NDA में सीटों का बंटवारा- पहले LJP से हिसाब तब BJP से फाइनल बातचीत
मिशन 2019 के लिए एनडीए के घटक दलों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर मची हलचल के बीच जदयू पहले लोजपा से हिसाब-किताब करेगी उसके बाद ही वो भाजपा से बात करेगी।
पटना [अरुण अशेष]। एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों के बंटवारे का मामला यूं ही नहीं उलझा हुआ है। नए फरीक के तौर पर जुड़े जदयू को भाजपा से पहले लोजपा से हिसाब करना है। दोनों के बीच सबकुछ ठीक रहा तो दूसरे और अंतिम दौर की बातचीत भाजपा से होगी। बीच में रालोसपा के रुख का भी इंतजार है। उसको लेकर भाजपा में ही दुविधा है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भाजपा के संपर्क हैं। उनके भरोसेमंद लोग राजद में भी गंभीरता से संभावना की तलाश कर रहे हैं। एनडीए में जहां सीटों की कमी बताई जा रही है, राजद से मनमाफिक सीट मिलने का भरोसा है।
भाजपा नेतृत्व ने जदयू को बता दिया है कि वह पहले लोजपा से बातचीत करे। जदयू जिन सीटों की मांग कर रहा है, उनमें से चार सीटें लोजपा के खाते की हैं। नालंदा में जदयू की जीत हुई थी। 10 हजार से कम वोटों के अंतर से यहां लोजपा की हार हुई थी। इस सीट पर विवाद नहीं है।
मुंगेर लोजपा की जीती हुई सीट है। दूसरे नम्बर पर जदयू के राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह थे। वैशाली और खगडिया पर भी जदयू का दावा है। लोजपा मुंगेर छोडऩे के लिए राजी है। वैशाली और खगडिया पर भी वह अड़ी नहीं है। शर्त यह है कि जदयू बताए कि वह इन सीटों की भरपाई किन-किन सीटों से करेगा।
जदयू जिस दिन लोजपा को एवज वाली सीटों की सूची दे देगा, फैसला हो जाएगा। लोजपा के लिए अच्छी बात यह है कि उसके तीन सांसद-रामाकिशोर सिंह, वीणा देवी और चौधरी महबूब अली कैसर तकनीकी तौर पर ही उससे जुड़े हुए हैं। अगली बार चुनाव लडऩे के लिए ये सब दूसरे दलों के संपर्क में हैं।
रामाकिशोर सिंह तो राजद से बातचीत भी कर चुके हैं। उन्हें शिवहर या आरा से लड़ाया जा सकता है। वीणा देवी और लोजपा को एक दूसरे से थोड़ा मोह बचा हुआ है। वीणा देवी को एनडीए में बनाए रखने की कोशिश अंत तक जारी रहेगी।
मुंगेर पर जदयू समझौता कर लेगा, इसमें संदेह है। क्योंकि चुनाव हारने के बावजूद ललन सिंह इस क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। वे पूरी तैयारी में हैं। चौधरी महबूब अली कैसर पुराने कांग्रेसी हैं। उनके लिए महागठबंधन का दरवाजा खुला हुआ है।
लोजपा को सीटों के बदलैन में परेशानी नहीं है। उसका काम किसी सीट से चल सकता है। अन्य दलों में उम्मीदवारों के लिए सीट की खोज होती है। लोजपा का चलन इतर है। यहां सीट मिलने के बाद उम्मीदवार खोजे जाते हैं। संयोग से उसे मजबूत उम्मीदवार मिल भी जाते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में यही हुआ था। नॉमिनेशन के दिन तक योग्य उम्मीदवारों की खोज जारी थी।
लोकसभा चुनाव में भी चौधरी महबूब अली कैसर तभी कांग्रेस छोडकर लोजपा में आए, जब खगडिया की सीट लोजपा के कोटे में चली गई थी। गठबंधन की राजनीति में एक और फार्मूला चलन में आया है-सीट आपकी, कैंडीडेट हमारा।
यह जदयू का फार्मूला है। इसे उसने भाजपा पर लागू किया था। बाद में राजद ने कांग्रेस पर लागू किया। संभव है कि जदयू अगले लोकसभा चुनाव में इसे लोजपा पर आजमाए। वैसे, लोजपा के बारे में पुरानी धारणा बदल रही है।
सुप्रीमो रामविलास पासवान की विरासत सांसद चिराग पासवान में हस्तांतरित हो चुकी है। पार्टी के फैसले में उनकी मर्जी चलती है। चिराग को रामविलास पासवान की तरह सहज नहीं माना जाता है। वे मोलजोल में भरसक सख्त रुख अपना सकते हैं।