जानें आखिर 'रेड मिर्ची से क्यों परेशान है रेलवे, इसके पीछे आखिर क्या है पूरा खेल
आम आदमी रेलवे के टिकट के लिए भटकता रहता है, लेकिन टिकट दलाल नित नए प्रयोग कर दलाली को अंजाम दे रहे हैं। अब हैकर्स रेड मिर्ची के नाम से सॉफ्टवेयर बना रहे हैं।
पटना, चन्द्रशेखर। इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन अर्थात आइआरसीटीसी से तत्काल टिकट की बुकिंग फुलप्रूफ होने के दावे को टिकट दलालों द्वारा लगातार ठेंगा दिखाया जा रहा है। आइआरसीटीसी अपने सॉफ्टवेयर को जितना भी सुरक्षित बना रहा है, हैकर्स उसका तोड़ ढूंढ ही ले रहे हैं।
कभी क्रोशिया, बप्पा, ब्लैक कोबरा, लायन, रेमंड, डबल बुल आदि नामों से फर्जी सॉफ्टवेयर बनाकर इसे ट्रैवल एजेंसियों के हाथों बेच दिया जाता था। ट्रैवल एजेंसियां इसकी मदद से आइआरसीटीसी की वेबसाइट को हैक कर आसानी से टिकट बना लेती हैं।
अब हैकर्स 'रेड मिर्ची' अथवा 'नियो' के नाम से सॉफ्टवेयर बनाया है। इनमें से 'रेड मिर्ची' सॉफ्टवेयर को ट्रैवल एजेंसियों के मालिक सबसे कारगर मानते हैं। इस सॉफ्टवेयर से ट्रैवल एजेंसियां आसानी से रेलवे की वेबसाइट हैक कर तत्काल टिकट को भी बुक कर लेती हैं। इसके लिए एक-एक यात्री से डेढ़ से दो हजार रुपये तक अतिरिक्त सेवा शुल्क लिए जा रहे हैं।
आरपीएफ महानिदेशक अरुण कुमार के निर्देश पर पूरे देश में एक साथ टिकट दलालों के खिलाफ छापेमारी की जा रही है। बेहतर परिणाम भी देखने को मिले हैं। देश भर में हजारों एजेंसी संचालक पकड़े गए हैं। अकेले पूर्व मध्य रेल क्षेत्र में सैकड़ों ट्रैवल एजेंसी मालिक अथवा उनके कर्मचारी गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
आम यात्रियों को नहीं मिल रहा आरक्षित टिकट
हाल के दिनों में पकड़े गए दलालों से मिली जानकारी से पता चला है कि सबसे अधिक रेड मिर्ची नामक सॉफ्टवेयर से आइआरसीटीसी का वेबसाइट हैक कर टिकट की बुकिंग की जा रही है। नतीजा यह हो रहा है कि आम यात्रियों को आरक्षित टिकट मिल नहीं पा रहा है। इतना ही नहीं एक ओर रेलवे की ओर से आम यात्रियों के लिए शॉर्ट नाम से टिकट नहीं बुक कराने का निर्देश दिया गया है, वहीं दलाल आसानी से शॉर्ट नामों से टिकट बुक कर बेच दे रहे हैं।
बेंगलुरु और गुजरात के हैं हैकर्स
इस संबंध में आरपीएफ के महानिदेशक अरुण कुमार ने बताया कि टिकट दलाल टीम व्यूअर पर जाकर गैरकानूनी तरीके से सॉफ्टवेयर खरीदते हैं। अभी अधिकांश एजेंट रेड मिर्ची नामक सॉफ्टवेयर खरीदकर आरक्षित टिकटों की बुकिंग कर रहे हैं। सॉफ्टवेयर बेचने वाले अधिकांश इंजीनियर बेंगलुरु अथवा गुजरात के हैं। सारे सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो किसी न किसी नाम से सॉफ्टवेयर बनाकर बेचते हैं।
टिकट दलालों के घर तक पहुंचा देते हैं सॉफ्टवेयर
बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की कंपनी का मार्केटिंग नेटवर्क इतना तगड़ा है कि वे टिकट दलालों को घर तक सॉफ्टवेयर पहुंचा देते हैं। पकड़े जाने के भय से कभी भी इसकी सीधे मार्केटिंग नहीं करते हैं। टिकट दलालों को पीक सीजन में एक माह के लिए इस सॉफ्टवेयर की कीमत 15-20 हजार रुपये तक देनी पड़ती है।
अकेले पटना शहर में 200 से अधिक ऐसे टिकट दलाल हैं, जो इस तरह के सॉफ्टवेयर का उपयोग कर गली-मोहल्ले में रेल टिकट बुक कर रहे हैं। ट्रैवल एजेंसी संचालक टिकट खरीदने वालों को टिकट पर दर्ज नामों से मतदाता पहचान पत्र बनाकर भी दे देते हैं। पहली नजर में कोई भी टिकट निरीक्षक अथवा इस पहचान पत्र को देखकर फर्जी नहीं कह सकता है।