International Women's Day: पढ़ी-लिखी नहीं हैं तो क्या..जानता है पूरा देश इन्हें
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है आज उन महिलाओं को खास सम्मान जिन्होंने अपने रास्ते खुद तय किये और नया मुकाम हासिल किया। जानिए बिहार की ऐसी कुछ खास महिलाओं के बारे में।
पटना [काजल]। आठ मार्च का दिन महिलाओं के लिए खास होता है। इस दिन को महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के अन्य देशों के साथ ही भारत में भी इस दिन महिलाओं को समाज में उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है।
बिहार की भी कुछ ऐसी महिलाएं हैं, जिन्होंने कड़े संघर्ष के बाद बड़ा मुकाम पाया है। वे ज्यादा पढ़ी-लिखीं या विद्वान नहीं हैं, लेकिन अपने बुलंद हौसलों और कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छाशक्ति से अलग पहचान बनाई है। आज पूरा देश उनके जज्बे को सलाम कर रहा है। आईए जानते हैं कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में....
इन महिलाओं ने बजा दिया गरीबी का बैंड
पटना से कुछ ही दूर स्थित है ढिबरा गांव, जहां की महादलित महिलाओं ने ऐसा कर दिखाया है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ठान लीजिए तो कुछ मुश्किल नहीं है।बिहार की पहली महिला बैंड का खिताब हासिल करने वाली इन महिलाओं ने वो कर दिखाया है जिसे आजतक पुरूष ही किया करते थे।
ढिबरा गांव खेती पर निर्भर है। यहां सुविधाओं का यहां घोर अभाव है। उसी गांव में कभी पति की मार और गरीबी का दंश झेलने वाली दस महिलाएं बैंड बजाने को अपना व्यवसाय बना चुकी हैं। वे अपने 'सरगम बैंड' से जीविकोपार्जन कर रही हैं।
बदलाव का उनकर यह सफर इतना आसान नहीं था। इन महिलाओं की कहानी आपके दिल को झकझोर कर रख देगी। घर की चारदीवारी और गांव की दहलीज को लांघकर उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि पटना के चाणक्य और मौर्या होटल जैसी जगहों के बाद वे दिल्ली-मद्रास जैसे बड़े शहर के बड़े-बड़े होटल और कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकेंगी। लेकिन आज उन्होंने यह कमाल कर दिखाया है। अब उनके बैंड की डिमांड कई राज्यों में हो रही है।
सरगम बैंड की महिलाएं दिल्ली में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और महिला दिवस पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के सामने भी प्रस्तुति दे चुकी हैं। दोनों ने ही बैंड के लिए काम कर रही महिलाओं की सराहना की। बैंड की सदस्यों में मात्र सविता ही ऐसी महिला हैं जो आठवीं पास हैं। इनमें 70 साल की चित्रलेखा से लेकर 25 साल की छठिया के अलावा पंचम लालती, सोना, डोमनी, अनीता, वैजंती और मालती हैं।
सरगम बैंड की हेड सविता देवी बताती हैं कि हमने बैन्ड बजाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत की है। आज लोग हौसला देते हैं तो काम में मन लग रहा है। हमारे साथ सूबे की पहचान बन रही है।
ये हैं रिवॉल्वर वाली मुखिया, महिलाओं की रोल मॉडल
अपराधी इन्हें देखते ही भाग खड़े होते हैं और गांव की महिलाओं की रोल मॉडल ये मुखिया गांव के विकास के साथ ही वक्त आने पर पिस्टल का स्ट्रिगर भी दबा सकती हैं। अपनी कमर में पिस्तौल बांधकर चलने वाली मुखिया का नाम है आभा देवी जो पटना के फुलवारी शरीफ के गोणपुरा पंचायत की मुखिया हैं।
गांव में कभी भी किसी तरह की समस्या हो उसे सुलझाने के लिए वो अकेली ही निकल पड़ती हैं। गांव की लड़कियां, औरतें इनपर गर्व करती हैं।
14 पंचायतों से बना फुलवारीशरीफ प्रखंड का गोणपुरा पंचायत ऐसा है, जहां लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। इस पंचायत में लड़कियों की पढ़ाई पर खास ध्यान दिया जाता है। इस पंचायत की महिला मुखिया आभा देवी की चर्चा आज पूरे बिहार में है।मुखिया आभा देवी की दिलेरी तब देखने को मिली जब दो दिसंबर को फुलवारीशरीफ में दंगा भड़काने में नाकाम दर्जनों असामाजिक तत्वों ने गोनपुरा के कुछ घरों में आग लगा दी। सूचना पाते ही मुखिया आभा देवी मौके पर पहुंचीं और अपने पिस्टल के बल पर सभी दंगाइयों को वहां से खदेड़ दिया। जिसकी चर्चा गांव में आज भी होती है।
मिथिला पेंटिंग की बिखेरी छटा, पद्मश्री से नवाजी गई
मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में अहम योगदान के लिए बौआ देवी को पद्मश्री सम्मान 2017 से नवाजा गया है। बौआ देवी बिहार राज्य के मधुबनी जिले के जितवारपुर गांव की निवासी हैं। इससे पहले इनको राज्य और राष्ट्र्र स्तरीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
गौरतलब है कि, बौआ देवी के द्वारा बनायी गयी मिथिला पेंटिंग को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश यात्रा के दौरान हैनोवर के मेयर स्टीवन स्कॉस्टक को भेंट स्वरुप दिया था।
वह कहती हैं, अब इस कला का विस्तार गांव-घर से देश-दुनिया तक हो गई है। मैं खुद 11 बार जापान गई हूं और वहां महीनों रहकर कई कार्यक्रमों में मिथिला पेंटिंग कर चुकी हूं। इसके अलावा फ्रांस, ब्रिटेन, लंदन में भी मेरी पेंटिंग मौजूद हैं। देश के विभिन्न राज्यों से मेरी पेंटिंग की मांग की जाती है, जिससे मुझे खुशी होती है।
आज के फाइन आर्ट और मिथिला पेंटिंग की तुलना करने पर बौआ कहती हैं, हमलोग कोई फाइन आर्ट नहीं कर रहे हैं जो घालमेल कर दें। मेरी मिथिला पेंटिंग अलग है, उसे अलग ही रहने दें। अलग रहेगी, तभी इसकी पहचान भी रहेगी।
किसान चाची ने बनायी खुद की पहचान, पीएम मोदी-बिगबी ने सराहा
अपनों से मिली तकलीफ और अपनी मेहनत लगन से अलग मुकाम पाने वाली घर की दहलीज के पार खेत में कदम रख सरैया प्रखंड के आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी को आज हम किसान चाची के नाम से जानते हैं। पहले साइकिल चाची और फिर किसान चाची के नाम से अपनी पहचान बनाने वाली किसान चाची को पहलेेकिसानश्री मिला था। फिर पद्मश्री से नवाजा गया।
घर से बाहर कदम रखने पर जिसने ठुकराया था, वही समाज और परिवार आज उनके कारण अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर सरैया प्रखंड का आनंदपुर गांव। यहां के एक घर का कोना-कोना कृषि उत्पादों से अटा पड़ा है। आम, अदरख, ओल के अचार तो आंवला व बेल के मुरब्बे की खुशबू आपको बरबस यहां खींच लेगी। छोटी सी किसानी से भी परिवार कैसे खुशहाल हो सकता है, यह घर इसकी मिसाल है। इसके पीछे है राजकुमारी देवी का त्याग।
शादी के नौ वर्ष तक संतान नहीं होना और पति की बेरोजगारी के कारण घर की दहलीज से बाहर कदम रखने वाली एक बहू को समाज व परिवार से बहिष्कृत कर दिया गया था। मगर, उस बहू की दृढ़ इच्छाशक्ति को उसी समाज ने आज किसान चाची का न केवल नाम दिया, बल्कि सम्मान भी।
प्रशंसकों में नरेंद्र मोदी, नीतीश व बिग बी भी
अचार व मुरब्बे की खुशबू की तरह किसान चाची का नाम भी फैलने लगा। अहमदाबाद में उनकी इस लगन की तारीफ नरेंद्र मोदी ने भी की। तब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद इनकी खेती व छोटे से कारोबार को देखने इनके घर आए। एक चैनल पर आयोजित कार्यक्रम 'आज की रात है जिंदगी' में अमिताभ बच्चन के साथ किसान चाची के कार्यक्रम का प्रसारण हो चुका है। कार्यक्रम के दौरान बिग बी उनसे खासे प्रभावित हुए।
महिलाओं के प्रति समाज का दोहरा मापदंड आज भी किसान चाची को खलता है। वो कहती हैं, महिलाएं किसी से कम नहीं। बस साथ लेकर चलिए और फिर देखिए।