Move to Jagran APP

मिशन 2019: तेजस्‍वी को RJD की कमान, पर लालू यादव के नाम पर ही चलेगा काम

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव भले ही जेल में हों, लेकिन पार्टी में उनकी अहमियत कम नहीं हुई है। आगामी चुनाव में जीत के लिए राजद लालू के आधार वोट को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 10:19 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 11:04 PM (IST)
मिशन 2019: तेजस्‍वी को RJD की कमान, पर लालू यादव के नाम पर ही चलेगा काम
मिशन 2019: तेजस्‍वी को RJD की कमान, पर लालू यादव के नाम पर ही चलेगा काम

पटना [अरविंद शर्मा]। पांच राज्यों में भाजपा के खिलाफ जनादेश के बावजूद राजद को बिहार में भाजपा-जदयू की व्यवस्थित ताकत से मुकाबला आसान नहीं लग रहा है। इसलिए तेजस्‍वी यादव के नेतृत्‍व में बैटल फील्ड में जाने की तैयारी में जुटे राजद के नेता लालू प्रसाद यादव के तौर-तरीके को आत्मसात करने में जुटे हैं।

loksabha election banner

चारा घोटाले में लालू करीब एक साल से जेल में हैं। इस बीच तेजस्वी यादव ने पार्टी की पूरी कमान संभाल रखी है। दिल्ली से पटना तक विपक्ष की राजनीति में अलग पहचान भी बना ली है, लेकिन मैदान में जाने से पहले प्रचार से विचार तक के हर मोर्चे को लालू के नाम पर ही सजाया जा रहा है।

प्रशांत किशोर की सक्रियता से परेशानी

हालिया चुनाव नतीजों ने महागठबंधन के घटक दलों को जितना उत्साहित किया है, उससे कहीं ज्यादा जदयू में प्रशांत किशोर की अति सक्रियता ने पेशानी पर बल ला दिया है। पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में जदयू की जीत इसका उदाहरण है। इसके बाद से राजद की राह में प्रशांत किशोर सबसे बड़ा रोड़ा के रूप में नजर आने लगे हैं।

व्यवस्थित नहीं संगठनात्मक ढांचा

भाजपा-जदयू की तरह राजद का संगठनात्मक ढांचा व्यवस्थित नहीं है। हालांकि, बूथ स्तर की मजबूती के मामले में वह दूसरों पर भारी है। प्रत्येक गांव और बूथ पर राजद के लोग हैं। नेतृत्व उनकी संख्या बढ़ाकर कम से कम 20 करना चाहता है। इसके लिए रघुवंश प्रसाद सिंह के नेतृत्व में बूथ स्तर पर संघर्ष समितियां बनाई गई हैं। अगले कुछ दिनों में गांवों में चौपाल भी लगाए जाएंगे। किंतु सबकुछ लालू के नाम पर ही हो रहा है।

उछाले जा रहे लालू से जुड़े हर छोटे-बड़े मसले

पिछले तीन दशक के दौरान बिहार की राजनीति में पहली बार ऐसा लग रहा है कि लालू की अनुपस्थिति में संसदीय चुनाव की प्रक्रिया होगी। राजद के नए नेतृत्व के लिए यह लिटमस टेस्ट की तरह होगा। इसीलिए रणनीति के स्तर पर किसी तरह की चूक से बचने की तैयारी तो है, किंतु लालू की आभा से अलग नहीं। यही कारण है कि लालू से जुड़े हर छोटे-बड़े मसले को उछाला जा रहा है, ताकि समर्थकों की सहानुभूति को उभारा जा सके।

लालू के आधार वोट को एकजुट करने की कोशिश

तेजस्वी यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह एवं शिवानंद तिवारी सरीखे नेता भी पार्टी के कार्यक्रमों और बयानों में लालू के नाम से ही बोलना शुरू करते हैं। अंत भी उन्हीं के नाम से होता है। पता है कि प्रशांत किशोर की रणनीतियों से मुकाबले के लिए लालू के आधार वोट को एकजुट किए बिना सफलता संदिग्ध हो सकती है।

शरद-मांझी को भी चाहिए सहारा

सिर्फ राजद ही नहीं, बल्कि महागठबंधन के अन्य घटक दलों को भी लालू का सहारा चाहिए। हाल के दिनों में रांची की यात्राएं बढ़ गई हैं। शरद यादव, जीतन राम मांझी, अखिलेश प्रसाद सिंह, वृशिण पटेल से लेकर उदय नारायण चौधरी तक कई बड़े नेता रांची के रिम्स (अस्‍पताल) में इलाजरत लालू से कई-कई बार मिल आए हैं। सीट बंटवारे की पहल होने के बाद से राजद की तुलना में घटक दलों के नेताओं की ही ज्यादा मुलाकात हुई है। सबको अपने मनमाफिक सीट लेने में लालू की अनापत्ति चाहिए। साथ ही वोट बैंक का भरोसा भी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.