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पटना में मनचलों से परेशान लड़कियां, महिला सुरक्षा की मुहिम पर जमी धूल, काम नहीं करते टेलीफोन

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर राजधानी में बातें ज्यादा होती हैं काम कम। पटना में मनचलों से लड़कियां परेशान हैं। महिला सुरक्षा की मुहिम पर धूल जमी है। महिला अपराध की सूचना देने के लिए जगह-जगह लगाए गए टेलीफोन भी काम नहीं करते।

By Edited By: Published: Wed, 30 Sep 2020 01:30 AM (IST)Updated: Wed, 30 Sep 2020 10:02 AM (IST)
पटना में मनचलों से परेशान लड़कियां, महिला सुरक्षा की मुहिम पर जमी धूल, काम नहीं करते टेलीफोन
पटना में महिला अपराध की प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर।

पटना। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर राजधानी में बातें ज्यादा होती हैं, काम कम। साल दर साल कई तरह की चर्चाएं होती हैं, योजनाएं बनती हैं, कुछ आगे भी बढ़ती हैं, लेकिन कुछ कदम चलकर ही दम तोड़ देती हैं। इसका नतीजा है कि सड़क से गुजरती एक अकेली लड़की या महिला लगातार अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता तले दबी रहती है। टेलीफोन बूथ पर जम गई है धूल, फोन नहीं करता है काम : महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए कुछ महिला कॉलेजों और मौर्यलोक कॉम्पलेक्स में टेलीफोन बूथ बनाए गए। ऐसे और भी बूथ बनाने की बात थी। इन बूथों में ऐसी सुविधा थी कि रिसिवर उठाते ही फोन नजदीकी पुलिस स्टेशन से कनेक्ट हो जाता था। देखरेख के अभाव में ये बूथ बेकार हो गए। अब कोई इनकी खबर नहीं लेता। बूथ में लगे फोन कब के खराब हो चुके हैं। इन बूथों का इस्तेमाल आसपास के दुकानदार और ठेले-खोमचे वाले अपने सामान रखने के लिए करते हैं। कभी खुला ही नहीं डीजीपी बॉक्स का ताला : डीजीपी के निर्देश पर शहर के महिला कॉलेजों में डीजीपी बॉक्स लगाया गया था। योजना थी कि इस बॉक्स में छात्राएं अपनी परेशानी लिखकर डालेंगी। महिला थाने की थानेदार उस बॉक्स को खोलकर परेशानी के हिसाब से कार्रवाई करती। इस बॉक्स को कुछ कॉलेजों में एकाध बार खोला गया तो कहीं एक बार भी नहीं। अब छात्राएं भी इस बॉक्स की हकीकत समझ चुकी हैं। एप बनाने की कवायद रह गई अधूरी : पुलिस प्रशासन ने एक निजी संस्थान के सहयोग से महिला कॉलेज की छात्राओं को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग देने की योजना बनाई थी। छात्राओं की सुरक्षा के लिए एक एप का भी निर्माण किया जा रहा था। इस एप में ऐसी व्यवस्था होनी थी कि अपने स्मार्टफोन के पावर बटन के माध्यम से परेशानी में फंसी कोई महिला या लड़की एक ही बार में अपने परिवार और पुलिस प्रशासन को सूचना दे सकती थी। इसपर थोड़ा-बहुत काम हुआ। एक महिला कॉलेज में कार्यक्रम के दौरान एप का डेमो दिया गया। ---------- केस 1 : गांधी मैदान के पास एक लड़की को ऑटो में कुछ मनचलों ने परेशान किया। कुछ देर तो लड़की ने इसे नजरअंदाज किया, लेकिन जब मामला ज्यादा होने लगा तो उसने 100 नंबर पर डायल किया। यह नंबर व्यस्त बताने पर उसने 181 पर कॉल कर इसकी जानकारी दी। पीड़िता का कहना है कि उसे तत्काल कोई मदद नहीं मिल सकी। केस 2 : हाईकोर्ट के पास से गुजर रही एक लड़की पर कुछ लड़कों ने फब्तियां कसीं। लड़की डरकर शिकायत करने महिला आयोग पहुंची, लेकिन वह लिखित आवेदन देने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसे में आयोग उसकी कोई मदद नहीं कर पाया। केस 3 : गर्दनीबाग में कॉलेज से आती हुई लड़की के साथ कुछ लड़कों ने ही गलत हरकत करने की कोशिश की। लड़की को पता नहीं था कि वह तत्काल इसकी शिकायत कहां और कैसे करे। जब उसे कुछ समझ में आया तो उसने महिला थाने में शिकायत की। तब तक आरोपित लड़के वहां से निकल चुके थे। ----------- छेड़खानी के मामले में पीड़िताएं लिखित शिकायत करने से बचती हैं। ऐसे अधिसंख्य मामलों में मौखिक या फोन पर ही शिकायतें आती हैं। घरेलू ¨हसा के मामले भी इन दिनों तेजी से बढ़ रहे हैं। दिलमणि मिश्रा, अध्यक्ष, महिला आयोग छेड़छाड़ से जुड़ी शिकायतें ज्यादातर फोन पर ही आती हैं। ऐसे मामलों का निपटारा तुरंत कर दिया जाता है। ज्यादातर इन मामलों में लिखित शिकायत दर्ज करने की नौबत नहीं आती। ऐसे मामलों में पीड़िताएं भी लिखित शिकायत से बचने की कोशिश करती हैं। - आरती जायसवाल, थानाध्यक्ष, महिला थाना

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