प्लेजेरिज्म टेस्ट से शोध की गुणवत्ता में होगी वृद्धि
पटना। शोध में साहित्यिक चोरी (प्लेजेरिज्म) रोकने और शोधकर्ता व गाइड को प्लेजेरिज्म की विस्तृत जानकारी देने कके लिए कार्यशाला हुई।
पटना। शोध में साहित्यिक चोरी (प्लेजेरिज्म) रोकने और शोधकर्ता व गाइड को प्लेजेरिज्म की विस्तृत जानकारी देने के लिए सोमवार को कॉलेज ऑफ कॉमर्स आर्ट्स एंड साइंस में व्याख्यान का आयोजन किया गया। मगध विश्वविद्यालय प्लेजेरिज्म सेल के समन्वयक डॉ. पिंटू कुमार ने कहा, शोधकर्ता पीएचडी की थीसिस जमा करने से पहले साहित्यिक चोरी नहीं किए हैं, इसे सुनिश्चित कर लें। शोध पत्र में साहित्यिक चोरी का फीसद 10 से कम होने पर ही स्वीकार किया जाता है। यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार 20 फीसद से अधिक होने पर थीसिस को दोबारा जमा करने का प्रावधान है। वहीं, 40 फीसद से अधिक होने पर सुपरवाइजर पर रोक तथा शोधार्थी को दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना होता है। सभी विश्वविद्यालय प्लेजेरिज्म का फीसद निर्धारित किए हुए हैं। तय मानक से अधिक होने पर कार्रवाई सुनिश्चित है।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी विश्वविद्यालय को प्लेजेरिज्म की जांच के लिए सॉफ्टवेयर उपलब्ध कराया है। चोरी करने पर इससे बचने की संभावना शून्य है। पावर प्वाइंट प्रजेंटेशन से साहित्यिक चोरी रोकने के उपायों की जानकारी दी। शोधार्थियों को इसकी जद में आने से बचने के लिए महत्वपूर्ण टिप्स दिए। इसकी अध्यक्षता प्रधानाचार्य प्रो. तपन कुमार शाडिल्य ने की। उन्होंने कहा कि देश में शोध की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए यूजीसी ने इसका प्रावधान किया है। प्लेजेरिज्म सॉफ्टवेयर से जांच के बाद ही थीसिस अब स्वीकार होगा। प्रो. जयमंगल देव व प्रो. संतोष कुमार ने भी साहित्यिक चोरी पर प्रकाश डाला। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. डिंपल ने किया। इस मौके पर प्रॉक्टर डॉ. मनोज कुमार, प्रो. मुनव्वर फजल, प्रो. सलोनी कुमार, प्रो. खालिद अहमद, प्रो. अकबर अली, प्रो. दिनेश कुमार, प्रो. आशुतोष कुमार, प्रो. शिव कुमार यादव, प्रो. एके नाग, प्रो. शिव कुमार यादव आदि मौजूद थे।