आदिवासियों से जल, जंगल, जमीन को किस प्रकार सरकार और कारपोरेट कंपनियों के निर्माता हड़पते हैं, फिल्म में इसे बखूबी दिखाया गया। वही दूसरी ओर फिल्म प्रस्तुति के दौरान फिल्म 'गुब्बारे' में गुब्बारे बेचने वाली एक लड़की और एक वृद्ध की दिल को छू लेने वाला प्रसंग देख दर्शक भावुक हो गए। पिता की दुर्घटना के कारण लड़की गुब्बारे बेचने को मजबूर पर उसके गुब्बारे कोई नहीं खरीदता। पार्क में बैठा एक वृद्ध उसकी मदद करने के लिए उसके सारे गुब्बारे खरीद कर अपने उन दोस्तों को याद करते हुए आसमान में उड़ा देता है, जो अब संसार में नहीं है। वृद्ध के चेहरे पर मौजूद एक विवशता और अकेलापन फिल्म को गहरे अर्थ प्रदान कर दर्शकों को बांधे रखी। गरीबों के प्रति मकान मालिक का दु‌र्व्यवहार :

वही फिल्म प्रस्तुति के दौरान फिल्म 'बी-22' और 'लुकिंग थ्रू' छात्रों द्वारा निर्मित थी। दोनों फिल्मों में महानगर में गरीबों के प्रति मकान मालिकों और अपार्टमेंट में रहने वाले उच्च और मध्यम वर्ग के दोयम दर्जे के व्यवहार पर सवाल उठाए। जो गरीब हैं, उनके रास्ते तक बंद कर दिए जाते हैं। दैनिक व्यवहार में इस्तेमाल के लिए पानी भी उन्हें सहजता से हासिल नहीं होता। वही आइआइटी से जुड़े लोगों द्वारा बनाई गई फिल्म 'छुट्टी' भी दर्शकों को पसंद आई। मंच पर जीवंत हुए भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर -

फिल्म महोत्सव के दौरान लोक नाटककार और नर्तक भिखारी ठाकुर के जीवन पर आधारित फिल्म 'नाच, भिखारी नाच' दर्शकों को बहुत पसंद आई। फिल्म के दौरान कलाकारों में रामचंद्र माझी, शिवलाल बारी, लखिचंद माझी एवं रामचंद्र माझी की स्मृतियों, गीत-संगीत की उनकी प्रस्तुतियों पर आधारित फिल्मों को दर्शकों ने सराहा। फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह भिखारी ठाकुर ने नाट्य-दल बनाकर अपने नृत्य-संगीत के जरिए समाज की समस्या और कुरीतियों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के साथ समाज को एक नई दिशा दी। इसका भोजपुरी समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ा। जैनेंद्र दोस्त और शिल्पी गुलाटी निर्देशित फिल्म ने दर्शकों को बांधे रखा। भिखारी ठाकुर आज भी प्रासंगिक

फिल्म प्रस्तुति के दौरान 'नाच, भिखारी नाच' के फिल्म निर्देशक जैनेंद्र दोस्त ने दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर के लोक नाटकों और भोजपुरी की संस्कृति तथा लौंडा नाच के सामाजिक-राजनीतिक यथार्थ पर शोध किया था। जैनेंद्र ने कहा कि भिखारी ठाकुर ने रोजी-रोटी के लिए विस्थापन, स्त्री के सम्मान, नशा के कुप्रभाव, संयुक्त परिवार में बढ़ती विभाजनकारी प्रवृति जैसी समस्याओं को उठाया। जन कवि विद्रोही पर आधारित फिल्म का प्रदर्शन -

जन कवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही' के जीवन और कविता-कर्म पर आधारित फिल्म 'मैं तुम्हारा कवि' की प्रस्तुति सभागार में हुई। फिल्म के निर्माता-निर्देशक नितिन की दूसरी फिल्म दर्शकों को पसंद आई। 'मैं तुम्हारा कवि हूं' भी एक नये और युवा फिल्मकार की फिल्मों के विषय के चुनाव संबंधी दृष्टि और समझ को सामने लाती है। फिल्म में विद्रोही की जुबान से उनकी कविताओं को सुनना और उन्हें सुनाते हुए देखना काफी प्रभावशाली लग रहा था।

मॉब लिचिंग में मारे गए लोगों की दिखी पीड़ा -

पटना फिल्म महोत्सव के दौरान मॉब लिचिंग में मारे गए लोगों के परिजनों की पीड़ा फिल्म 'लिंच नेशन' में दिखाई दी। पिछले साल चलती ट्रेन में 16 साल के लड़के जुनैद की भीड़ द्वारा हत्या से मर्माहत दिल्ली के स्वतंत्र पत्रकार अशफाक ने अपने दोस्त फुरकान अंसारी, विष्णु सेजवाल और शहीद अहमद से सलाह कर फिल्म का निर्माण की। फिल्म में उत्पीड़ित परिवारों की व्यथा और उनके सवालों के जरिए दर्शकों को बेचैन करती है। आज रंगालय में इन फिल्मों का प्रदर्शन -

स्पेन कहानी की प्रस्तुति, फिल्म निर्देशक मिताली विश्वास के साथ संवाद एवं पागल की डायरी का मंचन।


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