मिशन 2019: बिहार में खेतों की ओर चली सियासत, अब उपजेंगे वोट
बिहार में सियासत अब खेतों की ओर चल पड़ी है। किसानों व किसानी को फोकस कर योजनाएं बनाईं जा रहीं हैं। नजरें आगामी लोक सभा चुनाव पर है।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिजली, सड़क और छात्राओं की साइकिल जैसी योजनाओं के बाद अब किसानों को निश्शुल्क फसल बीमा की व्यवस्था से भी सत्तारूढ़ राजग की सियासत चमक सकती है। मानसून की दगाबाजी एवं आंधी-तूफान की मार से त्रस्त बिहार के किसानों के दिलों में सत्तारूढ़ जदयू-भाजपा के प्रति आकर्षण बढ़ सकता है। प्रदेश के डेढ़ करोड़ किसान परिवारों के दिलों में सुकून और संतुष्टि का भाव आएगा तो कृषि योग्य कुल एक करोड़ हेक्टेयर भूमि से वोट उपज सकता है।
राज्य में पहले से जारी फसल बीमा की अन्य योजनाओं की प्रक्रिया और परिणाम से परेशान किसानों के लिए अलग से अपनी बीमा योजना लाकर राज्य सरकार ने संसदीय चुनाव से पहले सियासी लड़ाई का एक और मोर्चा खोल दिया है। जातियों में बंटे प्रदेश की करीब 89 फीसद आबादी अभी भी गांवों में रहती है, जिनका मुख्य पेशा खेती है। अबतक की फसल बीमा योजनाओं से बिहार के किसानों को कोई लाभ नहीं मिला है।
पिछली योजना में दूसरे प्रदेशों की तुलना में बिहार के किसानों ने प्रीमियम की राशि अधिक दी, लेकिन लाभ अपेक्षाकृत कम मिला। इसे देखते हुए राज्य सरकार अपने बूते किसानों को कुछ देने की तैयारी कर रही है तो इसके पीछे किसानों को राहत के साथ-साथ सियासत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। फसल क्षति पर किसानों की जेब ढीली किए बिना प्रति दो हेक्टेयर पर अधिकतम 20 हजार रुपये तक मुआवजा दिया जाएगा तो प्रतिदान मिलना भी तय है।
फिर विकास की राजनीति
रामनवमी के उपद्रव और तनाव के हालात से उबरने की कोशिश करते हुए राज्य सरकार ने विकास की राजनीति पर फिर से फोकस किया है। पिछले दो हफ्तों के दौरान सरकार के फैसलों पर अगर गौर फरमाएं तो एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी के प्रयासों और आरोप-प्रत्यारोप से इतर शांति, सद्भाव और सुशासन की पटरी पर चलने की कवायद साफ-साफ दिखेगी।
अब अगले दो हफ्ते तक खेती-किसानी की बातें अगली पंक्ति में खड़ी रहेंगी। दो वर्षों में डीजल मुक्त कृषि की तैयारी है और पांच मई जैविक कोरिडोर पर राज्य के हजारों किसानों के साथ मुख्यमंत्री फिर मैराथन बैठक करने वाले हैं। उत्पादन लागत में कमी और किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिशों की रफ्तार भी बढऩे वाली है।
भूमि सुधार की कवायद
इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि जिस बिहार में भूमि-सुधार कानून सबसे पहले बना, उसे आज भी देश का आर्थिक रूप से सर्वाधिक पिछड़ा राज्य माना जाता है। यहां भूमि-विवादों से उपजे ख़ूनी संघर्षों में कृषि और किसान दोनों का बहुत कुछ चौपट हो चुका है। गंभीरता अब आई है।
समस्याओं के समाधान पर काम किया जा रहा है। लोक शिकायत अधिकार अधिनियम के तहत प्रदेश में सर्वाधिक मुकदमे जमीन-जायदाद से संबंधित ही दर्ज किए जा रहे हैं। इसे देखते हुए ऑनलाइन म्यूटेशन व्यवस्था पर काम चल रहा है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को भूमि संबंधी समस्याओं के समाधान में तेजी लाने का भी निर्देश दे रखा है।