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GOOD NEWS: तंबाकू से तौबा करने लगे हैं बिहार के लोग

पिछले आठ साल के दौरान बिहार में तंबाकू के सेवन में करीब 29 फीसद की कमी आई है, जबकि, पूरे देश में छह फीसद की कमी दर्ज की गई।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 17 Feb 2018 08:10 PM (IST)Updated: Sun, 18 Feb 2018 04:57 PM (IST)
GOOD NEWS: तंबाकू से तौबा करने लगे हैं बिहार के लोग
GOOD NEWS: तंबाकू से तौबा करने लगे हैं बिहार के लोग

पटना [राज्य ब्यूरो]। बिहार के लोग तंबाकू को तौबा करने लगे हैं। पिछले आठ साल के दौरान बिहार में तंबाकू के सेवन में करीब 29 फीसद की कमी आई है, जबकि, पूरे देश में छह फीसद की कमी दर्ज की गई। पुरुष एवं महिला समेत बच्चों में भी तंबाकू के प्रति प्रेम में कमी आई है।

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इस मामले में पूरे देश में सिक्किम के बाद बिहार का दूसरा स्थान है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (गेट्स) में यह दावा किया गया। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने शनिवार को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित सर्वे रिपोर्ट को जारी किया।

मंत्री ने कहा कि तंबाकू के सेवन करने से शरीर को सबसे अधिक नुकसान होता है। यह फेफड़ा, किडनी सहित दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचाता है। कैंसर की सबसे बड़ी वजह तंबाकू ही है। टीबी से प्रत्येक साल 4.8 लाख लोगों की मौत होती है, जबकि तंबाकू के कारण दस से बारह लाख लोगों की असमय मौत होती है।

उन्होंने कहा कि तंबाकू के सेवन में कमी से संतुष्ट होने के बजाए अभियान को और तेज करने की आवश्यकता है। सभी वर्गों के सहयोग से ही प्रदेश को तंबाकू मुक्त बनाया जा सकता है। मंत्री ने भावी पीढ़ी को तंबाकू के दुष्परिणाम की जानकारी देने के लिए स्कूलों में नियमित रूप से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने को कहा। तंबाकू के खिलाफ सोशियो इकानामिक एंड एजुकेशनल डेवलपमेंट सोसाइटी (सीड्स) के कार्यों की सराहना की। 

स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार तंबाकू के इस्तेमाल को कम से कम करने का प्रयास कर रही है। तंबाकू की खेती में लगे किसानों को दूसरे फसल का पैदावार करने को प्रोत्साहित किया जाएगा।

सोशियो इकानामिक एंड एजुकेशनल डेवलपमेंट सोसाइटी (सीड्स) कार्यपालक निदेशक दीपक मिश्रा ने अतिथियों का स्वागत किया। मौके पर राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक लोकेश कुमार सिंह, अपर कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह, टाटा इंस्टीच्यूट सोशल साइंस के विशेषज्ञ डॉ सुंदर रमण आदि ने विचार व्यक्त किए।


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