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प्रशांत किशोर: JDU में अब नंबर दो की हैसियत, साथ-साथ बढ़ीं चुनौतियां

प्रशांत किशोर को जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है। इससे पार्टी में उनकी हैसियत बढ़ गई है। महागठबंधन में भी उनकी भूमिका निर्णायक होनी तय है। लेकिन चुनौतियां भी बढ़ीं हैं।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 08:06 PM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 10:01 AM (IST)
प्रशांत किशोर: JDU में अब नंबर दो की हैसियत, साथ-साथ बढ़ीं चुनौतियां
प्रशांत किशोर: JDU में अब नंबर दो की हैसियत, साथ-साथ बढ़ीं चुनौतियां

पटना [अमित आलोक]। ज्‍यादा दिन नहीं हुए, जब प्रशांत किशोर पर्दे के पीछे से चुनावी रणनीति बनाते थे। लेकिन अब वे स्‍टेज पर खुद एक्टिंग के लिए हाजिर हैं। इसका संकेत तो करीब एक महीना पहले उनके जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के साथ सक्रिय सियासी सफर के आरंभ से ही मिल गया था। अब पार्टी के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष के रूप में उन्‍हें सुप्रीमो नीतीश कुमार के बाद नंबर दो की जगह मिली है। साथ ही बढ़ गईं हैं उनकी चुनौतियां। उधर, प्रशांत किशोर को जदयू उपाध्‍यक्ष बनाए जाने पर सियासत भी तेज है।

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अब लोकसभा चुनाव लड़ने के कयास शुरू

करीब एक महीने पहले प्रशांत किशोर की जदयू में एंट्री तथा इसके बाद राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बनाए जाने के से यह कयास तेज है कि पार्टी उन्‍हें लोकसभा चुनाव में उतारेगी। पार्टी की ब्रांडिंग में उनकी उपयोगिता तो जग-जाहिर रही है। आगे वे महागठबंधन के साथ-साथ उसमें जदयू के हितों की भी रक्षा करेंगे, यह तय है। इसमें चुनावी रणनीतिकार के रूप में अनुभव के साथ-साथ मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनकी निकटता का लाभ उन्‍हें मिलेगा, यह तय है।

अब खुलकर खेलेंगे अपने पत्‍ते

सवाल यह है कि प्रशांत किशोर अब क्‍या करेंगे? उन्‍होंने जदयू के लिए बीते विधानसभा चुनाव में काम किया है। ऐसे में पार्टी के तमाम खास लोगों व उनकी नीतियों से वे परिचित हैं। मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के साथ निकटता के कारण उन्‍हें पार्टी में जगह बनाने में भी कोई परेशानी नहीं दिखती। ऐसे में पार्टी उपाध्‍यक्ष के रूप में वे अपने पत्‍ते खुलकर खेलें तो आश्‍चर्य नहीं।

महागठबंधन के अंदर तालमेल सबसे बड़ी चुनौती

लोकसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर की भूमिका अहम होती दिख रही है। बतौर चुनावी रणनीतिकार वे महागठबंधन तथा उसमें जदयू के हितों के रक्षक बनेंगे, यह तय है। ऐसे में उनके सामने महागठबंधन के भीतर तथा जदयू में भी तालमेल बैठाने की बड़ी चुनौती होगी। इसमें उनका पुराना अनुभव काम देगा।

चुनावी रणनीति बनाने का लंबा अनुभव

प्रशांत किशोर को चुनावी रणनीति बनाने का लंबा अनुभव है। वे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के चुनावी रणनीतिकार रहे हैं। उन्‍होंने कांग्रेस के लिए भी काम किया है। उन्‍होंने अपना कॅरियर यूनिसेफ की नौकरी से शुरु की थी।

इंजीनियरिंग की पड़ाई के बाद पहली नॉकरी यूनिसेफ में

मूलत: बिहार के बक्‍सर के रहने वाले प्रशांत किशोर के पिता डॉ. श्रीकांत पांडे बक्‍सर में डॉक्‍टर हैं। उनके बड़े भाई अजय किशोर का पटना में कारोबार है। पटना में प्रारंथिक शिक्षा के बाद प्रशांत किशोर ने हैदराबाद में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने यूनिसेफ में ब्रांडिंग की नौकरी शुरू की।

'वाइब्रैंट गुजरात' से नरेंद्र मोदी के हुए करीब

साल 2011 में भारत लौट कर प्रशांत किशोर गुजरात के 'वाइब्रैंट गुजरात' से जुड़े। उन्‍होंने इसकी ब्रांडिंग की जिम्‍मेदरी का सफल निर्वाह किया। इससे वे भारत में चर्चा में आ गए। इसी आयोजन के दौरान वे तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीब हुए। फिर, उन्‍होंने नरेंद्र मोदी के लिए काम शुरू किया।

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए किया काम

आगे साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने भाजपा के लिए काम किया। चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय प्रशांत किशोर की रणनीति को ही गया। 2014 के चुनाव में भाजपा के दो अभियान 'चाय पर चर्चा' तथा 'थ्री-डी नरेंद्र मोदी'  प्रशांत किशोर के ब्रन चाइल्‍ड रहे। दोनों अभियान सफल रहे। इस चुनाव में मोदी लहर चल गई तथा भाजपा को जीत मिली। साथ ही इससे प्रशांत किशोर को उनकी राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में पहचान भी मिली।

2014 में महागठबंधन के लिए बनाई रणनीति

साल 2014 में भाजपा की जीत तो हो गई, लेकिन प्रशांत किशोर की पार्टी से दूरियां बढ़ गईं। इसके बाद उन्‍होंने अपने गृह राज्‍य बिहार में 2015 के विधानसभा के चुनाव में विपक्षी महागठबंधन के लिए काम किया। इस चुनाव में भी उनकी रणनीति सफल रही।

2014 के विधानसभा चुनाव में धुर विरोधी रहे लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार को कांग्रेस के साथ जोड़कर एक साथ महागठबंधन की छतरी के नीचे लाने में प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका रही। यह रणनीति काम आई। इससे भाजपा विरोधी वोटो का बिखराव रुका। साथ ही अन्‍य युक्तियाें ने भी कमाल किया।

जदयू के साथ शुरू की राजनीतिक पारी

साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार से करीब आ गए। हालांकि, जब महागठबंधन की सरकार गिरा नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ गए तो दोनों के बीच दूरियों की खबरें भी आतीं रहीं। इस बीच प्रशांत किशोर ने विभिन्‍न चुनावों में कई अन्‍य दलों के लिए काम किया।

लेकिन नीतीश कुमार व प्रशांत किशोर ने तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया है। प्रशांत किशोर ने बिहार में जदयू के साथ अपनी सियासी पारी पूरी मजबूती के साथ शुरू कर दी है।

पक्ष-विपक्ष में सियासत भी तेज

प्रशांत किशोर के नए सियासी दायित्‍व पर प्रतिक्रिया में पार्टी के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने खुशी जताई है तो राजद ने तंज कसा है। केसी त्यागी ने कहा है कि कि नीतीश कुमार का यह फैसला पार्टी हित में है। दूसरी ओर राजद नेता शक्ति सिंह यादव ने कहा कि यह जदयू की गिरती साख का सबसे बड़ा उदाहरण है। एक महीना पहले जो व्यक्ति पार्टी में शामिल होता है उसे अगले ही महीने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना देना बिहार की समझ से परे है।


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