पटना के मिजाज में गीत-संगीत, इस शहर ने कलाकारों के कद को किया ऊंचा
कला के दीवानों के साथ दर्शकों ने वरिष्ठ कथक नृत्यांगना व नलिनी व कमलिनी सिर-आखों पर बिठाया है। एक कार्यक्रम में शामिल होने पटना आईं दोनों बहनों ने राजधानी से जुड़ीं कई यादें साझा कीं।
By Akshay PandeyEdited By: Published: Tue, 25 Dec 2018 03:56 PM (IST)Updated: Tue, 25 Dec 2018 03:56 PM (IST)
प्रभात रंजन, पटना। बनारस घराने से ताल्लुक रखने वाली देश के वरिष्ठ कथक नृत्यांगना व नलिनी व कमलिनी पहचान की मुहताज नहीं। कला के दीवानों के साथ दर्शक उन्हें सिर-आखों पर बिठाते हैं। दोनों बहनें पटना की तारीफ करते भी नहीं चूकतीं। खुद भले ही उत्तर प्रदेश से हों पर कहती हैं, बिहार ने बहुत कुछ दिया तो पटना ने कद ऊंचा किया। जागरण से बातचीत में उन्होंने शास्त्रीय संगीत से जुड़े आयोजन, समय के साथ बदलता संगीत व नृत्य के स्वरूप आदि पर अपने अनुभवों को साझा किया।
दिल्ली के बाद पटना हमारा दूसरा घर
नलिनी व कमलिनी ने कहा कि वैसे तो मेरा जन्म आगरा में हुआ था लेकिन पढ़ाई दूसरे शहर में हुई। फिर दिल्ली में अपना बसेरा बन गया। नलिनी ने कहा कि दिल्ली के बाद मेरा दूसरा घर पटना रहा है। पटना से मेरा लगाव काफी पुराना रहा है। कमलिनी ने बताया कि वर्ष 1976 के आसपास पटना में दुर्गा पूजा के मौके पर लंगर टोली, गोविंद मित्रा रोड आदि जगहों पर शास्त्रीय संगीत और नृत्य की उम्दा प्रस्तुति देश के नामचीन और विभिन्न घरानों के कलाकारों द्वारा होती थी। जिसकी यादें आज भी ताजा हैं।
दर्शकों का लगाव खींच लाता है हमें
बारिश के दौरान भी लोग पंडाल के नीचे कार्यक्रम का आनंद उठाते थे। दर्शकों का प्यार हम सभी कलाकारों को यहां खींच लाता था। बिहार के लोगों ने जिसे अपने आंखों पर रखा उन कलाकारों का कद ऊंचा होता चला गया है। देश के नामचीन जितने भी कलाकार पटना आए वो लंबे समय तक सुर्खियों में रहने के साथ अपनी पहचान बनाई। देखा जाए तो हम जैसे कलाकारों का कद भी यहां के दर्शकों ने उंचा किया।
कला पर छाया है राजनीति का कोहरा
पटना में होने वाले शास्त्रीय आयोजन का कम से कम होना और दुर्गापूजा जैसे मौके पर कलाकारों को दूर रखना देश और राज्य के ठीक नहीं। कथक नृत्यांगना नलिनी ने कहा कि पूरे भारत में कला पर राजनीति का कोहरा छाया है। कमलिनी ने कहा कि राजनीति में कला हो तो राजनीति का स्वरूप बदल जाता है लेकिन कला में अगर राजनीति का समावेश हो तो कला कठपुतली बन कर रह जाती है। देश में कला और कलाकारों के प्रति विपरीत स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिसे सभी परेशान है। आज जिस समाज ने कलाकारों को दूर किया फिर वही समाज आने वाले समय कलाकारों का अपने पास बुलाएगा।
जिसने गंगा का पानी पिया वो कुआं नहीं खोदता
पटना का मिजाज आरंभ से गीत संगीत का रहा है। समय के साथ हर चीजें बदलती जा रही हैं ऐसे में कलाकारों को अपनी कला के प्रति सम्मान करना होगा। नलिनी ने कहा कि जिसने गंगा का पानी पिया हो उसे कुआं खोदने की जरूरत नहीं। शहर में सांस्कृतिक वातावरण बनाने के लिए कई कलाकार काम कर रहे हैं। जो देखा जा सकता है। आने वाले समय में फिर से देश के हर कोने में शास्त्रीय संगीत व नृत्य की बयार फिर से बहेगी। नलिनी कमलिनी ने कहा कि दिल्ली में हमारी संस्था है। जिसमें नई पौध तैयार होने के साथ कथक पर विशेष रूप से रिसर्च किया जा रहा है। आने वाले दिनों में कला के जरिए रोगों का उपचार किया जाएगा और साथ ही नृत्य और योग के समागम पर बात होगी।
दिल्ली के बाद पटना हमारा दूसरा घर
नलिनी व कमलिनी ने कहा कि वैसे तो मेरा जन्म आगरा में हुआ था लेकिन पढ़ाई दूसरे शहर में हुई। फिर दिल्ली में अपना बसेरा बन गया। नलिनी ने कहा कि दिल्ली के बाद मेरा दूसरा घर पटना रहा है। पटना से मेरा लगाव काफी पुराना रहा है। कमलिनी ने बताया कि वर्ष 1976 के आसपास पटना में दुर्गा पूजा के मौके पर लंगर टोली, गोविंद मित्रा रोड आदि जगहों पर शास्त्रीय संगीत और नृत्य की उम्दा प्रस्तुति देश के नामचीन और विभिन्न घरानों के कलाकारों द्वारा होती थी। जिसकी यादें आज भी ताजा हैं।
दर्शकों का लगाव खींच लाता है हमें
बारिश के दौरान भी लोग पंडाल के नीचे कार्यक्रम का आनंद उठाते थे। दर्शकों का प्यार हम सभी कलाकारों को यहां खींच लाता था। बिहार के लोगों ने जिसे अपने आंखों पर रखा उन कलाकारों का कद ऊंचा होता चला गया है। देश के नामचीन जितने भी कलाकार पटना आए वो लंबे समय तक सुर्खियों में रहने के साथ अपनी पहचान बनाई। देखा जाए तो हम जैसे कलाकारों का कद भी यहां के दर्शकों ने उंचा किया।
कला पर छाया है राजनीति का कोहरा
पटना में होने वाले शास्त्रीय आयोजन का कम से कम होना और दुर्गापूजा जैसे मौके पर कलाकारों को दूर रखना देश और राज्य के ठीक नहीं। कथक नृत्यांगना नलिनी ने कहा कि पूरे भारत में कला पर राजनीति का कोहरा छाया है। कमलिनी ने कहा कि राजनीति में कला हो तो राजनीति का स्वरूप बदल जाता है लेकिन कला में अगर राजनीति का समावेश हो तो कला कठपुतली बन कर रह जाती है। देश में कला और कलाकारों के प्रति विपरीत स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिसे सभी परेशान है। आज जिस समाज ने कलाकारों को दूर किया फिर वही समाज आने वाले समय कलाकारों का अपने पास बुलाएगा।
जिसने गंगा का पानी पिया वो कुआं नहीं खोदता
पटना का मिजाज आरंभ से गीत संगीत का रहा है। समय के साथ हर चीजें बदलती जा रही हैं ऐसे में कलाकारों को अपनी कला के प्रति सम्मान करना होगा। नलिनी ने कहा कि जिसने गंगा का पानी पिया हो उसे कुआं खोदने की जरूरत नहीं। शहर में सांस्कृतिक वातावरण बनाने के लिए कई कलाकार काम कर रहे हैं। जो देखा जा सकता है। आने वाले समय में फिर से देश के हर कोने में शास्त्रीय संगीत व नृत्य की बयार फिर से बहेगी। नलिनी कमलिनी ने कहा कि दिल्ली में हमारी संस्था है। जिसमें नई पौध तैयार होने के साथ कथक पर विशेष रूप से रिसर्च किया जा रहा है। आने वाले दिनों में कला के जरिए रोगों का उपचार किया जाएगा और साथ ही नृत्य और योग के समागम पर बात होगी।
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