बिहार: AES से हुई मौत पर विपक्ष ने मांगा इस्तीफा, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने दिया ये जवाब
बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान विपक्ष ने एईएस से मौत के मामले पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय से इस्तीफा मांगा। इसके बाद मंगल पांडेय ने सदन में क्या जवाब दिया जानिए।
By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 01 Jul 2019 01:32 PM (IST)Updated: Mon, 01 Jul 2019 10:37 PM (IST)
पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने सोमवार को विधानसभा में कहा कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के नियंत्रण के लिए सरकार ने गंभीर प्रयास किए हैं। एईएस किसी एक बीमारी का नाम नहीं हैं। यह बीमारियों का समूह है, जिसके प्रारंभिक लक्षण एक समान होते हैं। वे विपक्ष द्वारा एईएस से होने वाली मौतों को लेकर सदन में पेश कार्यस्थगन प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद हुई बहस में बोल रहे थे।
विदित हो कि इस साल बिहार में एईएस से बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत के बाद विधानमंडल के मानसून सत्र में सोमवार को विपक्ष ने जबरदस्त हंगामा किया। विपक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेये के इस्तीफे की भी मांग की। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में आनी बात रखी।
सर्वाधिक मृत्यु हाइपोग्लाइसीमिया से
मंगल पांडेय ने कहा कि इस साल सर्वाधिक मृत्यु हाइपोग्लाइसीमिया से हुई है जो एईएस का एक प्रकार है। इसका मुख्य कारण प्रभावित क्षेत्रों में अत्याधिक गर्मी एवं आद्रता के अलावा बारिश का नहीं होना है। बच्चों को धूप से बचाए रखने की लगातार हिदायत दी जा रही है।
शोध जारी, अभी तक नहीं मिली कारण की जानकारी
उन्होंने कहा कि इस बीमारी का प्रकोप मुजफ्फरपुर एवं आसपास के जिलों 1995 से है। इसके इलाज के लिए नेशनल इंस्टीच्यूट आफ वायरोलोजी (पुणे), नेशनल सेंटर फार डिजीज कंट्रोल (दिल्ली), एम्स (दिल्ली), राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट (पटना) तथा सेंटर फार डिजीज कंट्रोल (अमेरिका) द्वारा समय-समय पर शोध किए गए, किन्तु किसी निश्चित कारक की जानकारी नहीं हो सकी है।
बनाया गया स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीज्योर
बीमारी का प्रकोप धीरे-धीरे बढ़ता गया। 2012 में भारत सरकार के मंत्री समूह ने पांच राज्यों के 60 जिलों को आवश्यक निरोधात्मक कार्रवाई के लिए चिह्नित किया गया। इसमें बिहार के 15 जिले-पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, सारण, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, नवादा एवं नालंदा सम्मलित हैं। मंत्री समूह के सुझाव के आलोक में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीज्योर (एसओपी) की संरचना की गई। आवश्यकतानुसार एसओपी में 2018 में संशोधन भी किया गया।
बीमारी फैलने के पहले हो गई थी तैयारी
राज्य सरकार ने इस वर्ष एसओपी के अनुरूप मुजफ्फरपुर एवं आसपास चिकित्सा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए 8-11 अप्रैल के दौरान समीक्षा की, जिसकी दोबारा समीक्षा 23 मई को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने की। दूसरे चक्र में तैयारी की समीक्षा 25 से 28 मई के दौरान की गई, जिसकी फाइनल समीक्षा प्रधान सचिव ने 30 मई को की। दवाओं एवं उपकरणों की उपलब्धता बीमारी के प्रकोप से पहले ही सुनिश्चित कर दी गई थी।
बीमार बच्चों का हो रहा मुफ्त इलाज
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सभी सरकारी अस्पतालों में इस रोग से पीडि़त बच्चों का मुफ्त इलाज कराया जा रहा है। 2014 के बाद से एईएस के इलाज के लिए चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाई गईं हैं। 2014 में 379 बच्चों की मौत हुई थी जबकि इस वर्ष अबतक 154 बच्चे मरे हैं। पिछले साल 33 बच्चों की मौत हुई थी।
विदित हो कि इस साल बिहार में एईएस से बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत के बाद विधानमंडल के मानसून सत्र में सोमवार को विपक्ष ने जबरदस्त हंगामा किया। विपक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेये के इस्तीफे की भी मांग की। इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में आनी बात रखी।
सर्वाधिक मृत्यु हाइपोग्लाइसीमिया से
मंगल पांडेय ने कहा कि इस साल सर्वाधिक मृत्यु हाइपोग्लाइसीमिया से हुई है जो एईएस का एक प्रकार है। इसका मुख्य कारण प्रभावित क्षेत्रों में अत्याधिक गर्मी एवं आद्रता के अलावा बारिश का नहीं होना है। बच्चों को धूप से बचाए रखने की लगातार हिदायत दी जा रही है।
शोध जारी, अभी तक नहीं मिली कारण की जानकारी
उन्होंने कहा कि इस बीमारी का प्रकोप मुजफ्फरपुर एवं आसपास के जिलों 1995 से है। इसके इलाज के लिए नेशनल इंस्टीच्यूट आफ वायरोलोजी (पुणे), नेशनल सेंटर फार डिजीज कंट्रोल (दिल्ली), एम्स (दिल्ली), राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीच्यूट (पटना) तथा सेंटर फार डिजीज कंट्रोल (अमेरिका) द्वारा समय-समय पर शोध किए गए, किन्तु किसी निश्चित कारक की जानकारी नहीं हो सकी है।
बनाया गया स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीज्योर
बीमारी का प्रकोप धीरे-धीरे बढ़ता गया। 2012 में भारत सरकार के मंत्री समूह ने पांच राज्यों के 60 जिलों को आवश्यक निरोधात्मक कार्रवाई के लिए चिह्नित किया गया। इसमें बिहार के 15 जिले-पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, सारण, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चंपारण एवं पश्चिमी चंपारण, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, नवादा एवं नालंदा सम्मलित हैं। मंत्री समूह के सुझाव के आलोक में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीज्योर (एसओपी) की संरचना की गई। आवश्यकतानुसार एसओपी में 2018 में संशोधन भी किया गया।
बीमारी फैलने के पहले हो गई थी तैयारी
राज्य सरकार ने इस वर्ष एसओपी के अनुरूप मुजफ्फरपुर एवं आसपास चिकित्सा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए 8-11 अप्रैल के दौरान समीक्षा की, जिसकी दोबारा समीक्षा 23 मई को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने की। दूसरे चक्र में तैयारी की समीक्षा 25 से 28 मई के दौरान की गई, जिसकी फाइनल समीक्षा प्रधान सचिव ने 30 मई को की। दवाओं एवं उपकरणों की उपलब्धता बीमारी के प्रकोप से पहले ही सुनिश्चित कर दी गई थी।
बीमार बच्चों का हो रहा मुफ्त इलाज
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि सभी सरकारी अस्पतालों में इस रोग से पीडि़त बच्चों का मुफ्त इलाज कराया जा रहा है। 2014 के बाद से एईएस के इलाज के लिए चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाई गईं हैं। 2014 में 379 बच्चों की मौत हुई थी जबकि इस वर्ष अबतक 154 बच्चे मरे हैं। पिछले साल 33 बच्चों की मौत हुई थी।
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