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चौंकिए नहीं; बिहार में अब मिट्टी से बनेगी पक्की सड़क, आधी होगी लागत

बिहार में सड़क निर्माण की यह नई पहल है। मिट्टी में सीमेंट, चूना-पत्थर और फ्लाई-ऐश मिलाकर पत्थर जैसी मजबूत सड़क बनाने की तैयारी की जा रही है। पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Thu, 04 Oct 2018 10:49 AM (IST)Updated: Thu, 04 Oct 2018 11:20 PM (IST)
चौंकिए नहीं; बिहार में अब मिट्टी से बनेगी पक्की सड़क, आधी होगी लागत
चौंकिए नहीं; बिहार में अब मिट्टी से बनेगी पक्की सड़क, आधी होगी लागत
पटना [जयशंकर बिहारी]। कंकड़-पत्थर और अलकतरे से बनने वाली सड़कें पुरानी हुईं। अब मिट्टी में सीमेंट, चूना-पत्थर और फ्लाई-ऐश मिलाकर पत्थर जैसी मजबूत सड़क बनाने की तैयारी की जा रही है। यह सड़क बाढ़-बहाव वाले स्थानों पर टिकाऊ साबित होगी। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), पटना को प्रोजेक्ट के शुरुआती चरण में सफलता मिली है। विश्व बैंक इस प्रोजेक्ट को मदद मुहैया करा रहा है।
टिकाऊ व सस्‍ती तकनीक
एनआइटी पटना के प्राध्यापक और छात्र मिट्टी से सड़क बनाने की जिस तकनीक पर काम कर रहे हैं, वह टिकाऊ और सस्ती बताई जा रही है। इससे सड़कों की लागत लगभग आधी हो जाएगी। सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच के प्रो. संजीव सिन्हा ने बताया कि प्रोजेक्ट का प्रारंभिक चरण काफी उत्साहवर्धक रहा है।
मिट्टी की जांच-परख के बाद उसे टिकाऊ बनाने के लिए चूना-पत्थर, सीमेंट, थर्मल पावर प्लांट से निकली फ्लाई-ऐश (राख) मिलाई जाती है। इससे मिट्टी की भार सहन क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। साथ ही सड़क की क्षमता को कम करने वाले कारक जैसे पानी, धूप, नमी आदि का प्रभाव भी बहुत कम हो जाता है।
सड़क की लंबी उम्र के लिए चल रही मिट्टी की जांच
एनआइटी की टीम ने दक्षिण बिहार के 10 जिलों में 20 स्थानों की मिट्टी की जांच की है। सड़क की उम्र लंबी हो, इसके लिए इसकी क्षमता की जांच भी विभिन्न जिलों में स्थानीय कारकों के अनुसार की जा रही है। दक्षिण बिहार के अधिसंख्य जिले बाढ़ प्रभावित हैं, इसलिए बहाव और पानी में डूब जाने के बाद भी सड़क टिकी रहे, ऐसी क्षमता विकसित की जा रही है।
प्रो. सिन्हा के अनुसार, दक्षिण बिहार के कई जिलों में बालू प्रचुर मात्रा में है। सीमेंट और चूना-पत्थर के मिश्रण के साथ इसे गिट्टी की जगह आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए, कौन सी मिट्टी नई तकनीक के लिए बेहतर होगी, इसकी पड़ताल हम पिछले छह माह से कर रहे हैं। 
प्रोजेक्‍ट को विश्‍व बैंक दे रहा मदद
बिहार सरकार का ग्रामीण कार्य विभाग और विश्व बैंक इस प्रोजेक्ट को फंड उपलब्ध करा रहा है। ग्रामीण कार्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार ग्रामीण सड़कों में यह प्रयोग सफल रहा है। अधिसंख्य मैटेरियल स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो जाते हैं। लागत कम होने के कारण यह ग्रामीण सड़कों के लिए वरदान साबित होगा।
पहले चरण का प्रयोग सफल
पहले चरण में भागलपुर, पूर्णिया आदि जिलों में ग्रामीण सड़कों में प्रायोगिक तौर पर इसका प्रयोग सफल रहा है। सूबे में गिट्टी की कमी के कारण सड़कों के निर्माण पर अकसर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बिहार में पत्थर खनन प्रतिबंधित होने के कारण गिट्टी के लिए झारखंड और दूसरे प्रदेशों पर निर्भरता बढ़ गई है। पिछले एक दशक में गिट्टी की कीमत में ढाई से तीन गुना की वृद्धि हुई है। ऐसे में मिट्टी से बनने वाली सड़क काफी कारगर साबित होगी।
एनआइटी, पटना के सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच के प्रो. संजीव सिन्हा कहते हैं कि प्रोजेक्ट का प्रारंभिक चरण काफी उत्साहवर्धक रहा है। अभी उपयुक्त मिट्टी प्राप्त करने के लिए सर्वे किया जा रहा है।
इसलिए बेहतर है यह सड़क
एनआइटी के विशेषज्ञों के अनुसार बोल्डर के इस्तेमाल से सड़क की ऊंचाई अधिक हो जाती है, जबकि नई तकनीक से सड़क अनावश्यक ऊंची नहीं होगी। पहले सड़क की चार में से तीन परतों में गिट्टी की आवश्यकता होती थी। नई तकनीक से केवल ऊपरी सतह पर इसकी आवश्कता होगी। बेस तथा सब बेस में मिट्टी का ही उपयोग किया जाएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि बोल्डर से बनी सड़क में हवा अंदर रह जाने के कारण गर्मी और ठंड में कई तरह की समस्या बाद में देखने को मिलती है, जबकि नई तकनीक से बनाने पर यह समस्या नहीं आएगी।
50 लाख रुपये प्रति किमी होगी बचत
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति किलोमीटर पक्की सड़क निर्माण की लागत 70 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच है। इसमें लागत की दो-तिहाई राशि गिट्टी क्रय और वहन में खर्च होती है। नई तकनीक से प्रति किलोमीटर 50 लाख रुपये तक की बचत होगी।

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