पटना लिटरेचर फेस्टिवलः प्रदूषण से हो रही मौत रोकने के लिए बदलें विकास का प्रतिमान
पटना लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को प्रकृति आज क्षुब्ध है तो कल क्रुद्ध होगी विषय पर ग्लोबल वार्मिंग पर बुद्धिजीवियों ने विचार दिए।
पटना, जेएनएन। पटना लिटरेचर फेस्टिवल में रविवार को 'प्रकृति आज क्षुब्ध है तो कल क्रुद्ध होगी' विषय पर ग्लोबल वार्मिंग के ऊपर विचार दिए गए। वक्ता थे त्रिपुरारी शरण, रत्नेश्वर सिंह, सुभाष शर्मा और निर्देश निधि। विमर्श की शुरुआत करते हुए रत्नेश्वर सिंह ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया ट्वीट का जिक्र करते हुए कहा कि विश्व में अगर ग्लोबल वार्मिंग होती तो तापमान सामान्य से इतना नीचे नहीं होता।
रत्नेश्वर ने कहा कि ये अजब द्वंद्व है कि विश्व के कई स्थानों पर वार्मिंग की स्थिति हिम युग की ओर जाती दिख रहा है। इस पर चर्चा की जरूरत है। त्रिपुरारी शरण ने कहा कि आइपीसीसी के अनुसार पहले प्री इंड्रेस्ट्रियल लेवल से दो डिग्री से ज्यादा ग्लोबल वार्मिंग को विनाशकारी मानी जाती थी। इसी के अाधार पर पेरिस की कांन्फ्रेंस दो डिग्री का बेंच मार्क तय किया गया था। अब उसी शोध के आधार पर अब डेढ़ डिग्री को ग्लोबल वार्मिंग के लिए बेंच मार्क पर माना गया है।
पहले के मुकाबले कम होने लगी बारिश
ट्रंप का ट्वीट सबकुछ जानकर अज्ञानता दर्शाने जैसा है। ग्लोबल वार्मिंग का मतलब केवल वार्मिंग से नहीं बल्कि इ-रेगुलेरटी आफ वार्मिंग से है। एक वक्त था जब 125 सीएम वर्षा हुआ करती थी। पिछले दस सालों में इसमें परिवर्तन हुआ है। अब एक हजार एमएम से नीचे बारिश होती है। इसी तरह पिछले कई वर्षों में बिहार के अररिया और किशनगंज जैसे क्षेत्रों में बाढ़ का आना है। ये क्लाइमेक चेंज का ही परिणाम है कि अब नार्थ बिहार में बाढ़ आती है और साउथ बिहार में सूखा पड़ता है।
विकास का प्रतिमान बदलने की जरूरत
सुभाष शर्मा ने कहा कि ट्रंप ने अल्प काल में मौसम और दीर्घ काल में जलवायु को नहीं समझा। कुछ समय के लिए अमेरिका में बदले तापमान की तुलना वैश्विक वार्मिंग से नहीं की जा सकती। एक आंकड़ा देते हुए कहा कि प्रदूषण की वजह से विश्व में हर साल 42 लाख लोग मरते हैं इसमें बीस लाख लोग भारत के होते हैं। इसके लिए सुभाष वर्मा ने विकास के प्रतिमान को जिम्मेदार ठहराया। निर्देश निधि ने नदियों के प्रदूषण की ओर ध्यान आकृष्ट किया।