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खाता न बही, साहब ने जो लिख दिया वही सही...जानिए 151 करोड़ के इस खेल का सच

पूर्व-मध्य रेल के पटना रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में हुए घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद पता चला है कि इसमें कुल 151 करोड़ की राशि का घालमेल किया गया था।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 25 Oct 2018 11:17 AM (IST)Updated: Thu, 25 Oct 2018 11:17 AM (IST)
खाता न बही, साहब ने जो लिख दिया वही सही...जानिए 151 करोड़ के इस खेल का सच
खाता न बही, साहब ने जो लिख दिया वही सही...जानिए 151 करोड़ के इस खेल का सच

पटना [चन्द्रशेखर]। पूर्व मध्य रेल के पटना रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में हेराफेरी के मामले में अब जाकर कार्रवाई हुई है। इस मामले में ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य को निलंबित कर दिया गया है। यह मामला सितंबर 2015 से अगस्त 2017 के बीच का है। इस दौरान ट्रेन से गिरकर अथवा ट्रेन से कटकर होने वाली मौत पर मिलने वाले मुआवजे में भारी घोटाला किया गया है।

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ऑडिट टीम को जांच के दौरान पता चला कि दो वर्षों में सेटल अधिकांश मामलों में अनियमितता बरती गई है। 80 से अधिक ऐसे मामलों का पता चला, जिसमें दो से चार बार मुआवजा ले लिया गया। इस बात को जब दैनिक जागरण की ओर से प्रमुखता से उठाया गया तो आनन-फानन में चार-चार बार भुगतान की गई राशि को वसूल लिया गया। इन दो वर्षों में अधिकांश मामलों में साजिश के तहत किसी तीसरे व्यक्ति को खड़ा कर पूरी राशि निकाल ली गई। 

दो साल में निबटा दिए तीन गुना मामले 

पटना रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से सितंबर 2013 से जुलाई 2015 के बीच लगभग दो वर्ष में 789 मामलों का निष्पादन किया गया। लेकिन, सितंबर 2015 से अगस्त 2017 तक लगभग दो साल में ही 2564 मामलों का निष्पादन कर दिया गया।

इस दौरान लगभग 151 करोड़ का भुगतान किया गया। 100 से अधिक मामलों में दोबारा क्लेम का भुगतान कर दिया गया। ऑडिट टीम के ऑब्जेक्शन के बाद 80 लोगों से 4 करोड़ रुपये की राशि वसूलने का दावा किया गया।  

ऐसे होता था खेल 

कोई यात्री जब ट्रेन से गिरकर या कटकर मरता है तो रेलवे परिजनों को मुआवजा देती है। इसके लिए परिजनों को मौत के 60 दिनों बाद ट्रिब्यूनल में क्लेम करना पड़ता है। इन दो वर्षों में जीआरपी की ओर से ट्रिब्यूनल के चहेते अधिवक्ताओं को घटना की सूचना दी जाती थी।

बदले में अधिवक्ता सूचना देने वालों को मामूली रकम देते थे। अधिवक्ता मृतक के परिजनों से संपर्क साधते थे और मुआवजा मिलने के बाद  मामूली रकम दे चलता कर देते थे। कई बार तो फर्जी परिजन खड़े कर पूरी राशि हड़प लेते थे। 

बिना जांच रिपोर्ट के हुआ भुगतान 

मुआवजे की राशि तभी देने का प्रावधान था जब आरपीएफ की ओर से जांच रिपोर्ट सुपुर्द कर दी जाए। सितंबर 2015 से अगस्त 2017 के दौरान अधिकांश मामलों में आरपीएफ की जांच रिपोर्ट से पहले ही मुआवजा देने का आदेश ट्रिब्यूनल की ओर से दे दिया जाता था।

कई मामलों में तो मुआवजा मिलने के एक-एक साल बाद आरपीएफ की ओर से जांच रिपोर्ट भेजी जाती थी। कई मामलों में आरपीएफ की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद भुगतान कर दिया जाता था। 

पांच ही बैंकों से 2000 पीड़ितों को भुगतान 

ट्रिब्यूनल से मुआवजे का आदेश पारित होने के बाद पार्टी के अधिवक्ता की पहचान पर एक ही बैंक में खाता खोला जाता था। बाद में उसी खाते में भुगतान किया जाता था। भुगतान होने के दो से तीन दिन के अंदर पूरी राशि निकाल ली जाती है। इस दौरान अलग-अलग बैंक की पांच शाखाओं में ही 200 पीडि़तों को भुगतान कर दिया गया।

गिने-चुने अधिवक्ताओं के मार्फत ही होती थी डील 

जांच में खुलासा हुआ कि दो साल के अंदर अधिकतर मामलों में मात्र पांच ही अधिवक्ता पैरवीकार थे। इनमें से एक अधिवक्ता को तो पहले ही ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया था। इसके बावजूद उन्हें दूसरे नाम से मुकदमा लडऩे की छूट दी गई थी। 

बिना केस की इंट्री किए कर दिया निष्पादन 

नियमानुसार प्रत्येक दिन न्यायालय की सुनवाई के दौरान कंप्यूटर में केस वाइज इंट्री की जाती है। हाल यह है कि अगस्त 2017 की इंट्री के मुताबिक सुनवाई के लिए कोई भी मामला प्रस्तुत नहीं हुआ। हालांकि इसी महीने में 137 मुकदमों का निष्पादन किया गया। ट्रिब्यूनल में डबल बेंच में एक न्यायपालिका से तो दूसरा रेलवे का तकनीकी सदस्य रखना अनिवार्य है। लेकिन, एक ही बेंच की ओर से निर्णय सुना दिया गया। 

हैरत में डालने वाले कुछ मामले

केस संख्या 0139/2011 मामले में पीडि़त की पत्नी सोहिला देवी ने मुआवजे का क्लेम किया। सोहिला देवी को सूद समेत मुआवजा तो दिया ही गया, इसी मामले में अर्जुन पासवान ने भी मुआवजे का क्लेम किया तो उसे भी पूरी राशि का भुगतान किया गया। दोनों को एक ही बैंक की शाखा से भुगतान किया गया। इतना ही दोनों ही मामले में एक ही अधिवक्ता पैरवीकार भी हैं। केस संख्या 0068/2014 में घटनास्थल टेहटा बताया गया है।

आरपीएफ की ओर से रिपोर्ट में जिक्र किया गया है टेहटा में पटना-हटिया एक्सप्रेस का न तो ठहराव है और न ही घटना के दिन वहां रुकी थी। आरपीएफ की रिपोर्ट की अनदेखी कर सुनीता देवी के पक्ष में 29 अक्टूबर 2015 को जजमेंट कर दिया गया।

केस संख्या 497/2014 में रिपोर्ट मिले बगैर भुगतान भी कर दिया गया। बाद में जो आरपीएफ की ओर से रिपोर्ट भेजी गई, उसमें कहा गया कि मृतक का घर रेलवे ट्रैक के किनारे था। रात में रेलवे ट्रैक पार करने के दौरान वह ट्रेन की चपेट में आ गया था। रेलवे के प्रावधानों के मुताबिक उसके परिजनों को मुआवजा का क्लेम नहीं बनता था।

केस संख्या 632/2014 में वादी द्वारा मुआवजे के लिए क्लेम 2014 में किया जाता है और मौत अगले साल 2015 में होती है। जिस मामले की जांच के लिए आरपीएफ बक्सर को कहा जाता है, उस मामले में नार्थ ईस्ट से गिरकर गुवाहाटी निवासी थॉमस नाग की मौत होती है।

रेलवे ट्रिब्यूनल क्लेम में मुकदमा अतहर अली की मौत पर किया जाता है, जो घटना बेगूसराय के बछवाड़ा में होती है। जांच रिपोर्ट में भी इसे संदिग्ध करार दिया गया है। इसके बावजूद क्लेम का भुगतान सूद समेत किया गया।


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