लॉकडाउन में तबाह हो गए जहानाबाद के निजी स्कूल और कोचिंग, ऑनलाइन पढ़ाई से खर्च निकालना मुश्किल
बिहार में पाबंदियों ने कोचिंग संस्थानों और छोटे निजी स्कूलों की कमर पूरी तरह तोड़ दी है। बड़े नाम वाले शिक्षण संस्थान तो ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर कुछ धंधा कर ले रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों और कोचिंग की हालत बिल्कुल पस्त हो गई है।
हुलासगंज (जहानाबाद), संवाद सहयोगी। बिहार में पिछले करीब 14 महीने से जारी पाबंदियों ने कोचिंग संस्थानों और छोटे निजी स्कूलों की कमर पूरी तरह तोड़ दी है। बड़े नाम वाले शिक्षण संस्थान तो ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर कुछ धंधा कर ले रहे हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों और कोचिंग की हालत बिल्कुल पस्त हो गई है। निहायत छोटे स्तर पर दो-चार कमरों में पढ़ाने-लिखाने वाले तो ज्यादातर शिक्षकों ने दूसरा धंधा अपना लिया है तो कुछ किसी तरह स्थिति सुधरने की आस में अपनी पूंजी को सरकते देख रहे हैं। हमने जहानाबाद जिले के हुलासगंज में ऐसे कोचिंग की पड़ताल की।
प्रखंड क्षेत्र में संचालित दर्जनों कोचिंग सेंटर बंद हो चुके हैं। कुछ कोचिंग सेंटर बच गए हैं, उनमें से एक - दो सेंटर ऑनलाइन और डिजिटल माध्यमों से बच्चों को पढ़ाई कराकर अपने संस्थान के अस्तित्व को बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कभी बच्चों से गुलजार रहने वाले कोचिंग संस्थानों में आज ताला झूल रहा है। कोरोना काल में 14 माह तक तालाबंदी से कई सेंटर के संचालक अपना कोचिंग बंद कर दूसरे रोजगार में लग गए।
आर्थिक बदहाली झेल रहे कई संचालकों के पास मकान का किराया देने तक के पैसे नहीं हैं। युवाओं के सपने को साकार करने के लिए खुद के कैरियर को दाव पर लगाकर पटना छोड़कर आए अंश क्लासेज के निदेशक इंजीनियर संजीव कुमार बताते हैं कि ऐसी स्थिति की कल्पना भी वो नहीं किए थे। इंजीनियरिंग पास होने के बाद नौकरी का उन्हें बहुत अवसर मिला, लेकिन उन्होंने बस अपने क्षेत्र के बच्चों के उज्जवल भविष्य के निर्माण का संकल्प लेकर हुलासगंज का रुख किया था।
बताते हैं कि कोरोना काल से पहले सबकुछ ठीक भी चल रहा था इस वजह से उन्होंने डिजिटल मोड़ में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए पूरा सेट अप तैयार किया। इस पर उन्होंने तकरीबन चार लाख रुपए जमा पूंजी निवेश कर दिए , लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में आज भी परंपरागत कोचिंग संस्थान का ही महत्व है जिसके कारण ऑनलाइन क्लासेज में छात्र नहीं जुड़ पाए।
उन्होंने बताया कि ऑनलाइन कोचिंग क्लास की व्यवस्था के लिए ऐप डिजाइन कराने से लेकर हाई स्पीड इंटरनेट का कनेक्शन भी लिया लेकिन स्थिति है कि इंटरनेट के बिल भरने का खर्च भी ऑनलाइन क्लास से नहीं निकल पा रहा है। ऑनलाइन क्लास के बदले पैसे मांगने पर बच्चे क्लास से निकल लेते हैं। संजीव बताते हैं कि उनके परिवार के लोग भी कोचिंग क्लास बंद कर नौकरी का दबाव बना रहे हैं, लेकिन अभी भी उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा है।