Move to Jagran APP

मौजूदा शिक्षा में न तो जीवन, न ही जीविका की गारंटी

सच्ची शिक्षा मानव जीवन की समस्याओं को समाप्त करती है। लेकिन, आज शिक्षा स्वयं एक समस्या बन गई है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Dec 2018 10:07 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 10:07 PM (IST)
मौजूदा शिक्षा में न तो जीवन, न ही जीविका की गारंटी
मौजूदा शिक्षा में न तो जीवन, न ही जीविका की गारंटी

सच्ची शिक्षा मानव जीवन की समस्याओं को समाप्त करती है। लेकिन, आज शिक्षा स्वयं एक समस्या बन गई है। आज न तो हमारी शिक्षा की दशा सही है और न ही दिशा। यह बात पूर्व सासद, पूर्व कुलपति एवं सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक डॉ. रामजी सिंह ने कही। मौका था जेडी वीमेंस कॉलेज में मंगलवार को आयोजित दर्शन परिषद्, बिहार के 41 वें अधिवेशन का। डॉ. सिंह कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे। अधिवेशन का मुख्य विषय शिक्षा, समग्र स्वास्थ्य एवं स्वच्छता में गांधी दर्शन का संदर्भ था।

loksabha election banner

कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने कहा कि जब भारत में नालंदा, विक्रमशिला एवं तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे, तो भारत दुनिया का विश्व गुरु था। यदि आज भारत को फिर से विश्व गुरु बनना है, तो हमें शिक्षा-व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने कहा कि मैकाले की शिक्षा नीति ने भारत की सभ्यता-संस्कृति पर प्रहार किया और इसके राष्ट्रीय चरित्र को नुकसान पहुंचाया। आज की शिक्षा में न तो जीवन है और न ही जीविका की गारंटी। इस शिक्षा ने देश में विषमता को बढ़ावा दिया है। समग्र जीवन दृष्टि भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य

इस अवसर पर मुख्य अतिथि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. एसआर भट्ट ने कहा कि बिहार दर्शन की उर्वर भूमि है। यही से भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, वाचस्पति मिश्र, गांधी, जयप्रकाश आदि ने वैचारिक क्रांति की शुरुआत की। डॉ. भट्ट ने कहा कि समग्रवादी जीवन दृष्टि भारतीय संस्कृति का वैशिष्ट्य है। यही वैशिष्ट्य बिहार की दर्शन परंपरा में भी शामिल है। हमें विश्वास है कि बिहार में दर्शन की धारा बिना किसी परेशानी के प्रवाहित होती रहेगी।

क्रांति का वाहक रही है बिहार की धरती

परिषद् के सदस्य डॉ. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि बिहार क्राति की भूमि है। बिहार ने हमेशा वैचारिक बंधन की मर्यादा का अतिक्रमण किया है। यह धरती क्राति का वाहक है। भारतीय विद्या की दृष्टि से क्राति की शुरुआत हुई है। उन्होंने कहा कि शिक्षा वह प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी आतरिक चेतना को बाहर अभिव्यक्त करता है। यह व्यक्ति के संपूर्ण जीवन से जुड़ा है। इसका उद्देश्य हमारे शरीर, मन एवं आत्मा तीनों का विकास करना है। हम यह प्रयास करें कि स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज एवं स्वस्थ विश्व का निर्माण हो। अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डॉ. जटाशकर ने कहा कि समाज को एकजुट बनाने में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। अंदर की स्वच्छता ही बाहर की स्वच्छता का मार्ग प्रशस्त करती है।

इन्होंने भी रखे विचार

दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के सेवानिवृत्त आचार्य डॉ. नरेश प्रसाद तिवारी, परिषद् के अध्यक्ष डॉ. बीएन ओझा एवं महामंत्री डॉ. श्यामल किशोर, डॉ. इन्द्रदेव नारायण सिन्हा, डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा आदि ने भी अपने विचार प्रकट किये।

ये लोग रहे मौजूद

इस अवसर पर डॉ. सभाजीत मिश्र, डॉ. प्रभु नारायण मंडल, डॉ.अम्बिका दत्त शर्मा, डॉ. राजकुमारी सिन्हा, डॉ. पूनम सिंह, डॉ. शभु प्रसाद सिंह, डॉ. शैलेश कुमार सिंह, डॉ. किस्मत कुमार सिंह, डॉ. पूर्णेदु शेखर, डॉ. नागेन्द्र मिश्र, डॉ. आभा सिंह, डॉ. उपेन्द्र प्रसाद सिंह, डॉ. तपन कुमार शाडिल्य, डॉ. दिनेशचंद्र, डॉ. सुधाशु शेखर, डॉ. नीरज प्रकाश आदि उपस्थित थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.