पोस्टमॉर्टम: कोरोना वायरस की दस्तक से आइसोलेशन व क्वारंटाइन का कंफ्यूजन
डॉक्टरों को स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने का लंबा-चौड़ा अनुभव है लेकिन वैश्विक महामारी बन कर आया कोरोना वायरस उनके अनुभव की परीक्षा ले रहा है।
पवन मिश्र, पटना। साहब, स्वास्थ्य विभाग में अफसर हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने का लंबा-चौड़ा अनुभव है, लेकिन वैश्विक महामारी बन कर आया कोरोना उनके अनुभव की परीक्षा ले रहा है। साहब, कोरोना के संदिग्धों की संख्या बढ़ने पर आइसोलेशन और क्वारंटाइन की व्यवस्था करने में कंफ्यूज हो गए हैं। क्या करें, क्या न करें, समझ में नहीं आ रहा है। कभी कहते हैं कि संक्रामक रोगियों के पूरे अस्पताल को आइसोलेशन सेंटर बना दिया जाए तो कभी गुरु गोविंद सिंह का प्रस्ताव आ जाता है। बड़े साहब हैं तो क्रियान्वित करने वाले लोग बोलते तो कुछ नहीं है लेकिन उसे कैसे अंजाम दें, उन्हें समझ नहीं आता है। खैर इसी बीच प्रदेश भर की एक हाई लेवल कमेटी की बैठक हुई। इसमें चर्चा के दौरान आइसोलेशन और क्वारंटाइन का पेच साहब को समझ में आया। कंफ्यूजन दूर हो गया। अब निचले कर्मचारी इसकी चर्चा कर आपस में ही हंसी-मजाक कर रहे हैं।
जब चिड़िया चुग गई खेत
अशुद्धता के खिलाफ युद्ध को अंजाम तक पहुंचाने वाले हमारे अधिकारी कितने गंभीर हैं, इसकी बानगी होली पर देखने को मिली। मीडिया ने जब होली पर मिलावट के खेल की खबर प्रकाशित करनी शुरू की तो साहब हरकत में आए मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पहले से तैयारी नहीं होने के कारण 10 मार्च यानी होली के दिन मिलावटखोरों पर छापेमारी करने का आदेश दिया गया। जिले की जिम्मेवारी संभालने वाले अफसर के घर गमी होने के कारण धावादल बना ही नहीं। नतीजा, आखिरी समय तक मिलावटखोरों पर शिकंजा नहीं कसा जा सका। होली के बाद जब इस पर बड़े साहब से जवाब मांगा गया तो बड़ी मासूमियत से बोले- आजकल लोग पैकेटबंद खरीदते हैं, इसलिए मिलावट का खतरा बहुत कम है। अब उन्हें कौन समझाए कि इस समय 90 फीसद मिलावटी सामान पैकेटबंद कर ही बेचा जा रहा है। ऐसे भी अब चिड़िया चुग गई खेत..।
मुसीबत में भी पैसा पहले
मुसीबत में भी कुछ लोग पैसे को वरीयता दे रहे हैं। सेठ जी, प्रदेश ही नहीं एशिया की बड़ी दवा मंडियों में शामिल गोविंद मित्रा रोड के बड़े व्यवसायी हैं। करोड़ों का टर्न ओवर है। कोरोना के दस्तक देते ही विश्व में मास्क और सैनिटाइजर की मांग बढ़ गई। हुजूर ने मौके की नजाकत समझी और दिल्ली से मास्क और हैंड सैनिटाइजर निर्यात में लगा दिया। कोरोना की कृपा से जमकर लक्ष्मी बरस रही है। जब सरकार की चाबुक पड़ी तो औषधि विभाग के दबाव पर मास्क व हैंड सैनिटाइजर का व्यवसाय करने वाले व्यापारियों ने बाहर से सामान मंगवाया लेकिन हुजूर ने इसमें भी कंजूसी की। दवा मंडी के अन्य व्यापारी अब यही कह रहे हैं कि बड़े व्यवसायी को संकट के समय अपने प्रदेश को वरीयता देनी चाहिए। छोटे व्यापारी अपनी पूंजी के से हिसाब से सैनिटाइजर मंगा तो रहे हैं, मगर फिर भी बात नहीं बन रही।
बैठक दर बैठक, डॉक्टर परेशान
कोरोना से बचाव और रोकथाम में बैठकों की अति भी व्यवधान पैदा कर रही। पिछले एक सप्ताह से केंद्रीय टीम से लेकर राज्य सरकार के आलाधिकारी बार-बार बैठकें कर रहे हैं। आलम यह है कि एक दिन में चार-चार बैठकें की जाती हैं। इससे समय बचता है, तो डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य विभाग के अफसर प्रमुख संस्थानों में आकर अधिकारियों के साथ घंटों समीक्षा करते हैं। नतीजा, धरातल पर तैयारियों को अंजाम देने वाले और आशंकितों के आइसोलेशन की व्यवस्था देखने वाले चिकित्साधिकारी पशोपेश में हैं। संस्थानों के जिम्मेदार लोग दबी जुबान में कहते भी हैं कि यदि मुद्दा कोरोना ही है तो सभी अधिकारी अलग-अलग बैठक बुलाने की जगह सभी संबंधित अधिकारी आपस में बात कर एक समय तय कर लें और उसी समय सभी आवश्यक निर्देश जारी कर दें। बहरहाल, बैठकों के बीच निगरानी का दौर जारी है। कोरोना संदिग्धों का इलाज भी हो ही रहा है।