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Ram Vilas Paswan Death News: कई बार बिखरे पर कभी टूटे नहीं राम विलास पासवान, हमेशा पलट दिए हालात

Ram Vilas Paswan Death News एलजेपी के संस्‍थापक राम विलास पासवान का राजनीतिक जीवन उथल-पुथल भरा रहा। संकटें आईं लेकिन उन्‍होंने अपनी सूझबूझ से परिस्‍थतियों को हमेशा अपने पक्ष में पलट दिया। आइए जानते हैं उनकी राजनीतिक यात्रा की कुछ खास बातें।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2020 09:36 AM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2020 10:19 AM (IST)
Ram Vilas Paswan Death News: कई बार बिखरे पर कभी टूटे नहीं राम विलास पासवान, हमेशा पलट दिए हालात
लोक जनशक्ति पार्टी के संस्‍थापक एवं केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान। फाइल तस्‍वीर।

पटना, अरविंद शर्मा। Ram Vilas Paswan Death News: मौके की पहचान, जोड़तोड़ एवं दोस्तों-दुश्मनों को बदलने की कला में माहिर रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की राजनीति हमेशा उथल-पुथल के दौर से गुजरती रही। कई बार बिखरे। ऐसा लगा कि अब राजनीति खत्म हो जाएगी। किंतु चालाकी से फिर हालात को पलटा और दमदारी के साथ उठ खड़े हुए। ऐसी ही काबिलियत के कारण राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) मजाक में उन्हें मौसम वैज्ञानिक कहा करते थे।

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1969 में बने विधायक, समाजवादी धारा में हुआ प्रशिक्षण

पहली बार 1969 में विधायक बनने के पहले पासवान की राजनीति की शुरुआत समाजवादी प्रशिक्षण से हुई थी। लोहिया (Ram Manohar Lohia), जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) और कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) के करीबी थे। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Vihari Vajpayee), नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और लालू प्रसाद (Lalu Prasad Yadav) से भी दोस्ताना संबंध रहा। 1983 दलित सेना (Dalit Sena) बनाकर पासवान ने पांच दशकों से भी ज्यादा समय तक राजनीति के नब्ज को पकड़कर रखा। बिहार से बाहर भी निकले। दलित राजनीति में कांशीराम (kanshi Ram) एवं मायावती (Mayawati) से अलग अपनी राह बनाई। 1977 के संसदीय चुनाव में हाजीपुर से रिकार्ड मतों से जीतने वाले रामविलास ने राजनीति में जितनी भी दूरी तय की थीं, उसमें मुश्किलें भी कम नहीं आईं।

मुश्किल भरा रहा वर्ष 2005 से 2009 तक का दौर

वर्ष 2005 से 2009 तक रामविलास के लिए सियासी लिहाज से मुश्किल दौर था। वह हारे तो थे 1984 में भी, किंतु तब राजनीति में उनका कद इतना बड़ा नहीं था। हार-जीत का सिलसिला जारी था। दलित नेता के तौर पर उभरने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी। कभी उत्तर प्रदेश के बिजनौर से तो कभी बिहार से चुनाव लड़ते रहे। वर्ष 2000 में अपनी अपनी अलग लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) बनाई और फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद (RJD) के खिलाफ कांग्रेस (Congress) से गठबंधन किया। कामयाबी भी मिली। एलजेपी को पहली बार 29 विधायक मिले। हालांकि, कुछ ही महीने के भीतर पार्टी टूट गई।

बिहार में तैयार की लालू के वोट बैंक से अलग जमीन

पासवान को तब ज्यादा सदमा लगा जब 2009 में उसी हाजीपुर से उन्हें जदयू के रामसुंदर दास (Ram Sundar Das) ने हरा दिया, जहां से उन्होंने भारी मतों से जीत का रिकार्ड बनाया था। उसके बाद वह केंद्र की राजनीति में लौट आए। बिहार में लालू प्रसाद के वोट बैंक से अलग राजनीतिक जमीन तैयार की। अनुसूचित जाति के साथ-साथ अगड़ों को भी साधा। अपराधियों से भी गुरेज-परहेज नहीं किया। टिकट दिया। सांसद और विधायक बनाया।

परिवार से रखा बहुत लगाव, बेटे चिराग को सौंपी विरासत

पासवान ने परिवार से बहुत लगाव रखा। पहले भाइयों को राजनीति में आगे किया। बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) को फिल्मी दुनिया में लॉन्च करने का प्रयास किया, लेकिन कामयाबी न मिलने पर बाद में राजनीतिक विरासत सौंपी।

यह भी देखें: रामविलास पासवान का निधन, पीएम मोदी ने जताया दुख


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