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पटना से बड़े काफिले के साथ PK निकलेंगे चंपारण, पदयात्रा से पहले बोले- मेरे लक्ष्य में कोई नहीं बनेगा बाधक

Bihar Politics चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर गांधी जयंती पर दो अक्टूबर से बिहार में प्रदेशव्यापी जनसुराज पदयात्रा शुरू करेंगे। वो रविवार को पटना से बड़े काफिले के साथ चंपारण जाएंगे। पीके ने अपने पदयात्रा से पहले अपनी पूरी प्लानिंग बताई है।

By Jagran NewsEdited By: Amit AlokPublished: Sat, 01 Oct 2022 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 10:03 AM (IST)
पटना से बड़े काफिले के साथ PK निकलेंगे चंपारण, पदयात्रा से पहले बोले- मेरे लक्ष्य में कोई नहीं बनेगा बाधक
बिहार में दो अक्टूबर से जन सुराज यात्रा पर निकलेंगे प्रशांत किशोर। जागरण

पटना। चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर रविवार यानी गांधी जयंती पर दो अक्टूबर से बिहार में प्रदेशव्यापी जनसुराज पदयात्रा शुरू करने जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि वो पटना से बड़े काफिले के साथ चंपारण जाएंगे। उनका दावा है कि बिहार के इतिहास में  पिछले 75 वर्षों में ऐसी पदयात्रा नहीं हुई। 3500 किलोमीटर की पदयात्रा के पीछे का उद्देश्य नए बिहार की बुनियाद रखना है। जमीनी स्तर पर जन संवाद के जरिए पलायन, बेरोजगारी, कृषि,  शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बिंदुओं पर आधारित अगले 15 वर्षों के लिए पंचायत स्तर पर बिहार के विकास का विजन डाक्यूमेंट तैयार करना है। जातियों में बंटे मतदाताओं वाले बिहार में इस पदयात्रा को लेकर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता रमण शुक्ला ने प्रशांत किशोर से लंबी बातचीत की। 

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प्रश्न - पिछले दो महीने में आपने बिहार का सघन दौरा किया। क्या देखा। बदलाव की गुंजाइश दिख रही है क्या?

उत्तर : बिल्कुल। बिहार का एक-एक व्यक्ति वर्तमान व्यवस्था, बेरोजगारी और पलायन की समस्या से त्रस्त है। दो महीने नहीं, पिछले दस वर्षों में मैंने इसे निकटता से महसूस किया है। इसी आधार पर मैंने महात्मा गांधी की कर्मभूमि रही चंपारण के भितिहरवा आश्रम से जनसुराज पदयात्रा निकालने का लक्ष्य तय किया है। दो अक्टूबर यानी गांधी जयंती से शुरू होने जा रहे 3500 किलोमीटर की पदयात्रा में कोशिश होगी कि बिहार के करीब आठ हजार पंचायत, 534 प्रखंडों और तीन सौ से अधिक छोटे-बड़े शहरों में सीधे लोगों से संवाद कर बिहार के विकास के लिए अगले 15 वर्षों का विजन डाक्यूमेंट करें।

(बिहार में 3500 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे प्रशांत किशोर।)

प्रश्न  - बिहार के वोटर जातियों में बंटे होते हैं। आप उनकी मानसिकता कैसे बदल पाएंगे?

उत्तर : देखिए, बिहार में हर जाति और समुदाय को लोग पलायन, बेरोजगारी, कृषि, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझते-जूझते कराह रहे हैं। पिछले 32 वर्षों में लालू यादव और नीतीश कुमार के शासन से त्रस्त होकर उब चुके हैं। एक-एक व्यक्ति को बदलाव के साथ विकास के नई किरण की तलाश है। हम समस्या नहीं गिनाएंगे बल्कि उसका ठोस समाधान बताएंगे।

विकास का ब्लूप्रिंट जमीनी पर लोगों से बात कर बनाई जाएगी। इसके बाद भी अगर कोई व्यक्ति इसमें कुछ सुझाव देना चाहेगा तो वो भी हम करेंगे। पदयात्रा के बाद एक प्रयास किया जाएगा कि जो भी लोग इस अभियान में आगे साथ चलने के लिए तैयार होंगे उनके साथ राज्य स्तर पर एक अधिवेशन का आयोजन किया जाएगा। इसी अधिवेशन में तय होगा कि आगे राजनीतिक दल बनाना है या नहीं बनाना है। उन्होंने कहा कि सभी लोग मिलकर ही आगे का रास्ता तय करेंगे और यह प्रकिया पूरे तौर पर लोकतांत्रिक एवं सामूहिक होगी। अगर कोई दल बनता है तो वो प्रशांत किशोर का दल नहीं होगा। वो उन सारे व्यक्तियों का होगा जो इस सोच से जुड़कर इसके निर्माण में संस्थापक बनेंगे।

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प्रश्न :  प्रदेशव्यापी दौरे में कितने लोगों को जोड़ने में कामयाब हुए?

उत्तर : जनसुराज पदयात्रा को लेकर 50 हजार से अधिक लोग जुड़ चुके हैं। इसमें बिहार के गांव-गांव, शहर-शहर और हर जाति समुदाय के लोग शामिल हैं। आगे बड़ी संख्या में लोग स्वागत के लिए तैयार हैं। हर वर्ग के लोगों के आग्रह और अनुरोध पर मैंने यह पहल की है। मेरी यह कोई व्यक्तिगत पहल नहीं है।

प्रश्न - पदयात्रा का मकसद क्या है। इससे बिहार के विकास का क्या मतलब

उत्तर : जनसुराज पदयात्रा का मकसद लोगों से संवाद स्थापित करना हैं। भाजपा, जदयू, राजद, कांग्रेस जैसी पार्टियों से इतर बिहार में एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाना है। बिहार की बदहाली की चर्चा जगजाहिर है। जो लोग विकास का दावा कर रहे हैं, अगर उनको सच मान भी लिया जाए तो भी देश में सबसे ज्यादा अशिक्षित, बेरोजगार और गरीब लोग बिहार में रहते हैं। बिहार के विकास के लिए सही लोग, सही सोच और सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। देश के अग्रणी राज्यों में अगर बिहार को खड़ा करना है तो यहां के लोगों को मिलकर प्रयास करना होगा। पदयात्रा के माध्यम से वे बिहार के हर गली-गांव, शहर-कस्बा के लोगों से मुलाकात करेंगे और उनकी समस्याएं सुनेंगे।

उनसे समझेंगे कि कैसे बिहार को बेहतर बनाया जा सकता है। जब तक पूरा बिहार पैदल न चल लें तब तक पटना नहीं लौटेंगे। समाज में रहेंगे, समाज को समझने का प्रयास करेंगे। इसका एक ही मकसद है कि समाज को मथ कर सही लोगों को एक साथ एक मंच पर लाना। बिहार के विकास में शराबंदी बड़ी बाधा है। सरकार पूर्ण शराबबंदी कराने में फेल रही है। नशा का कारोबार चरम पर है। शराब की कालाबाजी की वजह से नई अर्थव्यवस्था विकसित हो गई है। सरकार के राजस्व में हर वर्ष हजारों करोड़ रुपये की चपत लग रही है।

प्रश्न : आपने बदलाव की बात की और गठबंधन बदल गया। इसमें आपकी तो कोई भूमिका नहीं है?

उत्तर : यह तो बहुत पहले मई में तय हो गया था।

प्रश्न : आप सरकार बदलने की बात करते हैं और चुपके से नीतीश कुमार से भी मिल लेते हैं। क्या सोचकर गए थे?

उत्तर : नीतीश कुमार से मेरे रिश्ते पिता-पुत्र की तरह हैं। उनके साथ विभिन्न भूमिका में  काम किया हूं। उन्होंने मिलने के लिए बुलाया। पवन वर्मा ने संपर्क किया। पवन साथ लेकर गए। चुपके या अंधेरे में नहीं बल्कि दिन के उजाले में शाम 4.30 बजे मिले थे। मुलाकात लगभग दो घंटे चली। मैंने जो सवाल उठाए हैं। रास्ता चुना हूं, उसपर कायम हूं। मुलाकात के दौरान हम दोनों ने एक दूसरे के सामने अपनी बातें रखीं लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। इससे पहले मार्च में भी मुलाकात हुई थी। यह मुलाकात केवल सामाजिक, राजनीतिक और शिष्टाचार भेंट थी। मैं अपने अभियान से पीछे नहीं हटूंगा। मेरी जनसुराज यात्रा जारी रहेगी। मैं राज्य के सभी लोगों से मुलाकात करूंगा और उन्हें बिहार के भविष्य को लेकर समझाऊंगा।

(बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर। )

प्रश्न  : क्या नीतीश कुमार को पीएम प्रत्याशी बनाने में मदद करने गए थे?

उत्तर : मैं पहले स्पष्ट कर दूं। केवल नेताओं से मिलने और साथ चाय पीने से राष्ट्रीय राजनीति नहीं बदलती है। कोई प्रधानमंत्री नहीं बनता। बिहार आज भी पिछड़ा राज्य है। नीतीश कुमार बगैर सरकारी सुरक्षा के निकल जाएं फिर उन्हें विकास समझ में आ जाएगा। नीतीश कुमार 10 वर्षों से राजनीतिक बाजीगरी दिखा रहे हैं और कुर्सी से चिपके हुए हैं। कुर्सी से चिपकने से कुछ नहीं होने वाला है। धरातल पर काम करना होगा। जब दोनों का रास्ता ही अलग है तो फिर बतौर पीएम प्रत्याशी मदद करने या नहीं करने का सवाल कहां उठता है।

प्रश्न - नीतीश  कहते हैं कि आप भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। आप भी अपने बयानों में भाजपा को टारगेट नहीं करते। क्या माजरा है।

उत्तर : देखिए राजनीति में आरोप लगाना असान है। किसी को कोई बोलने से नहीं रोक सकता है। नीतीश बहुत पहले से हमें फिर से साथ जुड़कर काम करने का प्रस्ताव दे रहे हैं। जहां तक भाजपा को टारगेट नहीं करने की आप बात कर रहे हैं तो मई से पहले यानी जब तक ममता बनर्जी के साथ रहा भाजपा के खिलाफ बोलता था। लेकिन अब जब बिहार केंद्रित राजनीति करने आया हूं तो फिर मैं लालू-नीतीश के 32 वर्षों की राजनीति की बात करूंगा। 32 वर्षों से लालू और नीतीश के हाथ में बिहार की सत्ता है। ऐसे में आप भाजपा या किसी और को कैसे कुछ बोल सकते हैं।

प्रश्न - अगर आप बिहार को नहीं बदल पाए तो क्या राजनीति छोड़ देंगे?

उत्तर :  यह समय बताएगा। लोगों के अनुरोध पर मैंने यह पहल की है।

प्रश्न :  आपके मिशन में तेजस्वी कितने बड़े बाधक होंगे?

उत्तर : मेरा लक्ष्य तय है। हमें नहीं लगता कि इसमें तेजस्वी, नीतीश कुमार या कोई और बाधक बनेगा।


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