पढ़ें- कैसे तीन घंटे में बदल गई मधुर भंडारकर की किस्मत
महज तीन घंटे में मशहूर फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर की किस्मत बदल गई थी। ऐसी ही कई अन्य बातें उन्होंने हमारे साथ खुलकर शेयर की। थोड़ी मस्ती, थोड़ा शोरगुल और फिल्मों से जुड़ी ढेरों जानकारियां। कुछ इसी अंदाज में शुरू हुआ छठे जागरण फिल्म महोत्सव का दूसरा दिन।
पटना [तेंदुलकर चौहान]। महज तीन घंटे में मशहूर फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर की किस्मत बदल गई थी। ऐसी ही कई अन्य बातें उन्होंने हमारे साथ खुलकर शेयर की, जो अब तक राज थे।
थोड़ी मस्ती, थोड़ा शोरगुल और फिल्मों से जुड़ी ढेरों जानकारियां। कुछ इसी अंदाज में शुरू हुआ छठे जागरण फिल्म महोत्सव के दूसरे दिन का पहला सत्र। इस सत्र में फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज ने निर्देशक मधुर भंडारकर से निजी जीवन से लेकर फिल्म मेकिंग व कॅरियर जैसे कई विषयों पर बात की।
मौके पर मौजूद दर्शकों ने भी सीधे मधुर से सवाल पूछे। पढ़ें कैसे तीन घंटे में बदली मधुर भंडारकर की किस्मत...
- आपकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट क्या था?
चांदनी बार की रिलीज से पहले मैंने बार बालाओं के लिए एक शो रखा था। मैं बाहर खड़ा होकर लोगों का स्वागत कर रहा था और सबको बताता था कि ये फिल्म मैंने बनाई है। कम से कम कोई हाथ भी तो मिला ले। किसी ने मुझे नोटिस नहीं किया। जब फिल्म देखकर लोग बाहर निकले तो सभी बस मुझे ही ढूंढ रहे थे। सभी बस एक ही बात पूछते कि कौन है ये मधुर भंडारकर। तब समझ में आया कि यहां तीन घंटे में भी किस्मत बदल जाती है।
- पहली बार बिहार आगमन का अनुभव कैसा रहा?
इसे संयोग ही कहिए कि इतने लंबे समय से इंडस्ट्री में हूं, फिल्मों के प्रोमोशन के लिए हर जगह गया लेकिन बिहार आने का मौका अभी तक नहीं मिला था। मैं शुक्रगुजार हूं 'दैनिक जागरण' का जिन्होंने फिल्म फेस्टिवल के माध्यम से मुझे ये मौका मिला। यहां आकर काफी अच्छा लगा। यहां का खाना, यहां के लोग सभी बेहद अच्छे हैं। मैं पटना साहिब भी गया, काफी सारे फैंस मिले। इसे काफी सुखद अनुभव कह सकते हैं।
- चांदनी बार बनाने का फैसला क्यों और कैसे लिया?
बहुत कम लोग जानते हैं कि मैंने चांदनी बार से पहले भी एक फिल्म बनाई थी त्रिशक्ति। फिल्म नहीं चली। यहां तक कि फिल्म समीक्षकों ने भी इस फिल्म की कोई चर्चा नहीं की। ऐसी स्थिति हुई कि सभी मुझसे किनारा करने लगे। इंडस्ट्री में फ्री एडवाइज सभी देते हैं। किसी ने कहा इंडस्ट्री छोड़ दो, ये सब तुम्हारे बस का नहीं।
किसी ने कहा भजन, चालीसा आदि निर्देशित करो। उन्हीं दिनों मेरा एक दोस्त बार घुमाने ले गया। वहां जब मैंने बार डांसर्स को देखा तो मुझे उनकी जिंदगी पर काम करने की इच्छा हुई और फिर मैंने उनपर रिसर्च शुरू कर दिया। यहीं से 'चांदनी बार' का जन्म हुआ।
- स्त्री व मिडिल क्लास को केंद्र में रखने की क्या वजह रही?
मैंने बहुत गरीबी व स्ट्रगल देखी है। मैं साइकिल से घर-घर जाकर वीडियो कैसेट बेचता था। आज लोग उस मधुर को भूल गए। मिथुन चक्रवर्ती एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें पुराना मधुर याद है। जब चांदनी बार बनी थी तो उन्होंने अपनी पत्नी को बताया था कि ये फिल्म उसी मधुर की है जो हमारे यहां वीडियो कैसेट बेचने आता था। उन्होंने मुझे फोन करके भी बधाई दी थी।
उन दिनों महिलाओं पर बहुत कम फिल्में बनती थी। साथ ही समाज में महिलाओं से जुड़ी कई बातें थी जिन्हें लोगों के सामने लाना जरूरी था। जब मेरी पहली फिल्म फ्लॉप हुई थी तो लोगों ने कहा था कि तुम्हारी फिल्मों में मसाला नहीं है। मैंने तभी ठान लिया था कि चाहे जो हो जाए फिल्म बनाऊंगा तो सिर्फ खुद की सुनकर।
- फिल्मों में अपने सिद्धांतों पर बने रहना जरूरी है या मौका देखना :
स्ट्रगल जरूरी है। इससे आप बहुत कुछ सीखते हैं। कोई तुरंत कुछ नहीं बन जाता। हमलोगों की भाषा में कहें तो बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं। जरूरी नहीं कि एक जैसे मेहनत करने वाले सारे लोगों को एक जैसी ही सफलता मिले। मेरे पास कुछ नहीं था न कोई टेक्निकल स्किल, न बेहतर पढ़ाई।
अगर मेरे पिताजी का छोटा-मोटा बिजनेस भी होता तो मैं वहां जाकर बैठ जाता लेकिन फिल्म लाइन में नहीं आता। यहां सफल होने के लिए मेहनत के साथ किस्मत भी जरूरी है। आपके पास कोई आप्शन हमेशा रहने चाहिए।
- किन महिलाओं ने आपको प्रेरित किया :
ऐसा नहीं है कि मैं किसी महिला से इंस्पायर होकर महिलाओं पर केंद्रित फिल्में बनाता हूं। सबका देखने का अपना नजरिया होता है। काफी लोग मानते हैं कि मेरा नजरिए एक पत्रकार जैसा है। शायद ये सही भी है, मैं खोजी नजरों से ही चीजों को देखता हूं।
मुझमें जिज्ञासा बहुत है। निजी जीवन में मैं अपनी मां, दीदी से लेकर पत्नी व बेटी तक से प्रेरित होता रहता हूं। इनके अलावा कई फिल्मों के स्त्री चरित्रों ने मुझे काफी प्रभावित किया है। गुरूदत्त, विमल दा, राजकपूर की फिल्मों से हमेशा इंस्पायर हुआ। मधुबाला, गाइड, पाकीजा के चरित्रों ने प्रभावित किया।
- फिल्म मेकिंग के लिए ट्रेनिंग कितनी जरूरी?
इंस्टीट्यूशन आपको मार्गदर्शन दे सकता है। वहां आप थ्योरी सीखते हैं। प्रैक्टिकल आपको इंडस्ट्री में आकर ही सीखना होगा। इतना जरूर है कि इंस्टीट्यूशन आपको ऐसी बहुत सी बातें सिखा देता है, जिसे सीखने के लिए इंडस्ट्री में आपको काफी समय देना पड़ता है।
- आपकी आने वाली फिल्म कैलेंडर गल्र्स में पांचों नई लड़कियां हैं, क्यों?
मैं हमेशा चरित्र के हिसाब से कास्ट करता हूं। इससे पहले भी मैने पेज थ्री में कोंकणा सेन शर्मा को मौका दिया था। इस बार फिर कहानी की मांग न्यूकमर्स की थी, इसलिए मैंने नई लड़कियों को कास्ट किया।
- ये आयोजन कैसा लगा?
दैनिक जागरण की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई। इतने शहरों में एक साथ और इतना सफल आयोजन, बहुत बड़ी बात है। यहां लोग बेहतर फिल्में तो देखते ही हैं साथ ही हमें भी उनसे सीधे जुडऩे का मौका मिलता है। जिस तरह से लोग हमें सुनना चाहते हैं उसी तरह हम भी उन्हें सुनना चाहते हैं। दोबारा मौका मिला तो जरूर आना चाहूंगा।
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दर्शकों के सवाल
- आपने हमेशा दूसरों पर फिल्में बनाई कभी खुद पर फिल्म बनाने की नहीं सोची? - अंकित
मेरे जीवन में इतना ड्रामा है कि फिल्म तो आसानी से बनाई जा सकती है। मेरे पास अभी इतने आइडियाज हैं कि कुछ और सोचने की फुर्सत ही नहीं है। हां, मैं अपनी हर फिल्म के स्ट्रगल पर एक किताब लिखने की जरूर सोच रहा हूं।
- चीजों को देखने का आपका आम लोगों से भिन्न नजरिया कैसे है? - अमन
सबका अपना-अपना नजरिया होता हे। मैं हमेशा कुछ न कुछ खोजता रहता हूं। न्यूज पेपर से, लोगों से, अपने आस-पास से ही मैं आइडिया लेता हूं।
- आप इतने हैंडसम हैं, निर्देशन के अलावा कभी एक्टिंग करने की नहीं सोची? - संजय सिंह
काफी लोगों ने ऑफर दिया, लेकिन मैं जानता हूं कि मैं बहुत बुरा एक्टर हूं। मैं जो हूं उसी से खुश हूं।
- आपने स्त्रियों पर इतना काम किया। हमारे यहां द्रौपदी और सीता काफी मजबूत स्त्री चरित्र हैं। आपने कभी उनसे प्रेरणा नहीं ली? - प्रिया मनीष कुमार
मैं हमेशा कंटेंपरेरी फिल्म बनाता हूं। चांदनी बार में लोगों ने स्त्री का कमजोर रूप देखा तो सत्ता व कॉरपोरेट में स्त्री काफी मजबूत रूप में थी। पांचों उंगलियां एक जैसी नहीं होती। महिलाओं का भी मजबूत व कमजोर दोनों तरह का रूप होता है।
- आपकी कुछ फिल्में फ्लॉप भी रही, उससे कभी हताशा नहीं हुई? - आत्मजा
हताशा ही नहीं हुई बल्कि उसने मुझे अंदर तक हिला दिया। अगर आप इंडस्ट्री से नहीं हैं, अच्छे परिवार से नहीं हैं तब आपके लिए असफलता और भयावह हो जाती है। कई बार तो इंडस्ट्री छोडऩे तक का ख्याल आया। मैंने खुद से लड़ाई की और खुद को एक मौका दिया। अगर चांदनी बार नहीं होती तो मैं यहां नहीं होता।
- अपनी फिल्मों में इतना रिसर्च वर्क आपने कैसे किया? - अनुराधा जैन
मैंने खुद भी काफी मेहनत की। हमारी टीम के लोगों ने भी भरपूर सहयोग दिया। हम वैसे कैरेक्टर को ढूंढ कर बाते करते हैं, उनसे जुड़े लोगों से बातें करते हैं। कंटेंट जुटाने में मेहनत तो करनी ही होती है।
- कोई एक अच्छा फिल्म मेकर कैसे हो सकता है? - गौरव
अच्छा फिल्म मेकर बनने के लिए टिप्स देना मुश्किल है। इंडस्ट्री में किसकी फिल्म हिट हो जाएगी और किसी फ्लॉप कहना मुश्किल है। लेकिन फिल्म मेकर बनने के लिए फिल्में देखना जरूरी है। आपमें अपना व्यू होना चाहिए।
- बॉलीवुड पर पुरुष अभिनेताओं का राज है, या अभिनेत्रियों का। - रवि रंजन कुमार
आज भी ङ्क्षहदी फिल्म इंडस्ट्री पर पुरुष कलाकारों का राज है। इन दिनों काफी बदलाव आया है। स्त्री प्रधान फिल्में बन भी रही है और चल भी रही हैं। इसमें फिल्ममेकर्स की भी अहम भूमिका है और दर्शकों की भी। अगर आप चाहते हैं कि ङ्क्षहदी फिल्मों पर महिला कलाकारों का दबदबा बढ़े तो फिल्म देखने जाते वक्त ये मत पूछिए कि हीरो कौन है।
- बिहार को आपने अब करीब से देख लिया। यहां की पॉलिटिक्स पर कभी फिल्म नहीं बनाना चाहेंगे? - मनोज श्रीवास्तव
फिलहाल मेरे पास बहुत सारे आइडियाज पड़े हुए हैं। अभी तो ऐसा कुछ इरादा नहीं है।
- आपके फिल्मों का टारगेट ऑडियंस कौन होता है? - सीमा कुमारी
मैं युवाओं को ही टारगेट ऑडियंस के रूप में रखता हूं। युवा बेहतर जुड़ सकते हैं। साथ ही अगर युवाओं में बदलाव आएगा तो बहुत कुछ बदल जाएगा।
- कल आपकी बेटी अगर एक्ट्रेस बनना चाहेगी तो क्या आप उसे बनने देंगे?
मैं रोकूंगा नहीं, ये तो तय है। वह जो चाहे बन सकती है। वैसे वह अभी आठ साल की है। उसे गाने का शौक है इसलिए वह अभी संगीत सीख रही है। पता नहीं बड़ी होकर उसकी इच्छा क्या बनने की हो। मैं बचपन मैं पायलट बनना चाहता था, फिर लगा कि मैं पुलिसवाला बनूंगा। समय के साथ इच्छाएं बदलती रहती हैं।
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'कैलेंडर गर्ल्स' का दिखाया गया ट्रेलर
इस अवसर पर मधुर भंडारकर की आने वाली फिल्म 'कैलेंडर गर्ल्स' का ट्रेलर भी दिखाया गया। यह फिल्म 25 सितंबर को रिलीज होगी। मधुर खास तौर पर इसे अपने साथ लाए थे। मधुर ने बताया कि फिल्म की कहानी काफी इमोशनल है। पांच अलग-अलग शहरों की लड़कियां किस तरह से बुलंदी को छूती हैं और उसके बाद उनका क्या होता है, यही इस फिल्म की कहानी है।
फिल्म का संगीत बहुत अच्छा है। ट्रेलर को देखकर भी लगा कि शायद यह फिल्म मधुर की अबतक की सबसे यादगार फिल्म हो। ट्रेलर में दिखाया गया डॉयलॉग 'यहां पर लोग रोने के लिए कंधा नहीं देते, मरने तक का इंतजार करते हैं', को काफी सराहना मिली।