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RTI कार्यकर्ता की हत्या: पुलिस की कोई कहीं साजिश तो नहीं....जानिए

वैशाली जिले में आरटीआइ कार्यकर्ता की हत्या के मामले में पुलिस की कार्यशैली संदिग्ध घेरे में है। हत्या के चौबीस घंटे तक एफआइआर नहीं कराया गया लेकिन पोस्टमार्टम बाद में हुआ।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 05 Apr 2018 05:42 PM (IST)Updated: Fri, 06 Apr 2018 11:28 PM (IST)
RTI कार्यकर्ता की हत्या: पुलिस की कोई कहीं साजिश तो नहीं....जानिए
RTI कार्यकर्ता की हत्या: पुलिस की कोई कहीं साजिश तो नहीं....जानिए

 पटना [जेएनएन]। बिहार में आरटीआइ कार्यकर्ता की हत्या के मामले में पहले पोस्टमार्टम फिर चौबीस घंटे के बाद एफआइआर करने के बाद पुलिस की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। इस पूरे मामले में पुलिस के अधिकारियों के बयान ही विरोधाभाषी  हैं।

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वैशाली जिले के गोरौल थाना क्षेत्र में आरटीआई कार्यकर्ता जयंत कुमार उर्फ हाफिया की हत्या के 24 घंटे होने के बाद एफआइआर दर्ज हुआ है। इस घटना के बाद वैशाली पुलिस की पूरी कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई है। आश्चर्य यह कि इस बड़े मामले में चौबीस घंटे तक कोई एफआइआर दर्ज नहीं हुई लेकिन शव का पोस्टमार्टम बुधवार को ही कर दिया गया।

वैशाली पुलिस की पूरी कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में

इस घटना के बाद वैशाली पुलिस की पूरी कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में आ गई है। घटना के बाद से पुलिस ने घायल अरविंद सिंह उर्फ भद्दर सिंह का बयान लिया है और उसी बयान के आधार पर बाइक सवार दो अज्ञात पर एफआईआर दर्ज किया है। थानाध्यक्ष से बात की गई तो उन्होंने घायल के बयान पर एफआईआर दर्ज होने की बात कही। 

पुलिस ने गुरुवार की सुबह मृतक के घर जाकर परिजनों का बयान दर्ज करने का प्रयास किया। हालांकि परिजनों ने घर पर कोई बयान नहीं दिया और एक-दो घंटे में थाने पर आकर बयान देने की बात कही है।

गोरौल पुलिस ने मृतक के मोबाइल का सीडीआर निकाला है या नहीं, इस संबंध में भी कुछ नहीं बता रही है। इधर मृतक के चाचा विभाशंकर सिंह ने गुरुवार को जागरण से फोन पर बात करते हुए कहा कि उनके भतीजे जयंत की हत्या आरटीआई के कारण ही हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस मामले को दूसरा रूप देने की साजिश रच रही है। बकौल श्री सिंह , पुलिस अपराधी-अपराधी के बीच हुए झगड़े को हत्या का कारण मान रही है।

गोरौल अस्पताल गेट के सामने फायरिंग कर पंचायत समिति सदस्य के पुत्र एवं आरटीआई कार्यकर्ता जयंत उर्फ हफिया की हत्या की गई उससे कई राज दब जाएंगे। अगर जांच हो तो इस मामले में कई पुलिसकर्मी और राजनेता भी लपेटे में आ सकते हैं।

हत्या हो सकती है सोची-समझी साजिश

परिजनों का आरोप तो यहां तक है कि इस पूरे मामले को एक बड़ी और सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया है। आरटीआई के मामले में राज्य सूचना आयोग का फैसला भी जल्द आने वाला था। उस फैसले के पहले उसकी हत्या कई बातों की ओर इशारा करते हैं। अक्सर जयंत वहां के थानाध्यक्ष, बीडीओ आदि के खिलाफ आरटीआई लगाता रहा है।

गोरौल थानाध्यक्ष अभिषेक कुमार ने जागरण को बताया कि घायल अरविंद सिंह के बयान पर अज्ञात पर एफआईआर दर्ज की गई है लेकिन मृतक के परिजनों का न तो लिखित बयान मिला है और न ही मौखिक। उनका बयान मिलते ही उसे एफआईआर में जोड़ा जाएगा। यह भी कहा कि कई बिंदुओं पर जांच चल रही है। बहुत जल्द इस मामले में खुलासा होगा।

बताया जा रहा है कि दोनों गांव-बयासचक, पंचायत इनायत नगर के निवासी हैं। दोनों आज सुबह जब पंचायत के करीब चाय पी रहे थे तभी मोटरसाइकिल पर सवार होकर कुछ लोग आए और उन्होंने दोनों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। जयंत कुमार की तो मौके पर ही मौत हो गई वहीं अरविंद सिंह उर्फ भद्र सिंह के दाहिने हाथ में गोली लगने की खबर है। 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, घटना दोपहर 12.30 के करीब की है। जयंत कुमार ने गोरौल के पूर्व थानाध्यक्ष, पुलिसकर्मियों समेत कई नेताओं के खिलाफ आरटीआई के जरिए सबूत एकत्रित किए थे।  

परिजनों का आरोप-किसी खास मकसद से कराई गई हत्या

इसके अलावे योजनाओं में हेराफेरी के खिलाफ बोलना वहां के राजनीतिक लोगों को भी नागवार गुजरता था। वहीं इस घटना के बाद मृतक के बहनोई का यह आरोप की पूर्व थानाध्यक्ष ने ही कराई है हत्या, पुलिस के लिए गले की हड्‌डी बनने वाली है। पुलिस महकमा आरटीआई के अलावा भी कई बिंदुओं पर तहकीकात कर रही है। लेकिन परिजन सीधे आरोप लगा रहे हैं कि आरटीआई से परेशान लोगों ने साजिश के तहत नियोजित हत्या कराई है।

मृतक को अपराधी बनाने की होड़

इस पूरे मामले में पुलिस हत्यारे को पकड़ने से ज्यादा मृतक को ही अपराधी बनाने में जुट गई। हत्या के मात्र 2 घंटे के अंदर उसके खिलाफ दर्ज मामलों की फेहरिश्त पुलिस ने जारी कर दी। पुलिस वैशाली के थानों की डिटेल तो निकाल कर ले आई। लेकिन इतने कम समय में मुजफ्फरपुर रेल थाने के एक 7 साल पुराने मामले को कैसे खोज निकाला। जबकि अपराधियों का आपराधिक इतिहास खंगालने में पुलिस को दो से तीन दिनों का वक्त लगता है।


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