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तेजस्वी के अज्ञातवास से RJD को नुकसान, महागठबंधन में भी बिखराव के मिलने लगे संकेत

बिहार में विपक्षी महागठबंधन व आरजेडी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद तेजस्‍वी यादव के अज्ञातवास ने भी महागठबंधन पर असर डाला है।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 03 Jul 2019 06:50 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 10:54 PM (IST)
तेजस्वी के अज्ञातवास से RJD को नुकसान, महागठबंधन में भी बिखराव के मिलने लगे संकेत
तेजस्वी के अज्ञातवास से RJD को नुकसान, महागठबंधन में भी बिखराव के मिलने लगे संकेत

पटना [अमित आलोक]। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में हार के बाद जिस तरह तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) बिहार की राजनीति से दूर लंबे अज्ञातवास में रहे, उससे विपक्षी महागठबंधन (Grand Alliance) व राष्ट्रीय जनता दल (RJD) को नुकसान हुआ है। इस बीच एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) से बच्चों की मौत तथा कानून-व्यवस्था के मुद्दों पर विपक्ष नेतृत्वविहीन रहा। विधानमंडल के मानसून सत्र (Monsoon Session) के दौरान वे आ तो गए हैं, लेकिन उनके एक महीने तक राजनीति से गायब रहने के कारण महागठबंधन में बिखराव के संकेत भी आने लगे हैं।
इस बीच कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के चुनाव में हार की जिम्‍मेदारी लेकर इस्‍तीफ देने से तेजस्‍वी पर दबाव बढ़ गया है। लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्‍वी ही बिहार में आरजेडी व महागठबंधन की ड्राइविंग सीट पर थे।
एक महीने तक अज्ञातवास में सियासत से दूर रहे तेजस्वी
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की हार के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी‍ यादव करीब एक महीने बिहार से बाहर रहे। उन्होंने खुद को सियासी गतिविधियों से भी दूर रखा। इस दौरान राज्य में एईएस से बच्चों की बड़े पैमाने पर मौतें हुईं। कानून-व्यवस्था  के मुद्दे भी खड़े हुए। लेकिन तेजस्वी ने जनता से जुड़े इन मुद्दों पर कोई प्रतिक्रिया तक नहीं दी।

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पटना आए, लेकिन विधानमंडल सत्र में नहीं हो रहे शामिल
उम्मीद थी कि अज्ञातवास के बाद तेजस्वी बतौर नेता प्रतिपक्ष बिहार विधानसभा (Bihar Assembly) के मानसून सत्र में विपक्ष का नेतृत्व करेंगे। सत्र के पहले दिन तो वे आए ही नहीं। बीते सोमवार को जब वे वापस पटना आए तो अपनी गैरहाजिरी का कारण बीमारी को बताते हुए केवल इतना कहा कि वे सदन में सरकार को घेरेंगे। लेकिन मानसून सत्र में बुधवार तक वे सदन में नहीं आए। जंबे समय के बाद तेजस्‍वी गुरुवार को विधानसभा में पहुंचे।

एनडीए को मिला मौका, महागठबंधन में भी विरोध के सुर
आरजेडी जो भी कहे, पहले राजनीति से दूरी बनाते हुए लापता हो जाने, फिर पटना में रहकर भी विधानमंडल की कार्यवाही में शामिल नहीं होने को लेकर सवाल खड़े हो गए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि तेजस्वी के गायब रहने व राजनीति से दूरी बनाने का आरजेडी व महागठबंधन को क्या नुकसान हुआ है? इसने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को बोलने का मौका दिया है तो महागठबंधन में भी विरोध के सुर फूटने लगे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के सांसद चिराग पासवान ने तो कहा है कि तेजस्वी को इस्तीफा दे देना चाहिए।
तेजस्वी यादव की कार्यशैली से आरजेडी में नाराजगी
आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की अनुपस्थिति में तेजस्वी यादव पार्टी की कमान संभाल रहे हैं। लेकिन उनकी कार्यशैली से कई बड़े नेताओं में नाराजगी है। उनके अचानक लापता हो जाने पर पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) ने कहा था कि शायद वे वर्ल्ड कप क्रिकेट देख रहे होंगे। लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले विधायक भाई वीरेंद्र ने तो यहां तक कहा कि किसी के रहने या न रहने से पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
आरजेडी के उक्त  दोनों बड़े नेताओं के बयान अगर कोई संकेत हैं तो पार्टी में तेजस्वी के विरोध में स्वर उठ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार यह विरोध दरअसल तेजस्वी की कार्यशैली को लेकर है। तेजस्वी में लालू यादव जैसी सबों को जोड़कर चलने की क्षमता नहीं दिखती। इसका असर पार्टी पर दिखने लगा है।
तेजस्वी-तेज प्रताप में समन्वय के अभाव से नुकसान
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व आरजेडी ही कर रहा था। लेकिन चुनाव में आरजेडी का खाता तक नहीं खुला। जहानाबाद की सीट इस कारण नहीं मिल सकी कि वहां वहां लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ने आरजेडी के खिलाफ लालू-राबड़ी मोर्चा (Lalu Rabri Morcha) के बैनर तले अपना प्रत्याशी खड़ा कर अपनी ही पार्टी के वोट काट दिए। अगर जहानाबाद की सीट मिल जाती तो कम-से-कम पार्टी शून्य पर आउट नहीं होती। पार्टी पर प्रभुत्व के लिए तेजस्वी  व तेज प्रताप के बीच मचे घमासान से दोनों भाई भले ही इनकार करें,  उनके बीच सियासी समन्व‍य के अभाव ने पार्टी को नुकसान जरूर पहुंचाया है। इससे विरोध के सुर फूटे हैं।

महागठबंधन के घटक दलों ने पकड़ी अलग-अलग राह
लोकसभा चुनाव में हार के बाद से महागठबंधन का कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं दिख रहा है। तेजस्वी के अज्ञातवास ने इसे और बढ़ावा दिया है। सभी घटक दलों ने अपनी अलग राह पकड़ ली है। महागठबंधन दल के बीच एकता बनाना कठिन हो गया है। स्थिति यह है कि राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के खिलाफ अपनी पदयात्रा अलग कर रहे हैं। जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) हो या कांग्रेस, एईएस से मौत के मसले पर वे आरजेडी के साथ धरना-प्रदर्शन करते नजर नहीं आ रहे हैं।

कांग्रेस का रूख तो आलाकमान तय करेगा, लेकिन उसने साफ कर दिया है कि वह विधानमंडल की कार्यवाही में अपने एजेंडे पर आरजेडी से समर्थन की अपेक्षा रखेगी। विधान सभा और विधान परिषद की कार्यवाही में कांग्रेस ने आरजेडी से अलग कार्य-स्थगन प्रस्ताव दिया और इसपर चर्चा भी हुई। सदन के बाहर कांग्रेस ने आरजेडी से अलग धरना-प्रदर्शन भी किया।
मांझी बोले: तेजस्वी अनुभवहीन, लालू वाली बात नहीं
तेजस्वी के सियासत से लापता रहने पर 'हम' सुप्रीमो जीतन राम मांझी ने तो यहां तक कहा कि तेजस्वी में लालू वाली बात नहीं है। वे अनुभवहीन हैं। मांझी के अनुसार तेजस्वी  नेतृत्व करने के लायक नहीं हैं, अभी उन्हें  बहुत कुछ सीखना है।

विधानसभा चुनाव के लिए दबाव बना रहे घटक दल
दरअसल, लोकसभा चुनाव में हार के बाद महागठबंधन में घटक दल आरजेडी पर दबाव बना आगामी विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में अपना हित साधने कर कोशिश में हैं। कांग्रेस की बात करें तो वह अकेले चुनाव लड़ना चाहती है। इस संबंध में कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान का एक बयान महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा था कि महागठबंधन का नेतृत्व करने वाले तेजस्वी यादव पर बड़ी जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने इसे नहीं निभाया। वे महागठबंधन में तालमेल बनाने में भी नाकामयाब रहे। उन्होंने कांग्रेस के बिहार में अकेले चलने पर भी बल दिया। बिहार विधानसभा में कांग्रेस के नेता सदानंद सिंह भी कांग्रेस को गठबंधन से अलग होकर अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की सलाह दे चुके हैं।

सबसे बुरे दौर से गुजर रहे आरजेडी व महागठबंधन
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि आरजेडी व महागठबंधन अभी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। अब उनके पास खुद को साबित करने के लिए विधनसभा चुनाव का मौका है। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पछाड़ने के लिए सभी धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ आने की जरूरत हैं। लेकिन सवाल यह है कि कैसे पाटी जाएगी महागठबंधन की दरार और कौन करेगा इसका नेतृत्व? समस्या  का समय रहते हल नहीं निकला तो आरजेडी व महागठबंधन, दोनों को और बड़े नुकसान तय हैं। 


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