RIP Irrfan Khan: वो जो था ख्वाब सा, क्या कहें जाने दें... इरफान ने बिहार में छोड़ी हैं अमिट यादें
RIP Irrfan Khan बॉलीवुड अभिनेता इरफान खान का बुधवार को निधन हो गया। इस दुखद समाचार से बिहार में भी शोक की लहर है। लोग उनसे जुड़ी स्मृतियां साझा कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
कुमार रजत, पटना। इरफान खान जब पर्दे पर बोलते तो लगता था एक आम आदमी बोल रहा। जैसे, एक आम बिहारी। उनकी आंखें आधा काम कर जातीं। वे महानायक नहीं थे। न सुपरस्टार। वे बस अभिनेता थे। एक शानदार अभिनेता। जिनको देखकर बिहार के सुदूर गांव-गिरांव से न जाने कितने अभिनेता कालिदास रंगालय और प्रेमचंद रंगशाला के मंच तक पहुंचें और खुद पर यकीन किया कि एक आम शक्ल-ओ-सूरत का इंसान भी सिल्वर स्क्रीन के 70 एमएम के पर्दे पर छा सकता है।
बिहार के पंकज त्रिपाठी भी इसी कड़ी के अभिनेता रहे। गोपालगंज से वाया पटना मुम्बई का सफर करने वाले पंकज त्रिपाठी ने फ़ेसबुक पर लिखा- ' कभी कभी भावनाओं को बता पाना संभव नही होता , वही हो रहा है इरफ़ान दा। आप जानते हैं कि आप क्या हैं हमारे लिए।'
पटना में लालू के साथ ली थी सेल्फी
इरफान पहली और आखिरी बार 7 जुलाई, 2016 को पटना आए थे, अपनी हिंदी फिल्म मदारी के प्रमोशन के लिए। उस दोपहर पटना के पत्रकारों की फौज उनके इंटरव्यू के लिए पाटलिपुत्र कॉलोनी के होटल बुद्धा बुद्धा इंटरनेशनल के बाहर खड़ी थी। अभी कुछ देर पहले ही वह एयरपोर्ट से होटल पहुंचे थे। शायद दोपहर का खाना भी नहीं खाया था, बावजूद पत्रकारों से मिलने के लिए हामी भर दी।
सबको समय मिला सिर्फ 10 मिनट, मगर बातचीत शुरू हुई तो करीब एक घंटे चली। हल्की दाढ़ी वाले लुक में टीशर्ट के ऊपर नीले रंग की ओपन बटन शर्ट पहने इरफान कोई सितारा नहीं, हमारे बीच के ही इंसान लग रहे थे। यही उनकी खासियत थी और मजबूती भी।
इसी शाम वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से मिलने उनके 10 सर्कुलर रोड स्थित आवास भी गए थे। वहां लालू प्रसाद के साथ उन्होंने खुद सेल्फी ली थी जिसे ट्विटर पर शेयर करके लिखा था- बवाल बिहार में, बवाल लोगों के साथ, बवाल सेल्फी। इस दौरान तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से भी इरफान की मुलाक़ात हुई थी।
लेखकों के भी प्रिय अभिनेता थे इरफान
प्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री उषा किरण खान कहती हैं, 'इरफान मेरे सर्वाधिक पसंदीदा अभिनेता थे। दूरदर्शन पर जब पहली बार लेनिन नाटक देखा तबसे मैं इनकी मुरीद रही। मेरी बेटी कनुप्रिया शादी कर मुम्बई अपने पति चेतन पंडित के साथ रहने गई तो इरफान मलाड के हरिद्वार अपार्टमेंट में किराए पर रहते थे। इरफान और उनकी पत्नी सुतापा दास गुप्ता से आत्मीय जुड़ाव रहा। इरफान गाहे बगाहे कनुप्रिया से पूछ लेते कि आंटी को मेरा यह या वह अभिनय कैसा लगा।'
इरफान टीवी सीरियल में भी खूब दिखे। स्टार वन के सीरियल मानो या न मानो के वे होस्ट थे। इस सीरियल के लेखक और प्रसिद्ध उपन्यासकार रत्नेश्वर कहते हैं- उनकी सहजता शब्दों का अर्थ गहरा कर देती। मेरी लिखी स्क्रिप्ट को जब पर्दे पर वे पढ़ते तो अनायास ही उसमें वे कुछ ऐसे शब्द जोड़ देते जिससे बात और सहज हो जाती। वे खुद में अभिनय की पाठशाला थे। वे अभिनय को बहुत कुछ देकर गए हैं।
इरफान को याद करते हुए एक गीत भी सहसा याद आता है, जो बिहार के ही युवा गीतकार राजशेखर ने उनकी 2017 में रिलीज फिल्म 'करीब करीब सिंगल' में लिखा था- 'वो जो था ख्वाब सा...क्या कहें जाने दें...ये जो है कम से कम...ये रहे कि जाने दें।' इरफान ने फ़िल्म बिरादरी और सिनेप्रेमियों को जो दिया है- वह किसी ख्वाब से कम नहीं। जरूरत उस ख्वाब को संजोने की है। इरफान तो चले गए उनकी यादों को हम न जाने दें। अलविदा इरफान।