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पढ़ें : कार्यक्रम का स्टेज बनाने के लिए काटी जा रही थी मिट्टी, मिल गया प्राचीन किला

यह महज संयोग था। लखीसराय शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित एक पहाड़ी पर किसी कार्यक्रम के लिए स्टेज बनाया जा रहा था। यहीं मिट्टी काटने के दौरान 12 सौ साल पुरानी संरचना सामने आ गयी। पुरातत्वविद इसे पालकालीन किला बता रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 16 Jan 2016 09:13 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jan 2016 12:14 PM (IST)
पढ़ें : कार्यक्रम का स्टेज बनाने के लिए काटी जा रही थी मिट्टी, मिल गया प्राचीन किला

पटना [सुविज्ञ दुबे]। यह महज संयोग था। लखीसराय शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित एक पहाड़ी पर किसी कार्यक्रम के लिए स्टेज बनाया जा रहा था। यहीं मिट्टी काटने के दौरान 12 सौ साल पुरानी संरचना सामने आ गयी। पुरातत्वविद इसे पालकालीन किला बता रहे हैं।

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सतह से थोड़ा ही नीचे शानदार किले का वजूद देख पुरातत्वविद बेहद उत्साहित हैं। फिलहाल इसके संरक्षण के लिए केंद्र से औपचारिक अनुमति ली जा रही है।

देखभाल की व्यवस्था

पुराविदों के अनुसार अभी यहां की जांच पड़ताल मेंं तमाम नई बातों के सामने आने की उम्मीद है। जुलाई में यहां पुरातात्विक अन्वेषण के लाइसेंस के लिए आवेदन दिया जाएगा। इससे पहले इसकी सामान्य देखभाल की व्यवस्था की जा रही है।

कनिंघम की रपट में जिक्र

पुरातत्व निदेशक अतुल वर्मा के अनुसार अंग्रेज विद्वान कनिंघम की रपट में इस इलाके का जिक्र मिलता है। यह किला जिस पहाड़ी पर है, उसके ठीक सामने एक और पहाड़ी है। दोनों को लाल और काली पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

कनिंघम के अनुसार इन दोनों पहाडिय़ों के बीच वाले स्थान पर बड़ा बाजार लगता था। इस बाजार वाले इलाके में हाल ही में अलाउद्दीन खिलजी के समय के सिक्के मिले हैं। इन सिक्कोंं से भी इलाके की व्यावसायिक महत्व और समृद्धि का अंदाज लगाया जा सकता है।

आसपास मिले पालकालीन अवशेष

इसके अलावा आसपास पालकालीन मूर्तियां मिलना सामान्य बात रही है। इस किले के एतिहासिक महत्व पर जानकारों की राय हासिल करने के लिए पुरातत्व निदेशालय अगले हफ्ते संगोष्ठी आयोजित कराने जा रहा है। संगोष्ठी के दौरान विशेषज्ञ सामने आए हैरिटेज के विभिन्न पहलुओं पर विशद बातचीत करेंगे। सेमिनार में उठे बिंदुओं के आधार पर किले के संरक्षण और इसे विकसित किए जाने की रणनीति तय की जाएगी।

किले की खास बातें...

- किले के निर्माण में इस्तेमाल की गयी ईंट और यहां मिले पुरावशेषों से यह अंदाज लगाया जा रहा है कि इसका समय 12-13 सौ साल पहले का पालकालीन है।

- जहां यह किला मिला है, उसके आसपास की जगह पहले से ही काफी चर्चित है। यह स्थान प्राचीन अशोक धाम जाने के रास्ते में है।

- पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार किले में बाहरी आक्रमणकारियों से मुकाबले की पूरी व्यवस्था है।

- ऊंचाई पर बने इस किले में आसपास के इलाके की हलचल पर नजर रखने के लिए वाच टावर भी बने थे।

- आरंभिक जांच पड़ताल में किले में छिपने के लिए अंडर ग्राउंड कमरे भी मिले हैं।

- एक कमरा ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित और सुसज्जित है। यहां ऐसे ही और कमरों के होने की पूरी संभावना है।

- किले से बाहर निकलने के लिए कई रास्तों की मौजूदगी इसके सामरिक महत्व को भी बताती है।


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