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लालू और तेजस्वी को इस 'मुनिया' ने दिया बड़ा धोखा, चारों खाने कर दिया चित्‍त

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने जेल से ही लोकसभा चुनाव के लिए दिशानिर्देश दिए थे जिसमें इस बार माय समीकरण के बाद मुनिया यानि-मुस्लिम निषाद और यादव पर जीत का दांव खेला था।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 11:06 AM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 10:23 PM (IST)
लालू और तेजस्वी को इस 'मुनिया' ने दिया बड़ा धोखा, चारों खाने कर दिया चित्‍त
लालू और तेजस्वी को इस 'मुनिया' ने दिया बड़ा धोखा, चारों खाने कर दिया चित्‍त

मुजफ्फरपुर [प्रेम शंकर मिश्र]। बिहार में राजद बनाने के बाद लालू प्रसाद ने 'माय' (मुस्लिम-यादव) समीकरण को साधा। इसके बल पर वे मजबूती से बिहार की राजनीति में जमे रहे। मगर, नीतीश कुमार के भाजपा से समझौते के बाद यह समीकरण कमजोर पड़ गया।

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पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा से मोहभंग होने के बाद नीतीश ने राजद और कांग्रेस से हाथ मिला लिया। बड़ी जीत के साथ यह गठबंधन सत्ता में आया। समय का चक्र बदला और नीतीश फिर भाजपा के साथ आ गए।

इधर, एनडीए का हिस्सा रही उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा, जीतनराम मांझी की हम व मुकेश सहनी की वीआइपी महागठबंधन में शामिल हो गई। राजनीति के दांव-पेच में माहिर लालू प्रसाद ने अपने 'माय' समीकरण को विस्तार दिया। रांची के जेल में बंद उन्होंने संदेश जारी किया 'मुनिया' (मुस्लिम-निषाद-यादव) के सहारे महागठबंधन की जीत होगी।

निषाद, सहनी और इसकी उपजातियों (केवट, मल्लाह, बिंद आदि) की बिहार में अच्छी संख्या को देखते हुए ही मुकेश सहनी की वीआइपी को तीन सीटें भी मिल गईं। मगर, लोकसभा चुनाव में 'मुनिया' ने महागठबंधन का साथ नहीं दिया। मुकेश सहनी समेत उनके तीनों उम्मीदवार हार गए। वहीं जिन सीटों पर यह समीकरण मजबूत था वहां भी महागठबंधन को मुंह की खानी पड़ी।

मुजफ्फरपुर में मुकाबला भी दो निषादों में 

मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट पर निषादों की मजबूती का यह उदाहरण था कि यहां एनडीए और महागठबंधन ने इसी जाति के उम्मीदवारों को उतारा। मुकाबला भी यही दोनों में रहा। मगर, 'मुनिया' ने यहां महागठबंधन को पूरी तरह साथ नहीं दिया। क्योंकि महागठबंधन उम्मीदवार डॉ. राज भूषण चौधरी को करीब ढाई लाख वोट ही मिले। जबकि इस समीकरण से ही यहां छह लाख से अधिक मतदाता हैं।

वहीं भाजपा के अजय निषाद को छह लाख 64 हजार वोट मिले। इतने बड़े अंतर से इस लोकसभा सीट से पहले कभी जीत नहीं हुई थी। कारण यह था कि महागठबंधन के साथ उसका समीकरण नहीं रहा।

सुरक्षित सीट देख मुकेश गए थे खगडिय़ा, नहीं मिली सफलता

वीआइपी के संस्थापक मुकेश सहनी मुख्य रूप से मुजफ्फरपुर से जुड़े रहे हैं। मगर, उन्होंने खगडिय़ा सीट को खुद के लिए सबसे मुफीद माना। कारण, यहां निषाद व उसकी उपजातियों के मतदाताओं की संख्या ढाई से तीन लाख है। इतनी ही संख्या मुस्लिम मतदाताओं की भी है। जबकि, सर्वाधिक चार लाख यादव मतदाता हैं।

वहीं लोजपा उम्मीदवार महबूब अली कैसर से यहां के मतदाता काफी नाराज थे। मगर, मुकेश को यहां महज दो लाख 61 हजार वोट मिले। जबकि, कैसर को पांच लाख से अधिक। यहां 'मुनिया' समीकरण पूरी तरह ध्वस्त हो गया। 

इसके अलावा वीआइपी ने मधुबनी से भी उम्मीदवार उतारा था। मगर, यहां महागठबंधन की लगभग साढ़े चार लाख से सबसे बड़ी हार हुई। कांग्रेस के बागी उम्मीदवार शकील अहमद को वीआइपी उम्मीदवार से महज नौ हजार कम वोट मिले। यहां लालू का 'माय' समीकरण भी फेल हो गया।

वहीं दरभंगा में भी निषाद की बड़ी संख्या को देखते हुए वीआइपी ने पहले इस सीट के लिए दावेदारी की थी। मगर, यहां राजद ने अब्दुल बारी सिद्दिकी को उतारा। मगर, ढाई लाख से अधिक वोटों से सिद्दीकी की हार ने साबित कर दिया कि यहां भी 'मुनिया' का साथ राजद को नहीं मिला। इससे स्पष्ट है कि राजद का यह समीकरण इस चुनाव में धराशायी हो गया। 

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