मुफीद नहीं राजधानी की सैरः पटना की तंग गलियां दिल्ली जैसे हादसे को दे रहीं दावत, यहां लगता है डर Patna News
रविवार को देश की राजधानी दिल्ली में अाग लगने से हुई मौत जैसी दिल दहला देने वाली घटना बिहार की राजधानी पटना में भी हो सकती है। जानें कहां है समस्या।
पटना, जेएनएन। दिल्ली की तंग गली में चल रही फैक्ट्री में रविवार को लगी आग में 43 से अधिक लोगों की मौत के बाद भले ही प्रशासन व पुलिस ताबड़तोड़ कार्रवाई में जुटी हो मगर पटना की तंग गलियों की सैर मुफीद नहीं है। यहां भी अगर चिंगारी उठ जाए तो बड़ा हादसा हो सकता है।
अनाज मंडी में खतरा हमेशा बरकरार
राजधानी की सबसे बड़ी अनाज मंडी दलदली में सैर करना मुफीद नहीं है। खतरा हमेशा बरकरार रहता है। पीरमुहानी के उमा सिनेमा और बाकरगंज के आर्या होटल के बीच 1.4 किलोमीटर तक आठ-दस फीट की सड़क के दोनों किनारे पर बने भवनों में अनाज की दुकानें व गोदाम बसे हैं। संकरी व जर्जर सड़क, बिजली के तार का मकडज़ाल और पुराने भवन इस अनाज मंडी की पहचान बन चुके हैं। इस मंडी में अगर दिल्ली की घटना की पुनरावृत्ति हुई तो हताहत की संख्या कई गुना अधिक हो सकती है।
कई दशक पुराने हैं कई मकान
दलदली मोहल्ले में अधिकांश मकान कई दशक पुराने हैं। इन मकानों में कोई फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं लगा है। सुबह पांच बजे से ही यह सड़क व्यस्त हो जाती है। आधी रात तक चहलकदमी बनी रहती है। इसके कारण सड़क पर दिनभर जाम लगा रहता है। इस सड़क से जुड़ी गलियां भी काफी संकीर्ण है। जगत नारायण रोड और पार्क रोड से चारपहिया वाहन दिन के वक्त गली में प्रवेश करते हैं। स्थानीय निवासी प्रकाश लाल गुप्ता की मानें तो मोहल्ले में जब कोई बीमार पड़ते हैं तो निजी वाहन से उन्हें अस्पताल पहुंचाया जाता है। एंबुलेंस घर तक नहीं पहुंच पाती।
बिजली के तार से बड़ी समस्या
कई बार यहां अगलगी की छिटपुट घटनाएं हुईं। स्थानीय नागरिकों ने मिलकर आग पर काबू पा लिया। कुछ साल पहले सालिमपुर अहरा मोहल्ले में अग्निकांड हुआ था। आसपास रहने वाले लोग दहशत में आ गए थे। दमकल के छोटे वाहनों ने मौके पर पहुंचकर आग पर काबू पाया था। बड़ी गाड़ी जगत नारायण रोड मोड़ पर ही रुक गई थी। मोहल्ला काफी पुराना है, इसलिए इंजीनियङ्क्षरग विधि से सड़क को चौड़ी करना संभव नहीं है। बिजली के तार के जंजाल से निजात दिलाया जाए तो खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।
थोड़ी सी चूक से अगर लगी आग बड़ी आबादी हो जाएगी खाक
फुलवारीशरीफ की तंग गलियों में भी बड़ी संख्या में कारखाने चल रहे हैं। अगर जरा सी चूक हो जाए तो यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। दर्जनों बेकरियां घनी आबादी के बीच चल रही है। इनकी भट्टियां रोज 18 घंटे तक जलती हैं। कभी इलाके में आग लग जाए तो फायर ब्रिगेड की गाड़ी गली में नहीं आ सकती। फुलवारीशरीफ और उसके आस पास दो दर्जन से अधिक बेकरी और लहटी के कारखाने हैं। इनमें सालों भर आग की तेज लपट धधकती रहती है।
इमली की लकड़ी से धधकती आग की लपट निकलती है जो बिस्कुट निर्माण के लिए अति आवश्यक है। यह सबकुछ सुरक्षा के नियमों को ताक पर रखकर हो रहा है। भट्टियों से सटे घर बने हुए हैं। भट्ठियों से धुआं निकलना तो रोज की बात है लेकिन कल्पना कीजिए जब यहां लग जाएगी तब क्या होगा, तंग गलियों में कैसे फायर ब्रिगेड की गाड़ी आग बुझाने वहां तक पहुंचेगी? इन भट्ठियों में एक माह का जलावन भी जमा रहता है। भट्ठी के अंदर डालडा, किरासन तेल, लकड़ी, आटा बोरा यह सब भारी मात्रा में होता है।
पटना सिटी की तंग गलियों में भी चल रहे हजारों खतरनाक कारखाने
पटना सिटी अनुमंडल में भी दिल्ली या इससे भीषण हादसे की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। बेहद घनी आबादी वाली पटना सिटी की तंग गलियों में एक-दो नहीं हजारों छोटे-बड़े उद्योग चल रहे हैं। यहां खतरनाक रसायन, मोबिल-ग्रीस से लेकर तबाही मचाने वाले अन्य सामानों का भंडारण है। थोड़े से पैसे के लिए लोग अपने साथ-साथ हजारों ङ्क्षजदगियां दांव पर लगाकर अंजाम की परवाह किए बिना धंधा कर रहे हैं।
यह स्थिति ङ्क्षचताजनक इस कारण भी है क्योंकि अनुमंडल प्रशासन के पास ऐसे संचालित उद्योगों व कल -कारखानों का न तो आंकड़ा है और न ही रोडमैप। प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि ऐसे धंधों पर रोक लगाना हमारा काम नहीं है। इसके लिए कई दूसरे विभाग जिम्मेदार हैं। सूत्रों की मानें तो इन कारखानों में काम करने वालों में अधिकांश नाबालिग और महिलाएं हैं।
चल रहे हैं सैकड़ों कारखाने
पुलिस-प्रशासन के सूत्रों से जानकारी के अनुसार खाजेकलां थाना क्षेत्र के वार्ड 63 व 64 में चप्पल बनाने के सैकड़ों कारखाने हैं। बरकत खां का अखाड़ा, नून का चौराहा, चुटकिया बाजार, जलवा टोली, शोखा का रौजा, दुरुखी गली, सूई की मस्जिद तथा आसपास के मोहल्लों के घरों में चप्पल का कारखाना चल रहा है। यहां इस्तेमाल होने वाला थिनर, लोशन, फोम, चमड़ा व अन्य सामान काफी ज्वलनशील है। छोटे-छोटे घरों में नेल पॉलिश के कारखाने हैं।
प्लास्टिक के दर्जनों कारखाने खतरनाक
तमोली गली, चौधरी गली, घघा गली, मिरचाई गली, सदर गली व अन्य मोहल्लों में यह काम धड़ल्ले से चल रहा है। यहां इस्तेमाल होने वाला स्प्रिट दिल्ली से भी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है। खाजेकलां थाना क्षेत्र में ही प्लास्टिक के दर्जनों कारखाने चल रहे हैं। महेंद्रू, बाजार समिति रोड, सैदपुर, मुसल्लहपुर हाट क्षेत्र में गैस रिफिङ्क्षलग का खतरनाक धंधा चलता है। लॉज में रहने वाले हजारों विद्यार्थी खाना बनाने के लिए छोटे सिङ्क्षलडर का इस्तेमाल करते हैं। इनमें दो से लेकर पांच किलोग्राम तक गैस भरी जाती है। गैस भरने के दौरान आग लगने का डर बना रहता है।
कार्रवाई करने को नियमावली ही नहीं
तबाही मचाने वाले हजारों उद्योग -धंधे घनी आबादी के बीच चल रहे हैं। यहां सुरक्षा का कोई उपाय नहीं है। सभी नियम ताक पर हैं। यह जानते हुए भी हम कार्रवाई नहीं कर सकते। इसके लिए अग्निशमन विभाग के पास नियमावली ही नहीं है। आखिर, किस नियम के तहत कारखाना व गोदाम सील करने, एफआइआर दर्ज करने की कार्रवाई की जाए? इसीलिए नियमित रूप से मॉक ड्रिल कराकर लोगों को आग से सुरक्षा के उपाए बताए जाते हैं। सुरक्षा उपकरण लगाने के लिए कहा जाता है।
- सुरेन्द्र सिंह, फायर ऑफिसर, पटना सिटी फायर स्टेशन
रिकॉर्ड तैयार करने को कहा गया है
अग्निशमन विभाग को सर्वे कर घनी आबादी में चल रहे उद्योग धंधों एवं गोदाम का रिकॉर्ड तैयार करने को कहा गया है। वहां सुरक्षा के नियमों का पालन हो रहा है या नहीं, यह उसी विभाग को सुनिश्चित करना है। एनओसी इसी विभाग द्वारा दिया जाता है। जल्द ही इस दिशा में अहम बैठक बुलाकर ठोस कार्रवाई के लिए रणनीति तैयार की जाएगी।
- राजेश रौशन, अनुमंडलाधिकारी, पटना सिटी