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सबा करीम को नहीं भूलता वो दिन, अनिल कुंबले की एक गेंद ने असमय संन्यास लेने पर कर दिया था मजबूर

पूर्व भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान बीसीसीआइ के महाप्रबंधक (क्रिकेट ऑपरेशन) सैयद सबा करीम का मानना है कि BCCI ने बिहार को मान्यता दे दी है पर राज्य में क्रिकेट डेवलप करना चुनौती है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 03 May 2020 08:17 PM (IST)Updated: Sun, 03 May 2020 08:17 PM (IST)
सबा करीम को नहीं भूलता वो दिन, अनिल कुंबले की एक गेंद ने असमय संन्यास लेने पर कर दिया था मजबूर
सबा करीम को नहीं भूलता वो दिन, अनिल कुंबले की एक गेंद ने असमय संन्यास लेने पर कर दिया था मजबूर

अरुण सिंह, पटना। पटना के संत जेवियर हाईस्कूल से प्रारंभिक शिक्षा, राजेंद्रनगर शाखा मैदान से क्रिकेट का ककहरा सीखने के बाद पूर्व भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के महाप्रबंधक ( क्रिकेट ऑपरेशन) सैयद सबा करीम ने पटना जिला क्रिकेट लीग में खूब धूम मचाई। विकेट के आगे और पीछे उनका कमाल का प्रदर्शन बिहार अंडर-15, 19, रणजी और भारतीय टीम में जारी रहा।

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कड़ाई से राज्य में क्रिकेट पर करना होगा काम

एक मैच के दौरान हुई एक घटना से असमय भद्रजनों के खेल को अलविदा कहने वाले सबा की नजर बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) की पलपल की गतिविधियों पर टिकी है। उनका मानना है कि चुनौती बड़ी है। ऐसे में ढिलाई नहीं कड़ाई से अपने राज्य में क्रिकेट पर काम करना होगा। अपने करियर और बिहार में क्रिकेट के डेवलपमेंट पर सबा ने बेबाकी से अपनी बात रखी।

याद आता है राजेद्र नगर शाखा मैदान 

सबा कहते हैं, मैंने भले ही 1995 से बंगाल टीम से खेलते हुए भारतीय टीम में जगह बनाई, लेकिन पिता का प्रोत्साहन और राजेंद्रनगर शाखा मैदान पर मेरे गुरु अधिकारी एमएम प्रसाद का साथ न मिला होता तो मैं इस मुकाम तक नहीं पहुंचता। यह सच है कि क्लब से लेकर रणजी क्रिकेट बिहार से खेलने के बावजूद मुझे एक्सपोजर नहीं मिल रहा था, जिसकी तलाश बंगाल जाने के बाद पूरी हुई। बंगाल टीम से मुझे ऊपर खेलने का मौका मिला। 1982 से रणजी खेलने के 15 साल बाद वह दिन आया जब मुझे दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ वनडे करियर की शुरुआत करने का मौका मिला। इस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता। हालांकि किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

नहीं भूलता वो मनहूस दिन

30 मई 2000 को वह मनहूस दिन भी आया जब बांग्लादेश के खिलाफ ढाका में वनडे मैच में विकेटकीपिंग के दौरान अनिल कुंबले की उछाल लेती गेंद मेरी आंख में लग गई। उसी साल नवंबर में बांग्लादेश के खिलाफ ही टेस्ट डेब्यू करने का सपना भी पूरा हुआ, लेकिन चोट ने मुझे असमय किकेट से संन्यास लेने पर मजबूर कर दिया।

बदलाव को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं

पापा का प्रोत्साहन ऐसे समय में भी मिला। क्रिकेट करियर के दौरान बहुत से क्रिकेटरों को उतार-चढ़ाव से गुजरते देखा था। इस कारण अचानक बदलाव को सहर्स स्वीकार करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं हुई। टाटा स्टील में नौकरी कर ही रहा था। कमेंट्री और कोचिंग में भी किस्मत अजमाई। सिलसिला जारी है। वर्तमान में बीसीसीआइ महाप्रबंधक आपरेशन पद पर काम रहा हूं। मेरा मानना है कि एक प्रशासक से ज्यादा चुनौती क्रिकेटर बनने में है। 

भारत की ओर से खेलते हुए देशवासियों की उम्मीदों पर खरा उतरना पड़ता है। जहां तक प्रशासक की बात है तो टाटा स्टील में काम के दौरान अनुभव और मैदान के दोस्तों से हुई मुलाकात से मेरा काम आसान हो गया है।

बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना जरूरी

बिहार से मेरा पुराना लगाव रहा है। बीसीसीआइ से उसे दो साल पहले ही मान्यता मिल चुकी है। हमारे राज्य में प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन अब भी बहुत बड़ी चुनौती है। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करना होगा। मैदान बनाना होगा। जिलों में खेल को ले जाना होगा। एकेडमियां खोलनीं होंगी। चयन में पारदशिता बरतनी होगी। बीसीए प्रशासन में प्रोफेशनल को लाना होगा, जो सभी को एकसूत्र में पिरो कर यहां इस खेल को डेवलप करने का काम बढिय़ा से कर सके।


लॉकडाउन में घर से कर रहा हूं काम

मुंबई में कोरोना का प्रसार काफी तेज है। इसलिए फिलहाल नवी मुंबई के समीप आवास से अपने काम को अंजाम दे रहा हूं। समय निकालकर पुस्तक पढ़ लेता हूं और किचन में भी हाथ बंटाता हूं। जरूरी काम से केवल सप्ताह में एक बार निकलता हूं। महामारी के दौरान डॉक्टर, पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी जान जोखिम में डालकर अपने काम में जुटे हैं। मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं। 


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