बाबा वोट का सवाल है, भले जात कंगाल रहे पर नेता मालामाल है...
चुनाव का दौर जारी है। पटना के लोग भले ही अंतिम चरण में यानी 19 मई को वोट देंगे पर किसका और कैसे चुनाव किया जाए इसकी जानकारी तरफ-तरफ से राजधानीवासियों को दी जा रही है।
By Edited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 11:32 PM (IST)Updated: Sun, 21 Apr 2019 09:17 AM (IST)
पटना, जेएनएन। वोटरों को प्रत्याशियों की सच्चाई बताने के लिए पटना में शनिवार को 'सदा लोक मंच' ने उदय कुमार लिखित एवं निर्देशित नाटक 'जात भाई' का प्रदर्शन किया। खगौल स्थित दानापुर रेलवे स्टेशन के पास ऑटो स्टैंड में गीत 'जात के नाम पर दे दो बाबा वोट का सवाल है, भले जात कंगाल रहे पर नेता मालामाल है' से नाटक की शुरुआत हुई। इसमें दिखाया गया कि चुनाव आते ही नेता अपनी जाति को खूब प्रचारित करता है।
आम दिनों सुध नहीं और चुनाव में बढ़ गई पूछ
नाटक में बताया गया कि नेता अपनी जाति के लोगों को भावनात्मक रूप से उकसाता है। आम दिनों में जाति की सुध नहीं लेने वाला, अपने को उच्च श्रेणी का समझने वाला चुनाव आते ही जाति की माला जपने लगता है। विश्वास ऐसा जैसे जाति के लोग नेता की व्यक्तिगत जायदाद हैं। ऐसा जताता है जैसे जाति के पास उसको वोट देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। जाति के नाम पर सत्ता पाकर नेता मालामाल होते जा रहे हैं, वहीं जनता अपनी बदहाली तथा नेता के कुकर्मो को नजरअंदाज कर जाति के नाम पर वोट दे देती है।
जनता पूछ रही, हमारे पैसे से क्या किया तुमने
जातीय गोलबंदी करने वाले ऐसे ही नेता से उसकी जाति के वोटर ही सवाल पूछते हैं- 'हमारे वोट से सत्ता पाकर तुमने हमारे लिए क्या किया? तुमने अपनी जमीन-जायदाद बढ़ा ली, तुम्हारे बच्चे बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं, बड़े अस्पताल, बोतलबंद साफ पानी , गाड़ी-मोटर, आलीशान मकान, एयर कंडिशन जैसी ढेर सारी सुविधाएं तुम्हारे पास आ गई और हम दिनोंदिन बदहाल होते जा रहे हैं। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से भी वंचित हैं। हम वोट दे देकर कंगाल होते जा रहे हैं, तुम वोट लेकर मालामाल हो रहे हो। ये कैसा जात भाई का भाईचारा है?'
नेता ठहाका लगाकर कहता है- 'तुम्हारे पास विकल्प क्या है?' जनता कहती है- 'विकल्प समय बताएगा।' कलाकारों में-अशोक गिरी, उदय कुमार, शिवम कुमार, अमरेंद्र कुमार, राजीव रंजन त्रिपाठी, पिंटू गिरी, सूरज आदि शामिल थे।
आम दिनों सुध नहीं और चुनाव में बढ़ गई पूछ
नाटक में बताया गया कि नेता अपनी जाति के लोगों को भावनात्मक रूप से उकसाता है। आम दिनों में जाति की सुध नहीं लेने वाला, अपने को उच्च श्रेणी का समझने वाला चुनाव आते ही जाति की माला जपने लगता है। विश्वास ऐसा जैसे जाति के लोग नेता की व्यक्तिगत जायदाद हैं। ऐसा जताता है जैसे जाति के पास उसको वोट देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। जाति के नाम पर सत्ता पाकर नेता मालामाल होते जा रहे हैं, वहीं जनता अपनी बदहाली तथा नेता के कुकर्मो को नजरअंदाज कर जाति के नाम पर वोट दे देती है।
जनता पूछ रही, हमारे पैसे से क्या किया तुमने
जातीय गोलबंदी करने वाले ऐसे ही नेता से उसकी जाति के वोटर ही सवाल पूछते हैं- 'हमारे वोट से सत्ता पाकर तुमने हमारे लिए क्या किया? तुमने अपनी जमीन-जायदाद बढ़ा ली, तुम्हारे बच्चे बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं, बड़े अस्पताल, बोतलबंद साफ पानी , गाड़ी-मोटर, आलीशान मकान, एयर कंडिशन जैसी ढेर सारी सुविधाएं तुम्हारे पास आ गई और हम दिनोंदिन बदहाल होते जा रहे हैं। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से भी वंचित हैं। हम वोट दे देकर कंगाल होते जा रहे हैं, तुम वोट लेकर मालामाल हो रहे हो। ये कैसा जात भाई का भाईचारा है?'
नेता ठहाका लगाकर कहता है- 'तुम्हारे पास विकल्प क्या है?' जनता कहती है- 'विकल्प समय बताएगा।' कलाकारों में-अशोक गिरी, उदय कुमार, शिवम कुमार, अमरेंद्र कुमार, राजीव रंजन त्रिपाठी, पिंटू गिरी, सूरज आदि शामिल थे।
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