राहत शिविर में रहने वालों का दर्द आया सामने, बोले-अदृश्य दुश्मन से तो लड़ लेंगे पर इन मच्छरों का क्या करें
लॉकडाउन के दौरान जहां-तहां फंसे लोगों के लिए गर्दनीबाग में बने राहत शिविर केंद्र में खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था है लेकिन मच्छर राहत भर सोने नहीं देते। जानें क्या है इनकी परेशानी।
प्रशांत कुमार, पटना। आशंका, संक्रमण, संदिग्ध, राहत, मदद और उम्मीद। इन शब्दों के बीच घूम रही कुछ जिंदगी कभी न भूल पाने वाले दिन बिता रही है। लॉकडाउन के दौरान जहां-तहां फंसे लोगों के लिए गर्दनीबाग के पटना हाईस्कूल राहत शिविर केंद्र में खाने-पीने की उत्तम व्यवस्था है, लेकिन मच्छर राहत भर सोने नहीं देते। ठहरने की कोई बेहतर व्यवस्था नहीं है। तारे गिनकर रात काटनी पड़ रही है। यह कहना है गणेश साव, अजीत, नितेश और राकेश का, जो नौ दिन से इस व्यवस्था का लाभ उठा रहे हैं। ये सभी भागलपुर और बांका के रहने वाले हैं।
असुविधा होने पर कुछ कर गए पलायन
गणेश कहते हैं कि वे अनिसाबाद में एक भवन निर्माण का काम करने आए थे। एकाएक लॉकडाउन की घोषणा के बाद ठीकेदार ने रहने की व्यवस्था तो कर दी थी, लेकिन खाने की चिंता समाने आने लगी। जिंदा रहने के लिए पेटभरने की उम्मीद लिए इधर-उधर भटकने लगे। तभी मालूम हुआ कि बगल के ही पटना हाईस्कूल में आवासन के साथ खाना मुहैया कराया जा रहा है। फिर क्या कहना था, हम तीनों अपने साथियों के संग यहां चले आए। शुरुआत में 40 से ज्यादा लोग शिविर में थे, लेकिन 25 लोगों के ही रहने की व्यवस्था है। असुविधा होने पर बाकी लोग चले गए। मजबूरी में हम यहां रुके हैं। राहत के साथ कुछ परेशानियां भी हैं।
तारे गिन-गिनकर कट रही रात
अजीत ने कहा कि दो समय का खाना सही समय पर मिल रहा है। लगभग सौ लोगों का खाना रोज बनता है पर 30 लोग ही खाते होंगे। बाकी पुलिस को बांटने के लिए दिया जाता है। अजीत कहते हैं, कि हम अदृश्य दुश्मन (कोरोना वायरस) से तो लड़ लेंगे मगर इन मच्छरों का क्या करें? मच्छर की समस्या को लेकर कई बार शिकायत की गई पर अब तक उसे भगाने वाली टिकिया नहीं मिली। नींद टूटने पर तारे गिनकर रात काटनी पड़ती है। ये प्रक्रिया ब-दस्तूर जारी है। उम्मीद है कि जल्द कुछ बदलाव हो।