Move to Jagran APP

उपेंद्र कुशवाहा के इस्तीफे का बिहार की राजनीति पर क्या पड़ेगा असर, जानिए

रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को मत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफे के बाद बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जानिए इस खबर में...

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 07:07 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 12:16 PM (IST)
उपेंद्र कुशवाहा के इस्तीफे का बिहार की राजनीति पर क्या पड़ेगा असर, जानिए
उपेंद्र कुशवाहा के इस्तीफे का बिहार की राजनीति पर क्या पड़ेगा असर, जानिए

पटना, जेएनएन। लगातार दो महीने से चल रहे कयासों पर विराम लगाते हुए रालोसपा सुप्रीमो  उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा देने के बाद रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए को भी बाय-बाय कह दिया है। मंत्री पद से इस्तीफा और एनडीए का त्याग कर बिहार में यूपीए का दामन थामने के बाद कुशवाहा बिहार की राजनीति को कितना बदल पाएंगे? ये बड़ा सवाल है। 

loksabha election banner

क्या रालोसपा बनेगी महागठबंधन का हिस्सा...

उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के बाद ऐसी संभावना जताई जा रही है कि अब वो महागठबंधन का ही हिस्सा बनेंगे। एनडीए में लगातार अपनी उपेक्षा का आरोप लगाने के बाद कुशवाहा ने अपना फैसले लेने में लंबा वक्त लगा दिया। कितनी बार मीडिया में ये बात आयी कि आज उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ रहे हैं, लेकिन कुशवाहा ने भाजपा को वक्त दिया कि वो कुछ पहल करे।

बिहार की राजनीति में कुशवाहा फैक्टर 

केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देने के साथ-साथ उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए का भी दामन छोड़ दिया है। मोदी सरकार में उनकी हैसियत भले ही राज्य मंत्री की रही हो। लेकिन, एक हक़ीक़त ये भी है कि पिछले कुछ सालों में बिहार की जातिगत राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा एक ताक़त के तौर पर उभर कर सामने आए हैं।

बता दें कि पिछले कुछ महीनों में कुशवाहा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की खुलकर आलोचना कर रहे थे। ये तब शुरू हुआ जब उपेंद्र कुशवाहा और अमित शाह ने संयुक्त रूप से बैठक कर सीटों की डील की थी और प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि जदयू-भाजपा बिहार में 50-50 का सीट बंटवारा हुआ है। इसके बाद ये बात सामने आयी थी कि रालोसपा को दो सीट मिलेगी जो कुशवाहा को मंजूर नहीं थी।

भाजपा ने नहीं दी उपेंद्र को अहमियत 

इसी बीच कुशवाहा सीटों पर बंटवारे को लेकर अमित शाह और पीएम मोदी से मिलना चाहते थे, लेकिन उन्होंने मिलने का वक्त नहीं दिया और ना ही कुशवाहा को लेकर कोई गंभीरता ही दिखाई। एनडीए के तीसरे घटक लोजपा ने भी कुशवाहा की नाराजगी पर लगातार तंज कसा। लेकिन, ये भी बड़ी बात है कि कुशवाहा ने जदयू   नेता नीतीश कुमार और भाजपा सरकार की लगातार आलोचना के बाद भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने उन्हें बाहर का रास्ता नहीं दिखाया था। 

ऐसे में बड़ा सवाल ये भी उठता है कि क्या उपेंद्र कुशवाहा को भाजपा ने इस्तीफा देने पर मजबूर किया या कुशवाहा के कहे गए शब्दों में कि भाजपा बिहार में नीतीश कुमार के आगे नतमस्तक हो गई है। 

कुशवाहा के भाजपा और नीतीश से बनते बिगड़ते रिश्ते

साल 2003 में, नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था। नीतीश कुमार के साथ अपने संबंधों को लेकर उपेंद्र कुशवाहा कई बार दोहरा चुके हैं कि वे उन्हें अपना बड़ा भाई मानते रहे हैं। लेकिन सर्वविदित है कि उनके नीतीश कुमार से बनते-बिगड़ते रिश्ते रहे हैं। 

ये बात भी दीगर है कि  2003 के बाद जब 2005 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा से उनका बंगला खाली कराने के लिए उनकी ग़ैरमौजूदगी में उनके घर का सामान तक बाहर फिंकवा दिया था।

फिर कुशवाहा समता पार्टी से बाहर निकले, अपनी राष्ट्रीय समता पार्टी बनाई और अपनी राजनीतिक जमीं बनानी शुरू कर दी। 2009 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे और इन उम्मीदवारों ने 25 हज़ार से लेकर 40 हज़ार तक वोट हासिल किए।

इसके बाद सीएम नीतीश कुमार को अंदाज़ा हो गया था कि कुशवाहा उनके लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं इसीलिए नीतीश कुमार ने कुशवाहा को एक जनसभा में गले से लगा लिया और गिले -शिकवे दूर करने को उन्हें राज्यसभा भेज दिया। 

कुशवाहा राज्य सभा में आ तो गए लेकिन एक राजनीतिक ताकत के तौर पर उभरने का सपना वे भूल नहीं पाए और 2013 में एक दिन राज्यसभा से इस्तीफ़ा देकर उन्होंने  राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई और 2014 में  वो एनडीए में शामिल हुए और तीन सीटें हासिल कर केंद्र में मंत्री बन गए।

वहीं, लालू यादव की पार्टी विधानसभा चुनाव में बड़ी पार्टी बनकर उभरी। तब नीतीश कुमार अकेले थे और लोकसभा चुनाव में उन्हें अपनी ताक़त का अंदाज़ा भी हो गया था। मिली करारी हार के बाद नीतीश ने पुरानी दुश्मनी भुला कर लालू प्रसाद यादव से हाथ मिला लिया।

जिस वक्त नीतीश कुमार की एनडीए में दोबारा एंट्री हुई उसी वक्त माना जा रहा था कि अब कुशवाहा अपने आप को एनडीए में असहज महसूस करेंगे। नीतीश दोबारा एनडीए का हिस्सा बने तो न केवल जुबानी जंग शुरू हुई बल्कि, मामला नीच जैसे शब्द तक भी जा पहुंचा।

बिहार में हुए उप चुनाव के दौरान कुशवाहा को सीटें मिलने की उम्मीद थी लेकिन ऐसा हो न सका। ऐसे में अब उनको 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अपनी अनदेखी का डर सताने लगा था। कुशवाहा ने शुरू में तो अपनी सीटों को लेकर दावेदारी ठोकी लेकिन कोई भाव मिलता न देख वो लगातार अलग-अलग तरीके से अपनी मांग मोदी-शाह की जोड़ी तक पहुंचाते रहे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.