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विश्‍व रेडियो दिवस: मन का रेडियो बजने दे जरा...

रेडियो से दूर हो रही आज की पीढ़ी एफएम रेडियो के जरिए फिर से जुडऩे लगी है। शहर में बढ़ती एफएम रेडियो चैनल्स की संख्या बता रही है कि नये कलेवर में रेडियो फिर से छा जाने को तैयार है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Tue, 13 Feb 2018 03:18 PM (IST)Updated: Tue, 13 Feb 2018 07:43 PM (IST)
विश्‍व रेडियो दिवस: मन का रेडियो बजने दे जरा...
विश्‍व रेडियो दिवस: मन का रेडियो बजने दे जरा...

पटना [जेएनएन]। मनोरंजन के लिए जरिए बहुत सारे हैं। स्मार्ट फोन, टीवी, कंप्यूटर व इंटरनेट वगैरह-वगैरह, मगर रेडियो की जगह किसी ने नहीं ली। तकनीक के इस तूफान में रेडियो का दीया जलता रहा। मोबाइल फोन में रेडियो सुनने की सुविधा आ जाने इसे फिर से नया जीवन मिला। रेडियो से दूर हो रही आज की पीढ़ी एफएम रेडियो के जरिए फिर से जुडऩे लगी है। शहर में बढ़ती एफएम रेडियो चैनल्स की संख्या, तसदीक कर रही है कि नये कलेवर में 'रेडियो' फिर से छा जाने को तैयार है।

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मोबाइल ने की क्रांति

महज कुछ साल पहले तक राजधानी में रेडियो चैनल के नाम पर सिर्फ आकाशवाणी का नाम लिया जाता था। आकाशवाणी के सतरंगी सांस्कृतिक कार्यक्रम लोगों के दिलों पर राज कर रहे थे। आकाशवाणी रेस में अकेला था लेकिन टीवी के लोकप्रिय हो जाने से आकाशवाणी गूंज थोड़ी नरम पडऩे लगी। इस बीच मोबाइल उत्पादक कंपनियों में फोन पर ही एक स्विच पर एफएम रेडियो सुनना आसान बनाया। फिर क्या था, रेडियो की गूंज चाय की दुकान से लेकर बेड रूम व छात्रों के स्टडी रूम तक सुनाई पडऩे लगी।

शहर में लगी रेडियो चैनल्स की झड़ी

आज से एक दशक पहले तक पटना में सिर्फ आकाशवाणी पर कार्यक्रम सुना करते थे। इस बीच पटना में प्राइवेट रेडियो चैनल ने कदम रखा। देखते ही देखते ही यहां एफएम चैनल ने ऐसी लोकप्रियता पकड़ी, जिसकी उम्मीद नहीं थी। फिर राजधानी में अन्य दूसरे रेडियो चैनल पैर जमाना शुरू किया। रेडियो कंपनी प्रबंधन को इस बात का भान हो गया कि सूचना तकनीक के दौड़ पटना वाले रेडियो से दूर नहीं हुए हैं। हाल के डेढ़ वर्षों में पटना में करीब आधा दर्जन एफएम रेडियो चैनल्स की शुरुआत हुई है। जो इस बात का प्रमाण है कि एफएम रेडियो के जरिए ही सही, रेडियो लोगों से फिर से जुडऩे लगा है।

रेडियो जो टटोलता है पटनाइट्स के मन को

'शाम का वक्त है..। लगता है आपका मूड ऑफ। कोई नहीं। गर्मागर्म चाय लीजिए। इधर मैं आपके लिए सूथिंग सा ट्रैक प्ले करती हूं..।' पटना के एक प्राइवेट रेडियो चैनल पर शाम को आने वाले शो में एक आरजे पटनाइट्स के साथ कुछ यूं गुफ्तगू करती हैं।

दिन चर्या से रूबरू कराता है रेडियो

तेजी से लोकप्रिय हो रहे एफएम रेडियो चैनल की कई सारी वजह हो सकती हैं। लेकिन यह लोगों को अपने साथ कनेक्ट करने में सफल हो रहा है। रेडियो चैनल्स के आरजे लोगों की दिल की बात करते हैं। छात्रों से उनके आनेवाले परीक्षाओं के बारे चर्चा करते हैं। शहर के लोगों को पटना के ट्रैफिक के बारे में बताते हैं। हर तरह से कनेक्ट करने की कोशिश होती है। आरजे विपाली बताती हैं, हम सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक लोगों के दिनचर्या के साथ-साथ चलते हैं।

रेडियो.. जो हर दिल का है

रेडियो के बारे में कहा जाता का है कि यह हर का साधन है। यह किसान का भी है, सैलून की दुकान चला रहे नाई का भी और घर में बैठे बुजुर्ग और छात्र के दिल में बसता है। खास तौर पर एफएम रेडियो के आ जाने के बावजूद भी, आकाशवाणी ने अपना अंदाज नहीं बदला है। बदलते जमाने के साथ इसके कार्यक्रम जरूर सतरंगी हो गए हैं, लेकिन आज भी इसके प्रोग्राम आम से लेकर खास तक के दिल में बसे हुए हैं। आकाशवाणी में रेडियो कंपयेर के रूप में जिम्मेदारी निभा रहीं सोमा चक्रवर्ती बताती हैं, आकाशवाणी पर आने वाले शो हवामहल, हैलो फरमाइश, सखी सहेली को उतना ही चाव सुनते हैं, जितना आज से दो या तीन दशक पहले सुना करते थे।

बहुत सारे लोग अपने कामकाज को लेकर अधिक समय ट्रेवलिंग में ही रहते हैं। इस दौरान एफएम रेडियो सुरीले गानों से उनके सफर को म्यूजिकल बनाता है। सूचना व तकनीक के दौर में मनोरंजन के ढेर सारे साधन हैं, लेकिन रेडियो की जगह कोई नहीं ले सकता है। बतौर आरजे जिम्मेदारी भी महसूस करते हैं। आपकी बातों को लोग फॉलो करते हैं। लिहाजा लाइव प्रोग्राम के समय हर समय लोगों को मोटिवेट करने की कोशिश रहती है। आरजे के रूप में कॅरियर बनाने के लिए आपको जिज्ञासु बनना होगा।

विपाली, आरजे रेडियो सिटी

आकाशवाणी भारत की विविध संस्कृति को दर्शाता है। पटना का आकाशवाणी बिहार की लोक संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम पेश करती है। हिंदी के अलावा मैथिली व भोजपुरी भाषा में लोक संगीत पेश किया जाता है। इस माध्यम पर लोक संगीत है। बच्चों के लिए साइंस व खेल के कार्यक्रम है। किसानों के लिए चौपाल है। मुझे भी पहचान बतौर रेडियो आर्टिस्ट ही मिली। पहले युवा वाणी पर कार्यक्रम पेश किया करती थी। मैं कितने भी स्टेज शो कर लूं, लेकिन रेडियो पर कार्यक्रम करने का अपना मजा है।

सोमा चक्रवर्ती, कंपेयर

रेडियो का महत्व कभी कम नहीं हो सकता है। मजे की बात यह कि सूचना व तकनीक की क्रांति में रेडियो अपना अस्तित्व बनाए रखने में सक्षम है। मुझे भी बतौर तबला वादक पहचान रेडियो प्रसारण में आने के बाद ही मिली। आज भी रेडियो की पहुंच व्यापक है। यह किसान से लेकर बॉर्डर पर बैठे सैनिकों को मनोरंजन करने में सफल है। आपदा के समय में जब अन्य साधन सूचना पहुंचाने में असफल हो जाते हैं। उस समय रेडियो ही काम आता है।

नंदन कुमार ठाकुर, रेडियो आर्टिस्ट

रोजाना कुछ देर जब रेडियो ट्यून नहीं कर लेता हूं, चैन नहीं आता है। जमाने से विविध भारती पर हवामहल कार्यक्रम सुनता आ रहा हूं। अपना काम करते हुए रेडियो ट्यून कर देता हूं। उस पर चले रहे गाने आपको एक्राग करते हैं। छात्र जीवन से आकाशवाणी का दीवाना हूं। पहले आकाशवाणी पर लता मंगेशकर से लेकर यश चोपड़ा तक के साक्षात्कार सुनने को मिलता था। रेडियो का जुड़ाव मिट्टी से है। नए एफएम रेडियो पर भी नए-पुराने हर रंग के गाने सुनाए जाते हैं।

विश्वनाथ वर्मा, वरिष्ठ हास्य कलाकार


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