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सत्ता संग्राम: संघर्ष की धरती आरा में इस बार होगी आर-पार का लड़ाई

आरा लोकसभा सीट की बात करें तो यहां संघर्ष और प्रयोग की इस भूमि में नक्सली आंदोलनों को भी खाद-पानी मिलता रहा है। आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियां यहां शुरू हो चुकी हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 07:20 PM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 07:28 PM (IST)
सत्ता संग्राम: संघर्ष की धरती आरा में इस बार होगी आर-पार का लड़ाई
सत्ता संग्राम: संघर्ष की धरती आरा में इस बार होगी आर-पार का लड़ाई

पटना [अरविंद शर्मा]। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर सत्ता संग्राम तक आरा का बड़ा नाम है। संघर्ष और प्रयोग की इस भूमि में नक्सली आंदोलनों को भी खाद-पानी मिलता रहा है। मिशन-2019 की हवाएं अभी से बहने लगी हैं। दावेदारों की कहानियां आने लगी हैं। भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री राजकुमार सिंह के मुकाबले मैदान में कौन होगा, चर्चाएं आम होने लगी हैं।

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राम सुभग सिंह, अनंत प्रताप शर्मा एवं तपेश्वर सिंह जैसी हस्तियों की धरती पर फिर आर-पार के हालात हैं। राजकुमार सिंह से भाजपा को उम्मीदें बरकरार हैं। गठबंधन की राजनीति के चलते पहली बार भाजपा का खाता खुला है। इसके पहले यह सीट जदयू के खाते में जाती रही थी। 2014 में भाजपा के आरके ने राजद प्रत्याशी भगवान सिंह कुशवाहा को हराया था।

आरके फिर मोर्चे पर मजबूती से खड़े हैं, किंतु राजपूत बहुल इस क्षेत्र में दावेदारों की कमी भी नहीं है। अमरेंद्र प्रताप सिंह, अवधेश नारायण सिंह एवं राघवेंद्र प्रताप सिंह से लेकर संजय टाइगर तक। राघवेंद्र खुद सात बार विधायक रह चुके हैं।

दूसरी ओर केंद्र में मंत्री बनने के बाद आरके धुआंधार काम कराने में जुटे हैं, लेकिन व्यावहारिक मोर्चे पर कई प्रकार की बातें हवा में हैं।

राजनीति में आने से पहले केंद्रीय गृह सचिव रह चुके आरके को पब्लिक आज भी ब्यूरोक्रेट के तुले पर ही तौलती है। अन्य दावेदारों को इससे ऊर्जा मिल रही है। राजग में जदयू की ओर से भी दावेदारों के नाम आ रहे हैं। मुख्यमंत्री के सलाहकार अंजनी कुमार सिंह के लिए माहौल बनाने की बात है। 

महागठबंधन में पहली चर्चा माले को लेकर है। पिछली बार माले प्रत्याशी के रूप में राजू यादव को करीब एक लाख वोट मिले थे। अबकी राजद-कांग्र्रेस में सहमति बनी और माले मान गई तो आरा उसके हिस्से में जा सकता है। 1989 में जीत भी चुकी है। दूसरा समीकरण भी है।

राजद के जगतानंद सिंह बक्सर से अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी कुशवाहा को प्रत्याशी बनवा सकते हैं। पिछली बार राजद के प्रत्याशी रहे भगवान कुशवाहा अभी उपेंद्र कुशवाहा के साथ हैं।

समीकरण बदला तो भगवान की किस्मत पलट सकती है या अरवल विधायक रवींद्र सिंह की भी लॉटरी लग सकती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कांति सिंह की भी नजर है। बलिराम भगत के बाद यहां से कांग्र्रेस की कहानी खत्म है। 

अतीत की राजनीति 

आरा संसदीय क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया। इसके पहले सासाराम और बक्सर भी इसी क्षेत्र में आते थे। यहां से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, रामलखन सिंह यादव और कांति सिंह केंद्रीय मंत्रिमंडल में रह चुकी हैं। रामसुभग सिंह लोकसभा में देश के पहले प्रतिपक्ष के नेता थे।

अनंत प्रसाद शर्मा के पास मंत्रालयों की जिम्मेवारी थी। बाद में राज्यपाल भी बने। बलिराम भगत ने विदेश मंत्री से लेकर स्पीकर तक का सफर तय किया। मीरा कुमार का जन्म भी भोजपुर की माटी में ही हुआ है। यहीं पली-बढ़ी भी हैं। 

आरा संसदीय क्षेत्र

2014 के महारथी और वोट

राज कुमार सिंह : भाजपा : 391074

भगवान सिंह कुशवाहा : राजद : 255204

राजू यादव : भाकपा माले : 98805

मीना सिंह : जदयू : 75962

विधानसभा क्षेत्र

 संदेश (राजद)

बड़हरा (राजद)

आरा (राजद)

जगदीशपुर (राजद)

शाहपुर (राजद)

तरारी (माले)

अगिआंव (जदयू)


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