सत्ता संग्राम: अलग है किशनगंज का सियासी मिजाज, शहाबुद्दीन व तस्लीमुद्दीन रह चुके MP
किशनगंज में धार्मिक आधार पर गोलबंदी का मतलब जीा हटकर है। यहां 2018 के बाद सभी समीकरण फेल हो चुके हैं। यहां शहाबुद्दीन व तस्लीमुद्दीन सांसद रह चुके हैं।
पटना [अरविंद शर्मा]। किशनगंज संसदीय क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज बिहार के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अलग है। यहां के लोगों को आप वोट बैंक कह सकते हैं, लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद से किसी दल का सामाजिक समीकरण काम नहीं आया। न राजग का, न राजद का। पिछली बार असदुद्दीन ओवैसी ने भी यहां पांव पसारने की कोशिश की थी, किंतु कामयाब नहीं हो सके, क्योंकि किशनगंज में धार्मिक आधार पर गोलबंदी का मतलब दूसरा होता है।
आजादी से अबतक यहां से सिर्फ एक बार 1967 में गैर मुस्लिम लखन लाल कपूर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सांसद चुने गए थे। इसके पहले और बाद भी कोई हिंदू वहां से नहीं जीत पाया। हालांकि, 1999 के संसदीय चुनाव में सैयद शाहनवाज हुसैन ने भाजपा के लिए यह सीट जीती थी, लेकिन वह उनकी और भाजपा की आखिरी जीत थी। उसके बाद का चुनाव राजद ने जीता और अब कांग्रेस के कब्जे में है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के अशरारुल हक ने भाजपा के दिलीप जायसवाल को 1.94 लाख मतों से पराजित किया था।
किशनगंज की आबादी को भाजपा के अनुकूल नहीं माना जाता है। यहां की 76.40 फीसद आबादी उनकी है, जिन्हें भाजपा की राजनीति रास नहीं आती है। यही कारण है कि 2004 में शाहनवाज के आखिरी बार हारने के बाद भाजपा ने इसे गठबंधन में जदयू के हिस्से में दे दिया। पिछली बार जदयू से दोस्ती खत्म होने पर भाजपा ने प्रत्याशी उतारा जरूर था, लेकिन उसे पहले से ही नतीजे की भी जानकारी थी।
किशनगंज के मतदाताओं की भाजपा से विरक्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था। यहां के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों पर महागठबंधन के दलों ने कब्जा जमाया था। कांग्रेस के खाते में सर्वाधिक तीन, जदयू के खाते में दो और राजद के हिस्से में एक सीट आई थी। जदयू के साथ भाजपा की दोबारा दोस्ती के बाद राजग का प्रदर्शन सुधर सकता है। इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोशिश भी तेज कर दी है।
अशरारुल के सामने कौन
सूर्यापुरी मुस्लिम बिरादरी से आने वाले स्थानीय सांसद अशरारुल हक पर इस बार उम्र की चुनौतियां हावी हो सकती हैं। उन्हें टिकट से बेदखल करने के लिए किशनगंज विधायक डॉ. जावेद और बहादुरगंज विधायक मो. तौसीफ आलम बेताब हो रहे हैं। जावेद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के करीबी माने जाते हैं।
भाजपा में दिलीप जायसवाल फिर नंबर वन दावेदार हैं, लेकिन शाहनवाज हुसैन की अति सक्रियता उन्हें बेचैन कर रही है। तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद राजद यहां बेअसर हो गया है, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान राजद को सहारा देने की कोशिश में हैं।
जदयू के टिकट के लिए कोचाधामन के विधायक मुजाहिद आलम प्रयासरत हैं। वैसे मो. अशरफ भी सक्रिय हैं, जो 2009 में जदयू के टिकट पर एक बार हार चुके हैं।
अतीत की सियासत
1957 में किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर मो. ताहिर एमपी चुने गए थे। अगला चुनाव का परिणाम भी उन्हीं के खाते में गया। 1967 में पहली और आखिरी बार ताहिर को हराकर लखन लाल कपूर एमपी बने। 1971 में कांग्रेस के जमील उर रहमान के पक्ष में परिणाम आया। 1977 में लोकदल से हलीमुद्दीन अहमद सांसद चुने गए। 1980 और 1984 का चुनाव जमीलुर रहमान के पक्ष में गया।
1991 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से वरिष्ठ पत्रकार एमजे अकबर को प्रत्याशी बनाया। निर्दलीय अशरारुल हक को हराकर अकबर लोकसभा पहुंचे। अगले चुनाव में जनता दल से सैयद शहाबुद्दीन की बारी आई। 1996 में तस्लीमुद्दीन का पदार्पण हुआ। 1999 में शाहनवाज ने भाजपा का खाता खोला। 2004 में तस्लीमुद्दीन से हारने के बाद उन्होंने क्षेत्र बदल लिया। उसके बाद 2009 से लगातार कांग्रेस के अशरारुल हक ने कब्जा जमा रखा है।
2014 के महारथी और वोट
मो. अशरारुल हक : कांग्रेस : 493461
दिलीप कुमार जायसवाल : भाजपा : 298849
अख्तरुल इमान : जदयू : 55822
अलीमुद्दीन अंसारी : आप : 15010
मो. नौशाद : बसपा : 14903
विधानसभा क्षेत्र
बहादुरगंज (कांग्रेस), किशनगंज (कांग्रेस), अमौर (कांग्रेस) ठाकुरगंज (जदयू), कोचाधामन (जदयू), बायसी (राजद)