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एक पैर से हौसलों के बुलंदियों को छूने की हसरत, जानिए इस दशरथ की कहानी

भगवान ने बचपन में एक पैर छीन लिया लेकिन दशरथ ने एक पैर से ही दुनिया मुट्ठी में करने की ठानी, जिसे वह आज पूरा कर रहा है। उसके हौसले बुलंद हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 20 Feb 2018 06:42 PM (IST)Updated: Wed, 21 Feb 2018 01:21 PM (IST)
एक पैर से हौसलों के बुलंदियों को छूने की हसरत, जानिए इस दशरथ की कहानी
एक पैर से हौसलों के बुलंदियों को छूने की हसरत, जानिए इस दशरथ की कहानी

पटना [जेएनएन]। ये कहानी है अपने हौसलों की बुलंदियों के लिए आसमां को झुकाने की चाहत रखने वाले युवक दशरथ की। भगवान ने उसका एक पैर छीन लिया लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपनी शारीरिक कमजोरी को अपनी जिंदगी का सच मानकर अपने सपनों को पूरा करने का जो ख्वाब देखा वो हर हाल में पूरा करना चाहता है।

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दशरथ का कहना है कि वो और हैं जो बैठ जाते हैं थक कर मंजिल से पहले, हम बुलंद हौसलों के दम पर आसमां को झुका लेंगे। दशरथ का जीवन कष्टों से भरा है पर हौसले बुलंद हैं। शेखपुरा के एक छोटे से गांव में जन्म लेने वाले दशरथ को क्या मालूम था कि उसके जीवन में एेसी घटना भूचाल बनकर आएगी और बचपन में ही उम्र भर का कष्ट देकर जाएगी।

दशरथ के पिता किसान हैं और मां घरेलू महिला। छोटी सी खाने और खेलने की उम्र में दशरथ पिता की मदद के लिए खेतों में जाने लगा। खेत में काम करते हुए पसीने से भींगे पिता जी को देखकर उसे बस यही लगता था कि बड़ा होकर अच्छी नौकरी करूंगा और अपने पिता को जीवन की हर खुशी दूंगा।

लेकिन शायद भगवान को दशरथ की यह चाहत पसंद नहीं आई और मात्र छह वर्ष की उम्र में सड़क पार करते वक्त दशरथ दुर्घटना का शिकार हो गया। एक लोडेड ट्रक उसके पैर पर चढ़ गया और वह बेहोश हो गया। जब उसे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया तो डॉक्टर ने कहा कि उसका एक पैर काटना होगा।

दशरथ के पिता के सारे अरमान आंसूओं में बह गए। छोटी सी उम्र में उसका पैर काट दिया गया। अब वह ना खेल सकता था, ना स्कूल जा सकता ता ना ही खेत में पिता की मदद कर सकता था।

उछल कूद करने वाला नटखट दशरथ अपंग बनकर बैठा रहता और दूसरे बच्चों को खेलते हुए देखता रहता। अपने सपने बिखरते देख, दशरथ परेशान हो उठता था। तब उसने एक दिन अपने कटे पैर को देखा और फिर सोच लिया क्या एक पैर से सपने पूरे नहीं होते?

उसने एक पैर पर ही चलने को ठान ली। मुश्किल तो था लेकिन दशरथ के हौसले के आगे हर मुश्किल नतमस्तक होती चली गयी। धीरे-धीरे उसने छड़ी के सहारे चलना शुरू कर दिया और स्कूल जाने लगा। इस तरह उसने अपने गांव के स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की।

मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद अपने सपने को पूरा करने के लिए दशरथ बिहारशरीफ आ गया। पैसे इतने नहीं थे कि यहां रहकर पढ़ाई कर सके। इसलिए उसने यहां छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। ट्यूशन से आने वाले पैसे के दम पर दशरथ ने आगे की पढ़ाई करने की ठानी और आज वह स्नातक का बेहतर छात्र है।

एक पैर के सहारे ही सही आज दशरथ पूरी दुनियां को नापने का हौसला रखता है। किसी के लिए एक पैर पर चलना मुश्किल होता है लेकिन दशरथ फर्राटे से साइकिल चलाता नजर आता है। यह उसके हौसले तथा बुलंद इरादे का कमाल है।

आज वह खुद पढ़ता है और बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता है। वह अपने बल पर पढ़ाई पूरी कर शिक्षक बनना चाहता है। उसके इस हौसले पर आज पूरे गांव, पूरे परिवार तथा समाज को नाज है।


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